अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ 10 मार्च को कौन बनेगा यूपी का मुख्यमंत्री?

अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ 10 मार्च को जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे तो इन दोनों नेताओं में से कौन देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश की कुर्सी संभालेगा? यह प्रश्न उत्तर प्रदेश के तकरीबन 23 करोड़ मतदाताओं के दिमाग में होगा तो चलिए इसका उत्तर तलाशने की कोशिश करते हैं.
अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ ने अपनी पूरी ताकत लगाई है इस बार उत्तर प्रदेश के चुनावों के दौरान लेकिन जनता के मन में इन दोनों में से कौन से नेता ने ज्यादा जगह बनाई इसका पता 10 मार्च को चलेगा. 10 मार्च यानी 2 तारीख जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे. नतीजों से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां और आम मतदाता भी अपने-अपने नजरिए और पसंद के हिसाब से जीत और हार का आंकलन कर रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस बार मुकाबला कांटे का है और फैसला किसी के पक्ष में भी आ सकता है. क्योंकि जो लोग लगातार चुनाव कवर कर रहे हैं और अंडर करंट भांपने की कोशिश कर रहे हैं उनके मुताबिक, ‘इस बार कोई भी पार्टी अपनी जीत का दावा नहीं कर सकती’
तो कैसे करें 10 मार्च का प्रिडिक्शन?
देखिए चुनाव विशेषज्ञ जो विश्लेषण कर रहे हैं वह अपनी जगह ठीक हो सकता है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 10 मार्च के नतीजों का सही सही अनुमान लगाना विश्लेषकों के बस से बाहर है. इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि इस बार मतदाता ने खुलकर अपने मन की बात नहीं बताई है. जो लोग यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजों के आकलन की एकदम सटीक थ्योरी है वह झूठ बोल रहे हैं. हां इतना जरूर है कि भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 5 सालों में जो लाभार्थी वर्ग खड़ा किया है उसका लाभ उसे मिल सकता है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ आवारा मवेशियों और बेरोजगारी का मुद्दा उसके लिए मुसीबत भी ला सकता है.
2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के समर्थन में जिस तरह से जनता आई है उससे उन्हें कम आंकना भी बीजेपी की भूल हो सकती है क्योंकि जब से अखिलेश यादव ने अपनी चुनावी यात्रा शुरू की उन्हें भरपूर जनसमर्थन मिल रहा है. पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रुहेलखंड से लेकर बुंदेलखंड तक उनके कार्यक्रमों में, उनकी रैलियों में खूब भीड़ जुटी है. लेकिन क्या यह भीड़ बीजेपी के एजेंडे का मुकाबला कर पाएगी और वोटों में तब्दील हो पाएगी यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है.
क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का पूरा कैंपेन इस बात को लेकर आगे बढ़ रहा है कि उनकी सरकार में गुंडागर्दी खत्म हुई है और एक विशेष समुदाय पर नकेल कसने का काम हुआ है. सीएम योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यक्रमों में खुलकर इस बात का जिक्र कर रहे हैं कि उन्होंने हिंदुओं की प्रतिष्ठा को लौट आया है और एक विशेष समुदाय के विस्तार को रोका है. उनका तर्क है कि उन्होंने देश प्रेम की भावना और हिंदुत्व की गरिमा को बढ़ाया है. और वह इन्हीं मुद्दों के आधार पर उत्तर प्रदेश में दोबारा सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी या दूसरे दल मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी को घेर रहे हैं. बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, आवारा मवेशियों के कारण बर्बाद होती किसानों की फसलों का मुद्दा, निजी करण, कोरोना के दौरान सरकार का मिसमैनेजमेंट और युवाओं के बीच व्याप्त निराशा के माहौल को मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने का दम भर रही हैं. लेकिन 10 मार्च को उत्तर प्रदेश की जनता के मन की बात पता चलेगी. चुनावी माहौल भांप ने में पारंगत लोग भी इस बार यह कह रहे हैं कि अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ में से कौन 10 मार्च को उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालेगा इसकी भविष्यवाणी करना इस बार आसान नहीं है.
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