दार्जिलिंग में राहुल निवास की खोज
अगर मैं दार्जिलिंग न गया होता तो बहुत से तथ्यो से अपरिचित रह जाता. दार्जिलिंग मेरे लिए एक पहाड़ी शहर नही था, बल्कि उस शहर का नाम हैं जहाँ एक बड़ी प्रतिभा के अंतिम दिन व्यतीत हुए थे, जिन्हे बनारस के पंडितों ने “महापंडित” की उपाधि से नवाजा था और उन्होंने इस पद की गरिमा की भरपूर रक्षा की थी. उनका स्पर्श इस शहर को मिला था.
कमला जी से विवाह के बाद वे मसूरी रहे और उसके बाद उन्होंने दार्जिलिंग को अपना स्थायी निवास बना लिया था.
इतनी लंबी अवधि तक वे किसी जगह नही रहे. दार्जिलिंग की यात्रा में पहाड़ों और वादियों का अवलोकन मेरी पहली वरीयता नही थी, मुझे तो उस जमीन को छूना था जहां उनकी चरण रज गिरी हुई थी.
राहुल निवास में कोई नहीं रहता. राहुल जी को 14 अप्रैल 1963 को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी और कमला जी ने 2009 में इस दुनिया से विदा ले ली थी. जया और जेता अपनी अपनी नौकरी पर थे और यदा कदा राहुल निवास पर आते जाते रहते थे.
मेरे लिए राहुल निवास को खोजना आसान नहीं था..मेरे पास एक ही सूत्र था कि वे दार्जिलिंग के मॉल रोड इलाके में रहते हैं. मुझे लगा कि इतनी बड़ी प्रतिभा को शहर के आम लोग अगर नही तो पढ़े लिखे सभ्य लोग जरूर जानते होगे, लेकिन यह मेरा भ्रम था.
अपनी इस यात्रा का एक दिन राहुल निवास के दर्शन के लिया आरक्षित कर रखा था.
मैं दार्जिलिंग के चौक बाजार के एक होटल में रुका हुआ था. यह शहर का व्यस्त इलाका है. चौक और सिविल लाइन जैसे वर्गीकरण अंग्रेजों की इजाद थी. किसी शहर के चौक पर पुरानी आबादी आबाद रहती थी और सिविल लाइंस में अंग्रेज और उनके पिट्ठू रहते हैं या वे लोग जो अंग्रेजो की चाकरी करते हुए राय बहादुर की उपाधि हासिल कर लेते थे. वे हमारे शहरों के नए अंग्रेज होते हैं जो उनके जीवन और आदतों की नकल करते हुए बड़े होते हैं. चौक बाजार में आम आदमी खरीद फरोख्त करने आता था लेकिन जिनके पास पैसों की तंगी नही रहती थी, वे जेब और दिल खोल कर खरीदारी करते थे.
दार्जिलिंग का मॉल रोड आधुनिक और महंगा था. मॉल रोड ऊंट की पीठ की तरह ऊंचा और नीचा था, उम्रदराज लोगो को चलने में दिक्कत होती थी. उनकी सुविधा के लिए जगह जगह बेंच लगी हुई थी, ताकि जब वे थक जाए तो आराम कर सके.
राहुल निवास चौक बाजार से दूर नही था, वह मॉल रोड से थोड़ी दूर हाशिए पर था. मैने अपने टैक्सीवाले से पूछा, “क्या तुम मुझे मॉल रोड पर राहुल निवास चल सकते हो?” उसने मुझसे पूछा, “वहां कौन रहता हैं ?” वहां बौद्ध साहित्य के बड़े विद्वान और लेखक राहुल सांकृत्यायन रहते थे. वह उनके बारे में नही जानता था जबकि उनके अंतिम दिन इसी शहर में बीते थे. टैक्सी ड्राइवर पढ़ा लिखा लगता था, उसे अपने शहर के बारे में अच्छी जानकारी थी. उसने मुझसे कहा कि ‘अगर वे इतने मशहूर थे, तो राहुल निवास को दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल होना चाहिए था!’ उसकी यह बात मुझे वाजिब लगी.
हमारे देश में इस तरह की रवायत नही हैं. शहर नेता, माफिया और अभिनेता अभिनेत्रियों के पते लोगो की जुबान पर रहते हैं, लेकिन उन्हें उन लोगों के पते नही मालूम जो इस समाज को बेहतर बनाते हैं!
टैक्सी ड्राइवर ने गर्व से बताया कि अमुक जगह पर राजेश खन्ना की फिल्म आराधना की शूटिंग हुई थी और ‘मेरे सपनों की रानी कब आयेगी’ ,का फिल्मांकन हुआ था. उसने कहा कि इस फिल्म से राजेश खन्ना सुपर स्टार हो गए थे. हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हुए उसने उस स्थल की ओर इशारा किया जहां दिलीप कुमार की फिल्म ‘सगीना महतो’ की शूटिंग हुई थी.
