मोदी सरकार की गलतियां जिसकी वजह से कोरोना ने कोहराम मचाया
मोदी सरकार की गलतियां देश को भारी पड़ रही हैं. केंद्र सरकार कह रही है कि पूरे देश में ऑक्सीजन की कहीं कमी नहीं है लेकिन सच्चाई सबके सामने है. और सच्चाई यह है हजारों लोग ऑक्सीजन की कमी की वजह से मर रहे हैं.
नवंबर में, स्वास्थ्य मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने कहा था कि देश में ऑक्सीजन की सप्लाई और सरकारी अस्पतालों में बेड दोनों अपर्याप्त हैं. इसके बाद फ़रवरी में, में भी जानकारों को कोरोना से बचने वाले कोहराम का अंदेशा हो गया था. मार्च की शुरुआत में, सरकार के बनाए वैज्ञानिकों के एक विशेषज्ञ समूह ने कोरोना वायरस के कहीं अधिक संक्रामक वैरियंट को लेकर अधिकारियों को चेताया था. लेकिन मोदी सरकार की गलतियां जारी रही और देश एक अंधी सुरंग में दाखिल हो गया जिससे बाहर निकलने का अभी कोई रास्ता नजर नहीं आता.
8 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन ने कोरोना महामारी के ख़त्म होने की घोषणा कर दी. ऐसे में सवाल उठता है कि आखि़र सरकार से कहां पर ‘चूक’ हो गई? यह सवाल इसलिए हम हो गया है क्योंकि देश भर में कोरोना ने कोहराम मचाया हुआ है और हजारों की तादात में मौतें हो रही हैं. इन मौतों का जिम्मेदार कौन है.
मोदी सरकार की गलतियां कहां-कहां हुई?
- जनवरी और फ़रवरी में, कोरोना के रोजाना के मामलों की संख्या घटकर 20,000 से भी नीचे पहुंच गई थी. इससे पहले सितंबर में रोज 90 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना को हरा देने का ऐलान कर दिया, जिसके बाद लोगों के मिलने-जुलने के सभी जगहों को खोल दिया गया.
- प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने को कहा, पर वे खुद पाँच राज्यों में होने वाले चुनावों की रैलियों को संबोधित कर रहे थे. इन विशालकाय रैलियों में जुटी हजारों की भीड़ में से ज्यादातर के चेहरे पर से मास्क नदारद थे.
- उत्तराखंड के हरिद्वार में लाखों की भीड़ जुटाने वाले कुंभ मेले को भी सरकार ने मंज़ूरी दी.
आपदा ने मोदी सरकार की पोल खोल दी
इस आपदा ने अच्छे से बता दिया कि भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य का ढांचा कितना कमज़ोर है और दशकों से इसकी कितनी उपेक्षा की गई है. अस्पतालों के बाहर बिना इलाज के दम तोड़ने वाले लोगों को देखकर केवल दिल नहीं नहीं दहल रहे हैं. ये नजारे बता रहे हैं कि हेल्थ सेक्टर के बुनियादी ढांचे की असलियत आखि़र क्या है. स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी सरकार की हाल की योजनाओं जैसे स्वास्थ्य बीमा और ग़रीबों के लिए सस्ती दवा, भी लोगों को बहुत मदद नहीं मिल पा रही है. वह इसलिए कि मेडिकल स्टाफ या अस्पतालों की संख्या बढ़ाने के लिए बीते दशकों में बहुत कम प्रयास हुआ है.
मोदी सरकार की गलतियां देश को भारी पड़ी
निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों को मिलाकर देखें तो पिछले छह सालों में भारत का स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का लगभग 3.6 फ़ीसदी रहा है. 2018 में यह ब्रिक्स के सभी पांच देशों में सबसे कम है. सबसे अधिक ब्राजील ने 9.2 फीसद, जबकि दक्षिण अफ्रीका ने 8.1 फीसद, रूस ने 5.3 फ़ीसद और चीन ने 5 फ़ीसदी खर्च किया. यदि विकसित देशों की बात करें तो वे स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का कहीं ज्यादा हिस्सा खर्च करते हैं. 2018 में, अमेरिका ने इस सेक्टर पर 16.9 फ़ीसदी जबकि जर्मनी ने 11.2 फ़ीसदी खर्च किया था. भारत से कहीं छोटे देशों जैसे श्रीलंका और थाईलैंड ने भी हेल्थ सेक्टर पर कहीं ज्यादा खर्च किया है. श्रीलंका ने अपनी जीडीपी का 3.79 फीसदी इस मामले में खर्च किया, जबकि थाईलैंड ने 3.76 फीसदी.
अब सवाल यह है कि मोदी सरकार की गलतियां कब तक लोगों के लिए मुश्किल खड़ी करती रहेंगी. क्योंकि हाल फिलहाल में कोरोना का कोहराम कम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. मौजूदा आंकड़े इस ओर इशारा कर रहे हैं कि आने वाला वक्त और भी भयानक होने वाला है.
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