व्यंग: भूपेश बघेल का नामकरण हो गया!

कभी सोचता हूँ मोदी जी अगर हँसना आता, तो भला कैसे दिखते। वो निश्चित रूप से भूपेश बघेल जैसे लगते।
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डिट्टो वही अंदाज, वही पर्सनालिटी कल्ट, वही प्रचार का तमाशा, वही बतोलेबाजी, फोकटिया गर्व की अनुभूति, वही हेकड़ी, वही हिंदुत्व, वही अडानी, वही एकाधिकार की प्रवृत्ति..

वही प्रशासन का अतिकेन्द्रिकरण, पार्टी को जेब के रखने की जुगत, विरोधी और प्रतिद्वंद्वी को जड़मूल से समाप्त कर देने की वैधानिक.. मगर अनैतिक और शर्मनाक कोशिशें।

हाँ, कुछ थोड़ा बहुत मोदी से हल्के रंगों में, इसलिए उनकी मुस्कान से उतनी धूर्तता तो नही टपकती। पर उससे फर्क क्या पड़ता है??

जब वही असली चीज,चटक भगवे रंग में सामने की दुकान पर बेहद सस्ता उपलब्ध हो, तो ग्राहक डुप्लीकेट क्यो चुने।
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यूँ तो किसानों के लिए भूपेश बघेल का काम सबसे शानदार रहा।

बिलाशक, छत्तीसगढ़ का किसान, भारत मे सबसे भाग्यशाली किसान हैं। उसकी उपज को दाम है, उसकी जेब मे पैसा है। एक यही पुण्याई एक औऱ कार्यकाल दिलाने को पर्याप्त होती।

मगर 65 सीट के साथ सत्ता में भूपेश के पास सबकुछ था। शायद आत्मविश्वास नही था।

इसलिए सबकुछ अपने हाथ मे बांधकर रखा। मंत्रिमंडल, नाम भर का। सब कुछ तो सीएम हाउस था, और वहां बैठे दलाल थे। मंत्रियों से ज्यादा ताकतवर, बेपरवाह, बेशर्म और बदतमीज।

हर चीज की बोली तय थी। इसलिए यह ये चौथी रमन सरकार थी।
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जी हां, जोगी छत्तीसगढ़ का आधार रखने वाले सीएम थे। उनका ढाई साल का कार्यकाल, छत्तीसगढ़ की वैसी नींव रख गया, जिनसे बूते शपथ लेने के 4 माह बाद ही रमन सिंह इंडिया टुडे के मुखपृष्ठ पर बेस्ट सीएम बनकर छपे।

रमन को बढ़िया स्टार्ट मिला था। जिसे उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में मेंटेन रखा। घमंड दूसरे कार्यकाल में आना शुरू हुआ। सत्ता चार मंत्रियों में बंट गयी।

सब एक से बढ़कर एक अतिचारी.. सत्ता से हटा दिये जाने चाहिए थे। मगर पोलीटकल गिमिक्स, और झीरम से शून्य हुई कांग्रेस की वजह से वो तीसरा कार्यकाल पा गए।

फिर ये लोग खुदा हो गए। रमन का तीसरा कार्यकाल वर्स्ट था। अफसरशाही, हेकड़ी, दलाली, बिकवाली का पीक था। सही आदमी, सही चैनल से जाओ, पैसे दो, जो चाहो करवाओ।

भूपेश सरकार, चौथी रमन सरकार इसलिए कहता हूँ, कि यही चीजें निरंतरता के साथ बरकरार रही।

उल्टा ये कि कन्फ्यूजन, कि किसको पकड़ने से क्या काम होगा यह पता लगाना टेढ़ी खीर थी। सारे चन्दनपान के बाद भी बात बनेगी, ये भी गारन्टी नही।
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बहरहाल, सिर्फ 3% का गैप रहा, और उनकी सरकार सिर्फ किसानों के भले के बूते लौट आती, अगर अपने लोगो को साथ लेकर चलते।

हर मंत्री माटी की मूरत बना दिया गया। बड़े नेता अपने चुनाव क्षेत्र में सीमित कर दिए गए। टी एस सिंहदेव पर क्या अत्याचार नही किया।

उन्हें यहां का गडकरी बना दिया गया। बजट काटा, मंत्रालय छीने, आदेश होल्ड करा दिये। प्रभाव के इलाकों में चुन चुन कर अशिष्ट कलेक्टर दिये।

चवन्नी छाप कार्यकर्ता से लेकर उनके अपने जिले के छदामी विधायक तक उन्हें अनर्गल बकते रहे।

लम्बे समय तक अंदरखाने की सिंहदेव की भाजपा से सेटिंग की अफवाहें आती रही। अब उनके समर्थक माने जाने वाले बहुतेरे विधायक निपट जाने में भूपेश के हाथ होने का संदेह तारी है।
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पार्टी खुला हाथ देती है, तो वन-अपमैंनशिप के लिए नही। यहां कांग्रेस की जगह भूपेश की क्षेत्रीय पार्टी चल रही थी।

छत्तीसगढ़ का आम कांग्रेसी, सरकार जाने से दुखी और शॉक्ड है, पर भूपेश की सत्ता जाने से उसे खास दुख नही।
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हालांकि भूपेश बघेल के पास, अभी लम्बा पोलिटीकल कैरियर है, और छत्तीसगढ़ में अब भी बेस्ट बेट वही हैं। अगर वे हार उन्हें समावेशी और विनम्र बना सके अच्छा है।

कष्ट यह कि किसी आम दौर में, यह सामान्य सबक सीखने के लिए, ऐसी भारी कीमत देना चल जाता।

मगर एक बेहद नाजुक दौर में डेढ़ होशियारी की वजह से राज्य खोकर, कांग्रेस को कुछ बरस पीछे धकेल दिया। मोदी बनने की कोशिश में भूपेश, मोदी को मजबूत कर गए हैं।
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मगर राजस्थान में गहलोत, औऱ मध्यप्रदेश में कमलनाथ के विपरीत, भूपेश में अभी बहुत बारूद बाकी है। सत्ता में रहकर जो काम वो 2019 में कर सके, जमीन पर रहकर 24 में कर सकते हैं।

पर उन्हें वापस जमीन पर उतरने की जरूरत है। विनम्रता से हार का जिम्मा लेने, गलतियों की क्षमा मांगने औऱ कार्यकर्ताओ का हौसला बनाने की जरूरत है।

और याद रखने की जरूरत है कि देश को डेमोक्रेटिक, समावेशी, विनम्र, प्रशासनिक सूझबूझ, निडर और जोड़ने वाले लीडर्स की चाहिए है। गुजरात वाले की तरह अट्टहास करता ..

या पाटन वाले जैसा मुस्काराता मोदी नही चाहिए।

(मनीश सिंह की एक्स वॉल से)

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