हमें टैक्सी ड्राइवर की बात याद आ रहीं थी. जिस प बंगाल में क्म्यूनिस्ट की सता दशकों तक थी, उसने राहुल निवास को दार्जिलिंग के नक्शे में लाने की कोई कोशिश नही की. राहुल कम्यूनिस्ट थे, वे बिहार की कम्यूनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में एक थे, लेकिन इस पार्टी ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया.
हमने यह सोचा कि अगर टैक्सी ड्राइवर को राहुल निवास का पता नही मालूम तो उसे लेकर कहां कहां भटकूंगा! अतः हमने तय किया कि हम पैदल ही सैर करे. इसी बहाने मॉल रोड के भी दर्शन हो जायेगे. बच्चे भी इस प्रस्ताव से राजी हो गए. आगे चल कर मुझे पुलिस स्टेशन दिखाई दे गया, मैने सोचा कि पुलिस किसी भी शहर की सर्वशक्तिमान संस्था हैं. वे शहर के गुंडों और मावलियो के पतों के पते मालूम होते हैं, वे उन्हें पाताल से खोज लेते हैं तो उन्हें राहुल निवास का पता जरूर मालूम होगा. वहां हमे निराश नहीं होना पड़ेगा.
पुलिस अधिकारी के तेवर और रुआब को देखकर लगता था कि वह डिप्टी कप्तान के ओहदे का मालिक जरूर होगा. मैने उससे अदब के साथ पूछा..”क्या आप राहुल सांकृत्यायन के राहुल निवास का पता बता सकते हैं?” उसने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा..”यह कौन हैं?” यह उत्तर हमारे लिए अप्रत्याशित था. वह जिस जनरल नालेज की किताब घोट घाट कर पुलिस अधिकारी बने थे, वे नाम से अनजान थे. हम इतने बेअदब नही थे कि कहें कि “आप इतने बड़े लेखक को नही जानते जिसकी देश और दुनिया में धूम थी?”
हमारे अनुभव हमे बताते हैं कि इस देश में प्रतिभाओं के लिए कोई जगह नहीं हैं, उससे ज्यादा महत्व अपराधियों और राजनेताओं को मिलता हैं..उनकी मूर्तियां बनाई जाती हैं, सड़कों के नामकरण होते हैं. उनके घर के सामने चमकीले बोर्ड लगाए जाते ताकि लोग आसानी से पहुंच सके. यह रवैया सिर्फ राहुल के साथ नही, अन्य लेखकों के साथ दोहराया जाता है.
इंग्लैंड में शेक्सपियर के जीवन से संबंधित स्थलों को तीर्थस्थल बना दिया गया हैं. टालस्टाय हो या चेखव वे रूस की निधि बनें हुए हैं. वे जिस जगह पैदा हुए है या रहें हैं, वह मुबारक जगह बन चुकी है. सात्र की समाधि को देखने के लिए टिकट खरीदने पड़ते हैं. यूरोप के कई देशों के पार्कों के शिला पट्ट पर कवियों की कविताएं अंकित हैं. इस मामले में अपना देश बेहद विपन्न हैं!
आगे बढ़ने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. अचानक किताबों की बड़ी दुकान दिखाई दी..इस दुकान की अधिकांश किताबें अंग्रेजी की थी. हल्की सी उम्मीद थी कि शायद यहां राहुल निवास का पता मिल जाए. हां उसने यह जरूर बताया कि इस तरह की कोई जगह जरूर हैं लेकिन दूर है, आप टैक्सी ले लीजिए तो वह जगह आसानी से मिल जायेगी. यह उसकी बेवकूफी भरी सलाह दी..जब जगह का नाम नहीं मालूम तो किस जगह के लिए टैक्सी ली जाय! हमको सलाह देने के बाद उसने किताबों में अपना मुंह छिपा लिया.
हमे ध्यान आया कि कमला जी लोरोंटो वूमन कालेज में पढ़ाती थी, उस कालेज का नाम साउथ फील्ड कालेज हो चुका हैं. इस कालेज की स्थापना 1961 में मिंशनारियो द्वारा की गई थी. हम उस कालेज से आगे बढ़ते गए.
अचानक सड़क की दाई तरफ राहुल जी की प्रतिमा दिखाई दी और उसे देखकर चहक उठे. इतनी खुशी तो कोलंबस को अमेरिका के खोज में नही मिली होगी! उनकी प्रतिमा बहुत छोटी और धूल से अटी हुई थी. वह बेहद उपेक्षित स्थिति में थी. उसके नीचे बुद्ध का उपदेश अंकित था. यह अंग्रेजी मैं था. अनुवाद इस तरह है….
