उत्तराखंड के CM बने तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत को ‘लाठी’ ले डूबी
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. राजभवन जाकर उन्होंने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना त्यागपत्र सौंपा. इस्तीफ़े के बाद मीडिया से उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला पार्टी ने सामूहिक रूप से लिया है.
देहरादून से करीब 250 किलोमीटर दूर उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था. सभी बड़े नौकरशाह, मंत्री, सत्ताधारी पार्टी के विधायक और तमाम विपक्षी दल के विधायक वहां मौजूद थे. अचानक से शनिवार 6 मार्च को दिल्ली से भाजपा के दो नेता पर्यवेक्षक के रूप में देहरादून भेजे जाते हैं. इनमें एक छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और दूसरे उत्तराखंड के भाजपा प्रभारी दुष्यंत गौतम थे. शाम के 4.30 बजे देहरादून में स्थित बीजापुर गेस्ट हाउस में कोर ग्रुप की मीटिंग बुलाई जाती है.
उत्तराखंड में क्यों बड़ी राजनीतिक सरगर्मी?
पहाड़ पर तेज़ होती राजनीतिक सरगर्मियों के बीच अटकलें लगाई जानें लगती हैं कि शायद मुख्यमंत्री को बदला जा सकता है. इसीलिए दिल्ली से पर्यवेक्षक बीजेपी विधायकों का मन टटोलने के लिए देहरादून भेजे गए हैं. शनिवार को 4.30 बजे देहरादून स्थित बीजापुर गेस्ट हाउस में कोर ग्रुप की मीटिंग होती है. मीटिंग में दिल्ली से आए दोनों पर्यवेक्षक रमन सिंह और दुष्यंत गौतम के साथ ही साथ उत्तराखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद नरेश बंसल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंसीधर भगत, नैनीताल से सांसद अजय भट्ट, टिहरी की सांसद राज्यलक्ष्मी शाह, अजेय कुमार, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता विजय बहुगुणा सरीखे नेता और भजपा के तमाम विधायक मौजूद थे.
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में त्रिवेंद्र सिंह रावत को क्यों बदला?
करीब-क़रीब एक घंटे तक कोर ग्रुप की मीटिंग चलती है. मीटिंग खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मीडिया वाले जब सवाल पूछते हैं कि अंदर मीटिंग में क्या हुआ तो वो मीडया से बिना बात किए ही अपने आवास पर निकल जाते हैं. और उसके कुछ देर बाद उनके इस्तीफे का ऐलान हो जाता है. पिछले कुछ दिनों से उनके पद छोड़ने के कयास लगाए जा रहे थे. इससे पहले भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क में हैं और पार्टी अध्यक्ष से भी उनकी बातचीत हुई है. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफ़े के बाद मीडिया से कहा कि ये फ़ैसला पार्टी ने सामूहिक रूप से लिया है. उन्होंने बताया कि भाजपा के सभी विधायकों की बैठक बुधवार को होगी.इस्तीफ़े की वजह पूछने पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब दिल्ली से मिलेगा.
साल 2000 में गठन के बाद से उत्तराखंड आठ मुख्यमंत्री देख चुका है. 70 सदस्यों वाली उत्तराखंड विधानसभा में इस समय भाजपा के 56 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 11 एमएलए हैं. विधानसभा में दो स्वतंत्र विधायक भी हैं जबकि एक सीट खाली है. उत्तराखंड में जब से यह राज्य बना है तब से राजनीतिक अस्थिरता बनी रही है, सिर्फ नारायण दत्त तिवारी ही एक ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होंने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पहले से ही पार्टी में काफी ज्यादा असंतोष था. रावत के कुछ फैसले ऐसे थे, जिससे जनता इनसे काफी ज्यादा नाराज़ थी, जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा था. जैसे कि देवस्थानम बोर्ड के गठन का मामला हो इसकी वजह से भाजपा का जो कोर वोटर है जैसे कि मंदिर के पुजारी अन्य पंडा समाज वो इनसे काफी ज्यादा नाराज था. खुद भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले को कोर्ट में लेकर गए.
त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज थे उत्तराखंड के लोग
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में बनाई है, वहां विधानसभा सत्र के शुरू होने के दिन एक सड़क के चौड़ीकरण की मांग को लेकर प्रदर्शन करने आई महिलाओं पर लाठीचार्ज करवाया जिसका पहाड़ की जनता में गलत संदेश गया. इसकी वजह से भी लोगों में काफी ज्यादा गुस्सा था. हाल ही के दिनों में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसेंड को नई कमिश्नरी बनाने का फैसला लिया जिसमें कि 4 जिलों को शामिल किया अल्मोड़ा,बागेश्वर,चमोली और रुद्रप्रयाग, इस फैसले की वजह से कुमायूं मंडल के लोग काफी ज्यादा नाराज थे.
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