इन चुनौतियों से निपटकर PM बन सकते हैं राहुल गांधी !

0

कांग्रेस के लिए ये चुनाव करो या मरो का है. राहुल गांधी इन चुनावों में कोई कसर नहीं रखना चाहते और इसके संकेत उन्होंने प्रियंका गांधी को औपचारिक तौर पर राजनीति में उतारकर दे दिए हैं. लेकिन बड़ा प्रश्न ये है कि वो उन चुनौतियों से कैसे निपटेंगे जो उनके सामने मुंह खोल खड़ी हैं.

राजनीति में गठबंधन के सत्य को नकारा नहीं जा सकता. कांग्रेस भले ही एक लंबे वक्त तक पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर देश पर शासन करती रही हो लेकिन आज हालात बिगड़े हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला था मोदी चाहते तो बीजेपी की सरकार बना सकते थे लेकिन उन्होंने एनडीए को दूसरे दलों को साथ रखकर सरकार बनाई.

राहुल गांधी भी इस सत्य को समझते हैं और इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस विभिन्न दलों से गठबंधन की दिशा में लगातार कोशिशें कर रही है. कांग्रेस की ये कोशिशें उसे मुश्किल में भी डाल सकती हैं. लिहाजा इन मुश्किलों से निपटना राहुल के लिए चुनौती होगी.

अब दिल्ली प्रदेश कांग्रेस  का मामला ही ले लीजिए. यहां कांग्रेस ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है. इसी मार्च में की 31 तारीख को वो 81 साल की हो रही हैं. उनसे पहले अजय माकन ये जिम्मेदारी संभाल रहे थे.

वैसे तो बताया ये गया कि अजय माकन बीमार थे इसलिए उन्होंने खुद को पद मुक्त किया लेकिन खबरें ये भी हैं कि कांग्रेस आलाकमान आप के साथ गठबंधन करना चाहता था इसलिए माकन ने इस्तीफा दिया. क्योंकि माकन नहीं चाहते थे कि आप-कांग्रेस मिलकर दिल्ली में चुनाव लड़ें.

दिल्ली के अलावा पंजाब में भी हालात कमोवेश ऐसे ही हैं. यहां पर आप से गंठबंधन को लेकर कांग्रेस में खींचतान मची है. दरअसल कांग्रेस आलाकमान को ये लगता है कि अगर पार्टी पंजाब में आप के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो बीजेपी-अकाली गठबंधन को बुरी तरह पटखनी दी जा सकती है.

2017 विधानसभा और 2014 लोकसभा के वोट प्रतिशत इस ओर इशारा करते हैं. लेकिन पंजाब में सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ही इस गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं. कुछ दिनों पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले भी थे. कहा जा रहा है कि ये मुलाकात गठबंधन के नफा-नुकसान को लेकर ही हुई थी.

बिहार में भी राहुल गांधी के सामने चुनौती है. यहां राहुल गांधी जिस पार्टी के साथ हैं वो बिहार के सबसे बड़ी पार्टी है. यहां कांग्रेस- राजद के अलावा उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता दल, वामपंथी दल और जीतन राम मांझी  का गठबंधन हुआ है. ऐसे में बिहार में कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी ये बड़ा प्रश्न हैं.

यहां कांग्रेस के पास दूसरा विकल्प भी नहीं है. क्योंकि राहुल गांधी अगर बीजेपी को रोकना चाहते हैं तो उन्हें गठबंधन करना ही पड़ेगा. बिहार की तरह यूपी में भी गठबंधन के गणित को समझना राहुल गांधी के लिए चुनौती ही है. हालांकि वो फ्रंटफुट पर खेलने की बात राहुल गांधी करते हैं लेकिन गठबंधन को नकारते भी नहीं हैं.

इसी तरह हरियाण और गोवा जैसे राज्य भी हैं जहां कांग्रेस का आलाकमान आप के साथ मिलकर चुनाव में जाने की सोच रहा है लेकिन यहां स्थानीय कांग्रेस इकाई इसके पक्ष में नहीं है. हालांकि आप ने एलान तो किया है कि वो अकेले चुनाव लड़ रही है लेकिन राजनीति में फाइनल कुछ नहीं होता.

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, गोवा के अलावा कर्नाटक की बात करें तो यहां भी कांग्रेस के लिए गठंबधन की चुनौती है. बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने जेडीए से गठबंधन किया था लेकिन इस सहजता नहीं है. हालिया घटनाक्रम इसकी तस्दीक करता है. राहुल गांधी बहुत बारीकी से कर्नाटक के घटनाक्रम को देखकर रहे हैं.

वो जानते हैं कि 2019 में अगर कांग्रेस जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो विधानसभा चुनाव को मत प्रतिशत बताता है कि बीजेपी काफी नुकसान होगा. अब राहुल की चुनौती ये है कि चुनाव तक जेडीए और कांग्रेस साथ रहें.

राहुल गांधी 2019 के चुनावों में किसी भी कीमत पर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकना चाहते हैं. और ऐसे में उनके लिए ये जरूरी है कि गठबंधन की चुनौतियां से वो निपटें क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं कर पाए तो भी उनके लिए इस बार पीएम की कुर्सी दूर हो जाएगी.

About Post Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *