अखिलेश को ‘M फैक्टर’ का सहारा, तभी मिलेगा 2022 में किनारा …सपा को मिल गया योगी का काट

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अखिलेश यादव के सामने 2022 में चुनौती है योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी के हिंदुत्व कार्ड से निपटने की. इसमें उनकी मदद करेगा M फैक्टर, वहीं दूसरी तरफ चाचा शिवपाल को मनाने के लिए चुनौती है इसमें भी M फैक्टर ही उनकी मदद करने वाला है. अब क्या है यह M फैक्टर आइए जानते हैं.

अखिलेश यादव के लिए पहला M फैक्टर

तो सबसे पहले बात करते हैं हिंदुत्व कार्ड से निपटने की. इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी जमकर अपने इस जिताऊ कार्ड का इस्तेमाल करेगी. लेकिन इसके लिए अखिलेश यादव को ममता बनर्जी जैसी रणनीति अपनाने की जरूरत है. बीजेपी के पास स्टार प्रचारकों की फौज और उनके काडर को काटना अखिलेश यादव के लिए इतना आसान नहीं. सपा संगठन के स्तर पर को कितना लडेगी यह कहना मुश्किल है. मगर बीजेपी जिस आक्रामक तरीके से प्रचार कर माहौल को पूरा अपने पक्ष में मोड़ने में माहिर है, उस पर अमोघ शक्ति अखिलेश ने ढूढ़ ली है. जी हां..वो अमोघ शक्ति और अखिलेश की स्टार प्रचारक उनके अलावा होंगी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी. तो पहला M फैक्टर है Mamta banarji.

दूसरा M फैक्टर

अब बात करते हैं दूसरे एम फैक्टर की. आजकल बिहार के चाचा-भतीजे बड़ी चर्चा में हैं. वहां पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच जो राजनीतिक परिदृश्य बना है, उसकी चर्चा है. वहीं उत्तर प्रदेश चाचा-भतीजे भी चर्चा में हैं, लेकिन विघटनकारी नहीं, बल्कि समन्वयवादी नए समीकरण के मद्देनजर. बात शिवपाल अखिलेश यादव की हो रही है. अखिलेश-शिवपाल के बीच 2017 के विधानसभा चुनाव से ही जो झगड़ा चला आ रहा था, इस दफा वो तल्खी और दुराव दूर होता दिख रहा है. मगर राज की बात का यह अखिलेश यादव की नई सियासत का सिर्फ एक सोपान है. वास्तव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यूपी में जाने से पहले घर दुरुस्त करने के साथ-साथ नए समीकरणों से लैस होकर उतरने की तैयारी कर रहे हैं. और इस तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका है मुलायम सिंह यादव की. यानी दूसरे M फैक्टर की.

तीसरा M फैक्टर

अब बात करते हैं तीसरे M फैक्टर की. तीसरा एम फैक्टर है मीडिया और सोशल मीडिया. यह वही फेक्टर है जिसकी बदौलत प्रधानमंत्री की कुर्सी नरेंद्र मोदी को मिली और 2017 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की कुर्सी गई. लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने इस फैक्टर पर ज्यादा ध्यान दिया है. और इसी का नतीजा है लोकप्रियता में अखिलेश यादव ने रचा और पीएम मोदी से आगे निकल गए. फ़ेसबुक पर अखिलेश यादव के 2.9 मिलियन इंगेजमेंट, मोदी के 2.5, पियूष गोयल के1.4 योगी के 1.3 मिलियन एंगेजमेंट हैं.

चुनाव बीजेपी बनाम सपा करने की तैयारी

राज की बात है कि अखिलेश की कोशिश पूरी तरह से चुनाव बीजेपी बनाम सपा करने की है. बीजेपी विरोधी वोटों को पाने के साथ-साथ अपने बचाने की इस दोहरी मुहिम पर काम शुरू हो चुका है. पंचायत चुनावों के नतीजों से उत्साहित सपा ने अपनी मोहरे बिछाने शुरू तो किए हैं, लेकिन जमीन पर संघर्ष करने वाला समाजवादी चरित्र अभी नहीं दिखाई दे रहा है. मुलायम की आंदोलनकारी सियासत से उलट अखिलेश की कोशिश बीजेपी सरकार के खिलाफ गुस्से पर वोट पाने वाले हर मुद्दे को हथियाने और ऐसे समीकरण बनाने की है, जिस पर वह फिर 2012 की तरह सत्ता का महल बना सकें.

‘विकास’ की बात, भरोसे के साथ

चुनाव में अभी समय है. बीजेपी के तरकश के तीरों का अभी पता भी नहीं है. मगर योगी का मुकाबला सीधे खुद करने की रणनीति पर आहिस्ता-आहिस्ता काफी आगे बढ़ चुके हैं. राज की बात है कि अखिलेश इस बार सांप्रदायिकता के खिलाफ नहीं, बल्कि उस मुद्दे पर यूपी में वोट मांगने जनता के बीच जा रहे हैं जो कि बीजेपी का बड़ा दांव होता था. वो दांव था विकास का. अखिलेश अपने कार्यकाल में हुए हाईवे निर्माण से लेकर तमाम परियोजनाओं को विज्ञापनों, पोस्टरों और भाषणों में उतारने की तैयारी कर ली है. साथ ही वो परियोजनाएं जो पूरी की अखिलेश ने और फीता काटा योगी ने उन्हें भी गिनाया जाएगा.

चुनाव में मुद्दों के साथ-साथ समीकरण बैठाना और प्रतिद्वंदी की ताकत को कम करना भी एक अहम रणनीति होती है. राज की बात है कि बीजेपी के करीब तीन दर्जन विधायक जिन्हें इस दफा टिकट न मिलने का अंदेशा है वो अखिलेश के संपर्क में हैं. जिताऊ लोगों का आकलन कर उन्हें टिकट देने से अखिलेश गुरेज नहीं करेंगे. साथ ही बसपा के पांच मुसलिम विधायक पहले ही बागी हो चुके हैं और सपा अध्यक्ष के संपर्क में हैं. मतलब साफ हे कि वोट कहीं बंटे न इसको लेकर अखिलेश सबसे ज्यादा सतर्क हैं.

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