भिक्षुओं मैं नौका की तरह धर्म का उपदेश देता हूं. यह पार करने के लिए है, पकड़ कर बैठने के लिए नही हैं.
राहुल जी ने ताउम्र बुद्ध के इस उपदेश का पालन किया.
हम आश्वस्त थे कि राहुल निवास आसपास ही होगा. सड़क से गुजरनेवाले हर व्यक्ति से राहुल निवास का पता पूछता रहा लेकिन उनका पता नही मिला. हमारा धैर्य जवाब दे रहा था कि एक आदमी ने राहुल निवास का पता बताया और हमारी आंखे चमक उठी. मैने उससे पूछा..क्या आपने राहुल जी को पढ़ा हैं? उसने कहा कि नही, वह इसलिए उन्हें जानता रहा क्योंकि वह राहुल निवास के पास किराए के मकान में रहता था.
बहरहाल भटकते भटकते हम राहुल निवास तक पहुंच ही गए. उनका मकान उतराई पर था मकान के पीछे पहाड़ियां थी. यह मॉल रोड से अलग जगह पर बना हुआ था. यह भव्य घर नही था, बस एक मध्यवर्गीय निवास था.
राहुल जी कोई अमीर लेखक नही थे, हमेशा आर्थिक कठिनाइयों में घिरे रहते थे. उनका आवास बंद था, उसके एक हिस्से में रामानुज नाथल रहते थे, जो रिटायर डिप्टी कलक्टर थे.
जब हम सीढियां उतरने लगे तो उन्होंने हमसे आने का कारण पूछा, हमने बताया कि हम राहुल निवास को देखने को इच्छा के साथ आए हैं. उन्होंने राहुल जी के बारे में कुछ सवाल पूछे. फिर सहज हो गए, उन्होंने अपने ड्राइंग रूम का दरवाजा हमारे लिए खोल दिया और खुद राहुल जी की स्मृतियों में डूब गए.
उन्होंने बताया कि 1959 में अमिताभ बच्चन अपने पिता का खत लेकर यहां आए थे. उन्हें किसी किताब की जरूरत थी जो दिल्ली में अनुपलब्ध थी. उस समय अमिताभ बच्चन फिल्मी दुनिया में नही आए थे. उन्होंने शबाना आजमी के बारे में बताया कि उन्हें उनके पिता कैफ़ी आज़मी ने भेजा था. वह राहुल जी के उपन्यास बोलगा से गंगा तक पर एक फिल्म बनाना चाहती हैं.
कमला जी ने कहा कि इसके बारे उनके बेटी बेटे ही निर्णय ले सकते हैं. यह एक तरह का इंकार ही था, वह नही चाहती थी कि इस उपन्यास के तथ्यो के साथ कोई झेड़छाड़ की जाय.
रामानुज सर जब राहुल जी के बारे में बताते थे तो उनके चेहरे की दीप्ति बढ़ जाती थी. उन्हें एक महामानव के निवास के एक खंड में रहने का गौरव हासिल था, वह इस खुशी को छिपा नहीं पा रहे थे. उनके पास राहुल जी को लेकर अनेक किस्से थे. अब आखिरी किस्सा–
एक बार फौज की टुकड़ी के साथ एक आदमी आया तो लोग चौंक उठे. बाद में पता चला कि वह भारत में मंगोलिया का राजदूत हैं. उसने बताया कि वह चंगेज खां के मुल्क का रहनेवाला है, उसने मानवता को नष्ट करने के साथ इतिहास को नष्ट किया है. यहां तक कि लोगो को उसकी कब्र का भी पता नही हैं. हमे हमारे इतिहास की जानकारी नहीं है, राहुल जी ने मंगोलिया का इतिहास लिखा हैं,मुझे वह किताब चाहिए.
कमला जी ने कहा कि उनके पास उस किताब की एक ही प्रति हैं, फोटो स्टेट में कई दिन का समय लगेगा. उसने कहा कि वह होटल में दो तीन दिन के लिए रुक कर किताब की कापी करवा लेगा. उसने कमला जी के साथ जो आदर और प्रेम भाव प्रदर्शित किया, उसे बताते हुए रामानुज जी सजल हो गए थे. उन्होंने हमे दार्जिलिंग की असली चाय पिलाई और हमे प्रेम से विदा किया. हमने उनके साथ कई फोटोग्राफ लिए और उन्हें धन्यवाद अर्पित किया.
इस तरह यह दिन मेरे जीवन का यादगार दिन बन गया. हमने राहुल जी को नही देखा था, लेकिन उनके घर को छू आया था जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी.
(लम्बे यात्रा वृत्तान्त का एक अंश)
लेखक: स्वप्निल श्रीवास्तव
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