‘हमें केरल के लोगों ने वोट नहीं दिया हम बाहरी नहीं, जीत का दावा करने वाले झूठ बोल रहे हैं’

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फर्रुखाबाद में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. यहां समाजवादी पार्टी के दो नेता आमने-सामने हैं. एक तरफ सुबोध यादव है तो दूसरी तरफ पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव की बेटी मोनिका यादव. बीजेपी इन दोनों की जंग का फायदा उठाने की फिराक में है.

“हमें केरल या आंध्र प्रदेश के लोगों ने वोट नहीं दिया. हम फर्रुखाबाद जिले के ही जिला पंचायत सदस्य हैं. हमारा घर, हमारा व्यापार सब फर्रुखाबाद में है और मेरी पत्नी और मैं फर्रुखाबाद में ही जिला पंचायत सदस्य हैं” फर्रुखाबाद में समाजवादी पार्टी के जिला पंचायत सदस्य और अध्यक्ष पद के उम्मीदवार सुबोध यादव स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि जिन लोगों ने पार्टी के साथ दगा किया है उनको छोड़ा नहीं जाएगा. और उनकी जीत निश्चित है.

गुटबाजी और आपसी रार के चलते फर्रुखाबाद में बदले समीकरण समाजवादी पार्टी के लिए चिंता का सबब बन गए हैं और ऐसे में 3 जुलाई को आने वाले नतीजों पर सबकी नजर है. पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव खुद फर्रुखाबाद के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं. क्योंकि वह नहीं चाहते कि पंचायत चुनावों में मिले समर्थन के बाद अब आपसी कलह के चलते उनके हाथ से इस जिले की डोर निकल जाए. क्योंकि 2022 के चुनाव में पंचायत इलेक्शन का प्रभाव रहने वाला है.

सुबोध यादव बताते हैं, उनके पास पर्याप्त सदस्यों का समर्थन है और जिले में समाजवादी पार्टी का ही अध्यक्ष बनेगा. उन्होंने बताया कि मोनिका यादव और उनकी मां पहले भी अध्यक्ष पद के लिए जोर आजमाइश कर चुकी हैं और इसका अंजाम क्या हुआ सबको पता है. उन्होंने बताया कि जो लोग हमें बाहरी कह रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि मेरी पत्नी मोनिका यादव की मां को हराकर जिला पंचायत सदस्य बनी है.

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के समर्थन से निर्दलीय अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल मोनिका यादव बताती हैं, उन्होंने और उनके परिवार ने पार्टी के लिए खूब काम किया है लेकिन अगर पार्टी उन्हें वरीयता नहीं देती तो वह सदस्यों के समर्थन से मैदान में जरूर उतरेंगी और जीतेंगी भी. इस पूरे घटनाक्रम पर फर्रुखाबाद के सपा जिला अध्यक्ष नदीम फारुखी ने कहा, कि सुबोध यादव को पार्टी नहीं उम्मीदवार बनाया है. और पार्टी का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए.

नदीम फारूखी कहते हैं, पिछले 10 सालों से सुबोध यादव फर्रुखाबाद में सक्रिय हैं. वह ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रतिनिधि रहे हैं और उन्होंने जिले में पार्टी के लिए खूब काम किया है. पंचायत चुनावों के दौरान सुबोध यादव को जनता का समर्थन मिला इसलिए पार्टी ने उन पर दांव खेला है. अब अगर कोई उनके ऊपर बाहरी होने का आरोप लगाता है. तो यह पार्टी के खिलाफ जाना है.

फर्रुखाबाद में राजनीतिक गतिरोध की एक दिलचस्प तस्वीर यह भी है कि यहां जनता भी दो खेमों में बैठी हुई नजर आ रही है. एक खेमा सुबोध यादव का समर्थन कर रहा है तो दूसरी तरफ नरेंद्र सिंह यादव की बेटी के पक्ष में भी एक खेमा खड़ा हुआ दिखाई देता है. ऐसे में 3 जुलाई को आने वाले नतीजों पर सबकी नजर है. यह नतीजे ही तय करेंगे कि अखिलेश यादव की पकड़ पार्टी पर कितनी मजबूत है.

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