हर्बल दवाएं होती हैं कितनी कारगर, जानिए इनके औषधीय गुणों के बारे में
हर्बल दवाएं (herbal medicine) क्या वाकई में कारगर होती हैं? क्या इन दवाओं के माध्यम से हम अपनी बीमारी को खत्म कर सकते हैं? हजारों वर्षों से पौधों से दवाएं बनाई जाती हैं और आज भी उनकी तलाश जारी है. यहां जानिए उन पौधों के बारे में जो जबरदस्त औषधीय लाभों से भरपूर हैं.
यूं तो हर्बल उपचार को अक्सर अवैज्ञानिक ठहरा दिया जाता है लेकिन एक तिहाई से ज्यादा आधुनिक दवाएं, कुदरती उत्पादों से सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर बनाई जाती हैं. पौधे, सूक्ष्मजीवी, पशु- सब दवाओं में काम आते हैं. अमेरिका के कैलिफॉर्निया प्रांत के स्क्रिप्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने पाया है कि गलबुलिमीमा बेलग्राविएना पेड़ की छाल में साइकोट्रोपिक (psychotropic) प्रभाव होता है, इसीलिए वो अवसाद और घबराहट (depression and anxiety) के इलाज में काम आ सकती है. ये पेड़ सिर्फ पापुआ न्यू गिनी और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के दूरस्थ वर्षा वनों में ही पाया जाता है. वहां के मूल निवासी लंबे समय से इसका इस्तेमाल दर्द और बुखार (treatment of pain and fever) में करते आए हैं.
सिर्फ पापुआ न्यू गिनी (Papua New Guinea) और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया (North Australia) की बात नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में हर्बल दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं. कुछ आदिवासी इलाके तो ऐसे हैं जहां की आबादी पूरी तरह से इन दवाओं पर ही निर्भर है. आज भी ग्रामीण इलाकों में जब कोई व्यक्ति एलोपैथिक दवाओं (allopathic medicine) से ठीक नहीं होता तो वह हर्बल दवाओं की शरण में जाता है. ऐसे में हर्बल दवाओं की उपयोगिता को खारिज नहीं किया जा सकता.
पौधों में और कौन सी हर्बल दवाएं मिलती हैं?
- किसी पौधे से निकली दवा का सबसे मशहूर उदाहरण ओपियम यानी अफीम का है. जिसका इस्तेमाल 4,000 साल से भी ज्यादा समय से दर्द के उपचार में हो रहा है.
- मॉरफीन और कोडाइन (morphin and kodin) जैसी बेहोशी की दवाएं अफीम से निकाली जाती है, सेंट्रल नर्वस सिस्टम (central nervous system) पर उनका जोरदार प्रभाव पड़ता है.
- वेलवेट बीन्स यानी कौंच के बीज (म्युकुना प्रुरिएन्स) का इस्तेमाल तीन हजार साल से भी ज्यादा समय से प्राचीन भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा और चीनी दवाओं में किया जाता रहा है.
- प्राचीन पाठों से पता चलता है कि वैध कैसे कौंच के बीजों से मरीज की देह में कंपकंपी की समस्या को कम करते थे. इसी लक्षण को आज पार्किन्सन्स रोग (Parkinson’s disease) के रूप में जाना जाता है. अध्ययन बताते हैं कि कौंच के बीजों में लेवोडोपा नाम का एक यौगिक(कंपाउंड) होता है. इसी नाम की दवा आज पार्किन्सन्स रोग के इलाज में काम आती है.
- मस्तिष्क का जो हिस्सा गति और हरकत को नियंत्रित करता है, लेवोडोपा उसमें डोपामीन के संकेतों को बढ़ा देता है और इस तरह कंपकंपी रोकने में मदद करता है.
- नागफनी (हॉउथोर्न- क्रेटीगस) ब्लड प्रेशर को कम करता है और दिल की बीमारियों के इलाज में काम आ सकता है.
- नागफनी की फलियों में बायोफ्लेवोनॉयड और प्रोएंथोसायनीडिन जैसे यौगिक पाए जाते हैं जिनमें महत्त्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए गए हैं.
- नागफनी की चिकित्सा खूबियों को पहली सदी में एक यूनानी फिजीशियन डियोसोकोरिडस ने पहली बार नोट किया था.
- सातवीं सदी में तांग-बेन-चाओ ने प्राचीन चीनी दवाओं में उसका इस्तेमाल किया था.
- यूरोपीय मिथकों में यू ट्री यानी थुनेर या तालिश पात्र वृक्ष का एक विशेष महत्व है. पेड़ के ज्यादातर हिस्से बहुत जहरीले होते हैं और इनका जीवन और मृत्यु दोनों से उनका जुड़ाव है. मैकबेथ में तीसरी चुड़ैल की जुबानी इस पेड़ का ज़िक्र आता है- “चंद्रमा के अंधेरे को यू की किरचियों ने चीर डाला.” (मैकबेथ अंक 4, दृश्य 1)
- इस पेड़ की उत्तरी अमेरिका प्रजाति, पैसिफिक यू ट्री (टैक्सस ब्रेविफोलिया) में सबसे ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं. 1960 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि पेड़ की छाल में टैक्कल नाम के यौगिक पाए जाते हैं. इनमें से एक टैक्सल को पैक्लीटैक्सल कहा जाता है. और उसे कैंसर के इलाज की असरदार दवा के रूप में विकसित किया जाता रहा है.
- पैक्लीटैक्सल कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है और इस तरह बीमारी को बढ़ने नहीं देता.
- विलो पेड़ की छाल का भी पारंपरिक दवा के रूप में लंबा इतिहास है. प्राचीन सुमेर और मिस्र में चार हजार साल पहले छाल का इस्तेमाल दर्द से बचाव के लिए किया जाता था और तबसे वो एक प्रमुख दवा बन गई है.
- विलो की छाल में सेलिसिन नाम का यौगिक होता है, आगे चलकर यही यौगिक दुनिया में सबसे ज्यादा ली जाने वाली दवा, एस्पिरिन की खोज का आधार भी बना था.
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