शिवपाल सिंह यादव को अखिलेश ने दी मुश्किल मोर्चे की जिम्मेदारी, जानिए बदायूं से क्यों लाड़वा रहे हैं लोकसभा चुनाव?

अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह यादव को बदायूं से मैदान में उतारा है। वैसे तो यह समाजवादी पार्टी की सुरक्षित सीट मानी जाती है लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी और स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ने धर्मेंद्र यादव को शिकस्त दी थी। लेकिन क्या इस बार यहां समीकरण बदल गए हैं? 

समाजवादी पार्टी ने मंगलवार की शाम पांच और प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए लेकिन इन नामों में जो सबसे चौंकाने वाला फैसला रहा, वह बदायूं से उम्मीदवारी में बदलाव को लेकर है। तीन हफ्ते पहले समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की जो पहली लिस्ट आई थी, उसमें बदायूं से धर्मेद्र यादव का नाम था। लेकिन मंगलवार को आई लिस्ट में बदलाव कर दिया गया। अब इस सीट से शिवपाल यादव को उम्मीदवार बनाया गया है। धर्मेद्र यादव को आजमगढ़ और कन्नौज का प्रभारी बना दिया गया है। यानी के आने वाले दिनों में उन्हें इन्हीं दो सीटों में से किसी एक पर चुनाव लड़ने के लिए कहा जाएगा। लेकिन पहले फैसला अखिलेश यादव को लेना होगा कि वह कन्नौज लड़ना चाहते हैं या आजमगढ़? इनमें से जो एक सीट वह चुनेंगे, बची हुई दूसरी सीट धर्मेंद्र के हिस्से में चली जाएगी।

अखिलेश यादव ने क्यों किया बदलाव?

सवाल यह है कि बदायूं में यह बदलाव क्यों करना पड़ा? दरअसल इस बदलाव के पीछे कहीं न कहीं सलीम इकबाल शेरवानी की नाराजगी देखी जा रही है, जिन्होंने पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया और आने वाले दिनों में उनके पार्टी छोड़ने की चर्चा है। दरअसल बदायूं सीट एक वक्त सलीम शेरवानी की हुआ करती थी। 1984 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था, बाद में वह समाजवादी पार्टी में आ गए और यहां से तीन बार और सांसद हुए। संयुक्त मोर्चा सरकार में समाजवादी पार्टी के टिकट से वह केंद्र में मंत्री भी हुए लेकिन 2009 में यह सीट यादव परिवार में धर्मेद्र यादव को दे दी गई। धर्मेंद्र यादव यहां से दो बार 2009 और 2014 में सांसद हुए। 2019 में वह यहां से चुनाव हार गए।

बदायूं का टिकट नहीं मिला सलीम शेरवानी ने छोड़ा महासचिव पद

इधर सलीम शेरवानी अपनी सीट के बदले समायोजन चाहते रहे, जब उन्हें नहीं मिला तो वह कांग्रेस में चले गए। 2019 में धर्मेंद्र की हार में सलीम शेरवानी को मुख्य कारण माना गया। सलीम शेरवानी यहां से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ गए, उन्हें पचास हजार वोट मिला, उधर धर्मेद्र 20 हजार वोट से चुनाव हार गए। 2022 के विधानसभा चुनाव के समय सलीम शेरवानी ने फिर से समाजवादी पार्टी में वापसी की। उन्हें यह भरोसा दिया गया था कि अगर बदायूं से उन्हें टिकट नहीं मिला तो कहीं और समायोजन होगा। पिछले महीने जब बदायूं का टिकट धर्मेद्र यादव को मिल गया तो वह इस उम्मीद में थे कि उन्हें राज्यसभा भेज दिया जाएगा लेकिन जब राज्यसभा का टिकट भी नहीं मिला तो उन्होंने पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ने का संकेत दिया।

बदायूं में क्या है नया समीकरण? 

इस लोकसभा क्षेत्र में 15 लाख से ज्यादा लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और 4 लाख के आसपास लोग शहरी क्षेत्र में रहते हैं। यानी ग्रामीण इलाका ही तय करता है कि सांसद कौन होगा? 2019 में जब यहां पर भाजपा जीती थी तो 57 परसेंट के आसपास मतदान का प्रतिशत रहा था और इसमें शहरी क्षेत्र के लोगों ने ठीक-ठाक मतदान किया लेकिन यादव और मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदान का प्रतिशत कम रहा यह भी समाजवादी पार्टी के हारने का बड़ा कारण था। 

लेकिन 2022 के चुनाव में यहां पर समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर हुआ यह बात अलग है कि उसे सिर्फ बीजेपी से एक प्रतिशत यानी 12126 वोट ज्यादा मिले। इसी तरह लोकसभा चुनाव जिसमें समाजवादी पार्टी हार गई उसमें भारतीय जनता पार्टी को समाजवादी पार्टी से सिर्फ 18334 वोट ज्यादा मिले। लेकिन एक दिलचस्प फैक्टर यह है कि यहां पर कांग्रेस के प्रत्याशी सलीम शेरवानी को 51896 वोट मिले थे और अगर सपा और कांग्रेस मिलकर यहां इलेक्शन लड़ते हैं तो उसे बीजेपी हरा नहीं सकती। एक महत्वपूर्ण आंकड़ा यह है कि अगर आप विधानसभा के हिसाब से देखें तो समाजवादी पार्टी को बिसौली और बदायूं शहर में मेहनत करने की जरूरत है। क्योंकि अगर इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का वोट भी सपा को मिल जाता है तो यह डेडली कांबिनेशन बन जाता है। 

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