राजस्थान: वसुंधरा राजे BJP के लिए कितना जरूरी हैं ?
2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के हाथ से सत्ता निकल गई. वसुंधरा राजे के खिलाफ जो पूरे प्रदेश में महौल बना इसका फायदा कांग्रेस को हुआ. लेकिन घोर विरोधी हवा में भी राजे ने विधानसभा चुनाव में 72 सीटें जीतकर ये तो अहसास करा ही दिया कि वो राजस्थान में बीजेपी के लिए कितना जरूरी हैं.
राजे दिल्ली क्यों भेजी गईं ?
खबर ये आ रही है कि बीजेपी राजस्थान में नया नेतृत्व खड़ा करना चाह रही है और यही कारण है कि पार्टी ने पूर्व गृहमंत्री गुलाब चंद्र कटारिया को नेता प्रतिपक्ष बनाया और राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर दिल्ली बुला लिया. लेकिन क्या राजस्थान में बीजेपी राजे का विकल्प तैयार करने की स्थिति में अभी है. इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा और ये समझना होगा कि राजे का राजस्थान से राजनीतिक कनेक्शन कैसे जुड़ा ?
…जब दिग्गजों को पछाड़ा
राजस्थान के दिग्गज बीजेपी नेता भैरोसिंह शेखावत 2002 में बतौर उपराष्ट्रपति दिल्ली पहुंचे तो राजस्थान बीजेपी के तमाम नेता सीएम बनने के लिए सपने संजोने लगे थे. सवाल ये था कि राजस्थान में शेखावत के बाद बागडोर कौन संभालेगा ? पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रामदास अग्रवाल, पूर्व मंत्री ललितकिशोर चतुर्वेदी, पूर्व उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा, रघुवीर सिंह कौशल और घनश्याम तिवाड़ी जैसे नेता कतार में थे. इस कतार में मौजूदा नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भी थे. लेकिन उस वक्त के बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैंकेया नायडू ने जयपुर पहुंचकर वसुंधरा राजे सिंधिया को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
बनी पहली महिला सीएम
पार्टी ने ये फैसला तब लिया था जब राजे ये जिम्मेदारी नहीं चाहती थीं. इसके बाद राजे ने ना सिर्फ राज्य में अपने पैर जमाए बल्कि पार्टी में अपने खिलाफ बने माहौल को भी खत्म किया. 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीती और राजे राजस्थान की पहली महिला सीएम बन गईं. 2003 से लेकर 2018 तक राजस्थान बीजेपी में राजे की इजाजत के बगैर कोई फैसला नहीं लिया गया. वसुंधरा राजे मंझी हुई नेता हैं वो अच्छी तरह से जानती हैं कि उन्हें क्या करना है लेकिन आगामी चुनाव से पहले बीजेपी उन्हीं नाराज करने का जोखिम कतई नहीं उठाना चाहेगी.
क्या जोखिम लेगी बीजेपी?
ये भी माना जाता है कि राजे शाह-मोदी विरोधी गुट की हैं और अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो वो इस गुट की तरफ से आवाज उठा सकती हैं. लिहाजा बीजेपी का हाईकमान राजे को लेकर बेहद सतर्क है. क्योंकि राजस्थान की 25 सीटों पर अगर बीजेपी को पकड़ मजबूत करनी है तो फिर राजे को नाराज नहीं किया जा सकता. लेकिन फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राजे की जगह पर नया नेता तलाशने की कवायद शुरू हो गई है, बस देखना ये है कि राजे कब तक खामोश रहती हैं ?