कोरोना से कितने मरे?…लाशें देखकर घाटवाले डरे
कोरोना से कितने मरे ?..इसका आंकड़ा अभी तक स्पष्ट तौर पर सामने नहीं आया है. सरकारी आंकड़े को देखें तो आपको लगेगा कि हालात काबू में हैं लेकिन घाट पर जो लोग अपनों के शव लेकर पहुंच रहे हैं वह कुछ और ही आंकड़े बयान करते हैं.
‘कोरोना से कितने मरे, यह हमसे मत पूछिए यहां देखिए’
“भाई साहब हालात बहुत खराब है मैं पिछले 20 साल से यहां परचून की दुकान चलाता हूं मैंने अपने जीवन में इतनी लाशें कभी नहीं देखी…पिछले 4 दिनों में 400 से ज्यादा मिट्टी यहां पहुंची हैं.”
सिंगीरामपुर घाट के पास परचून की दुकान चलाने वाले रंजीत कहते हैं कि हालात बहुत ज्यादा खराब है कितने लोग रोजाना मर रहे हैं इसका आंकड़ा डरावना है. सिंगीरामपुर घाट पर पहले जहां एक दर्जन के आसपास लोग अंतिम संस्कार के लिए आते थे वही पिछले करीब 3 हफ्तों से रोजाना 100 से ज्यादा लोग आ रहे हैं.
सोमवार, मंगलवार और बुधवार को सबसे ज्यादा 107, 136 और 143 लाशें घाट पर आई. उन्होंने कहा कि ज्यादातर लाशें ऐसी हैं जिनके बारे में या जिनके मौत के कारणों के बारे में लोगों को पता नहीं है. रंजीत बताते हैं लॉकडाउन में उन्होंने दुकान तो बंद कर दी लेकिन अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामान की तलाश करते हुए लोग उनके घर तक पहुंच जाते हैं.
कफन जमा करने वाली ने बताया कोरोना से कितने मरे
सिंगीरामपुर में गंगा घाट पर कफन जमा करने वाली संगीता बताती है कि उन्होंने भी अपनी पूरी जिंदगी में कभी इतनी लाशें एक साथ जलती हुई नहीं देखी. संगीता की उम्र 58 साल है और वह पिछले 30 सालों से घाट पर कफन और बांस जमा करके अपनी रोजी-रोटी चलाती हैं.
सिंगीरामपुर की तरह ही फर्रुखाबाद के ढाई घाट का भी हाल है. यहां भी पिछले करीब 2 हफ्तों से रोजाना 50 से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. कोरोना से पहले जहां दिनभर में 8 से 10 लोगों का अंतिम संस्कार होता था वहीं अब मिट्टी लाने वाले ट्रैक्टरों की लाइन लगी रहती है. ढाई घाट के पास में ही शमशाबाद कस्बे में मेडिकल की दुकान करने वाले भोले बताते हैं कि उन्होंने पिछले दो हफ्तों में जो देखा है वह पहले कभी नहीं देखा.
सरकार सच नहीं बता रही कि कोरोना से कितने मरे
भोले ने बताया, “सरकार झूठ बोल रही है कोरोना से मरने वाले लोगों के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं सच्चाई इससे बहुत अलग है. उन्होंने बताया कि ढाई घाट पर करीब 80 ग्राम पंचायतों के लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. पहले जहां रोजाना 10 लोग अंतिम क्रिया कर्म के लिए आते थे वहीं अब यह आंकड़ा 50 के पार हो गया है. ऐसा शायद ही कोई गांव बचता है जहां कोई मरता नहीं है”
सिंघीरामपुर और ढाई घाट की तरह ही फर्रुखाबाद के घटिया घाट में भी लाशों का अंबार लगा रहता है, घटिया घाट में पुल के पास पान की दुकान करने वाले रमेश ने बताया, “मैंने ऐसा दर्दनाक मंजर कभी नहीं देखा…साहब इतने लोग मर रहे हैं जैसे मरी पड़ी हो… रोजाना 100 से ज्यादा लाशें यहां आती हैं जिसमें से ज्यादातर लोग बताते हैं इलाज ना मिल पाने की वजह से मौत हुई है”
कोरोना से कितने लोग मर रहे हैं इसका आंकड़ा निकालने के लिए आप किसी भी घाट पर चले जाइए और सुबह से शाम तक उस घाट पर बैठकर चिताओं को गिनीय आपको अंदाजा हो जाएगा कि कितने लोग काल के गाल में समा रहे हैं. बहुत से लोगों का कहना है कि इस तरह का भयानक मंजर उन्होंने कभी नहीं देखा.
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