कविता: हमने सोचा था ट्रेन से हम घर जाएंगे

Balasore train accident

कविता: बालासोर ट्रेन हादसे ने इंसानियत को दहला दिया था. इस हादसे के बाद लोगों ने अपनी भावनाओं को वयक्त किया. ऐसी ही एक भावनों से भरी एक कविता यहां आपके लिए लेकर आया है राजनीतिक ऑनलाइन.

हमने सोचा था ट्रेन से हम घर जाएंगे,
हमें क्या पता था हम ट्रेन में मर जाएंगे.

चलो मर भी गए मरना सभी को है एक दिन,
सोचा न था कि मर कर लाशों के ढेर बन जाएंगे.

कफ़न तक नसीब नहीं हुआ हमें मरने के बाद,
वो कहते हैं हमारे जूते, कपड़े भी स्वर्ग जाएंगे.

मरने के बाद हम कण्डों की तरह फेंके गए,
उनकी योजना में हम ऐसे ही तर जाएंगे.

लाशों के ढेर में पिता ढूँढ़ रहे थे हमारी लाश को,
हम उनको मिले ही नहीं, खाली हाथ वो घर जाएंगे.

सबको पता है लाशों का उनको पुराना शौक है,
तमाम हादसों की तरह इसे भी भूल जाएंगे.

साहब फिर झूठ,मक्कारी और जुमलों में व्यस्त हो जाएंगे,
हम उनके लिए चुनाव जीतने का जरिया बन कर रह जाएंगे.

बालासोर ट्रेन हादसा

©®डॉ. मान सिंह
सम्पादक: साहित्य वाटिका पत्रिका

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