कर्नाटक चुनाव के बाद गोदी में बैठे चिल्गोज़े क्यों भागे?

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कर्नाटक का नाटक बहुत दिलचस्प रहा. ये चुनाव कई माएने में एतिहासिक कहा जाएगा. चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटें जीतकर सरकार बना ली है. और इधर गोदियों का हाल क्या है इस लेख में पढ़िए.

पवन सुत हनुमान जी ने साफ़ कह दिया कि मुझे राजनीति से दूर रखो वरना मैं तुम्हारी लंका भी फूंक दूंगा. उन्होंने संजीवनी बूंटी के लिए पहाड़ उठाने से साफ़ इंकार कर दिया.

“बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले.”

कांग्रेस मुक्त मुल्क की परिकल्पना ने अब राष्ट्रवादी नेताओं को समझा दिया है कि प्रजातांत्रिक देश में जातियों को बांट कर राज करने की परिपाटी चलने वाली नहीं!!

मोदी जी के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो जा सकता है, मगर जीता नहीं जा सकता. यह कर्नाटक के वोटर्स ने देश के जुड़वां नेतृत्व को बता दिया है. डबल इंजन पटरी से उतर गया है. 🥱

हनुमान चालीसा पढ़ने वालों को हनुमान जी ने बता दिया है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम को राजनीति में इस्तेमाल करना उनको अच्छा नहीं लगा. उन्होंने हवा बदल दी. पवन सुत ने बता दिया कि वह “यूज़ एंड थ्रो” वाली बाजारू चीज़ नहीं. उनके नाम और वज़ूद को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.🤨

कर्नाटक में भाजपा के सारे एजेंडे खोखले हथकण्डे साबित हुए और अब राजस्थान में पुराना खेला होगा. यहां भी करेला नीम पर चढ़ाया जा रहा है.

केरल वाली फ़िल्म राजस्थान में दिखा कर भाजपा हिंदुओं को पोलेराइज़्ड करने में व्यस्त है, मगर क्या हिन्दू मुसलमानों के बीच नफ़रत पैदा करने से कोई पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रह सकती है?

यह सवाल यहां विक्रमादित्य की पीठ पर बेताल बन कर लटक गया है. 🫢

राहुल गांधी को “पप्पू” कह कर मज़ाक उड़ाने वालों को अब समझ में आ गया होगा कि कर्नाटक में कौन पप्पू सिद्ध हुआ❓️🤪

दोस्तों! जो लोग मुझे लागातार पढ़ रहे हैं वह मेरे ब्लॉग्स की सच्चाई से पूरी तरह से वाकिफ़ हैं. मैं लगातार कहे जा रहा था कि कर्नाटक में भाजपा को “करंट वाले हनुमान जी” के साक्षात दर्शन हो जाएंगे.

राजस्थान के चुनाव सर पर हैं. बिजली के तार पर गीले कपड़े सुखाए जा रहे हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेता अपने अपने हाईकमान को मज़ा चखाने के मूड में हैं.

कांग्रेस में सचिन पायलट ने ख़ुद के सामने हाईकमान को बौना सिद्ध करने की शपथ खा ली है. धरने और पद यात्रा (पद के लिए यात्रा) से आतंकित कर रखा है. अशोक गहलोत इस्तीफों जैसे तेवरों से डरा धमका रहे हैं.

उधर भाजपा हाईकमान वसुन्धरा के क़द को कम करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही. कांग्रेस तो कांग्रेस, भाजपा भी उनको मिट्टी में मिलाने के सारे इंतज़ाम कर चुकी है. सचिन और गहलोत इन दिनों वसुंधरा के विरुद्ध जिस तरह से आरोपों की तलवारें हवा में घुमा रहे हैं, उसपर अब विराम लगने का वक़्त आ गया है.🤷‍♂️

मैं कई सालों से बराबर लिख रहा हूँ कि मूर्खों!! वसुंधरा को हलवा मत समझो! उनको निगलना आसान है! हज़म करना बहुत मुश्किल!

मोदी और शाह के इशारों पर नड्डा और पूनिया, उनके पर कतरने का जो मुहीम छेड़े हुए थे, क्या वह अब क़ायम रह पायेगा????❓️

बराबर कहा जा रहा था कि मोदी जी के चेहरे पर ही राजस्थान का चुनाव लड़ा जाएगा. किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा. 🙄

कर्नाटक में मोदी जी ने अनावश्यक रूप से अपने अंतरराष्ट्रीय चेहरे पर चेचक के दाग लगवा लिए हैं. मात्र 65 सीट्स! ये भी तब जब मोदी जी ने अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया ! बजरंग बली तक को मैदान में उतार दिया!ज़रा सोचो कि यदि मोदी जी चुनाव में सीधे तौर पर नहीं उतरते ! हनुमान और केरल स्टोरी को चुनावों में नहीं उतारा जाता, तो कितनी सीट्स भाजपा को मिलतीं❓️😨

दस बीस सीट्स पर सिमट जाती बेचारी राष्ट्रवादी पार्टी!🤦‍♂️

मित्रों! कर्नाटक चुनावों के बाद मोदी जी और अमित शाह की बुद्धि ठिकाने आ गई होगी. उम्मीद है कि इस बार राजस्थान में अश्वनी वैष्णव! ओम बिड़ला! भूपेंद्र यादव! गजेन्द्र सिंह शेखावत! या ऐसे और कोई आयातित नाम राजस्थान में नहीं उतारे जाएंगे.❌

मोदी जी अपना चेहरा भी चुनाव में नहीं उतारेंगे! हनुमान जी को भी दांव पर नहीं लगाएंगे. इस बार किसी प्रांतीय और चर्चित लोकमान्य चेहरे को ही सामने रखा जाएगा! 💁‍♂️

मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि वसुंधरा पर लाख तोहमतें लगा दी जाएं, मगर उनके आभामंडल को अंधियारे में धकेल कर भाजपा कर्नाटक जितनी सीट्स भी नहीं ला पाएगी? किसी भी यज्ञ में स्थानीय देवता का आव्हान किये बिना काम नहीं चलता. 😒

यहाँ दो टूक सत्य यही है कि भाजपा को अगले चुनावों की बांगडोर वसुंधरा को ही सौंपनी पड़ेगी. लाख कमियों को गिनाने के बावज़ूद. 💯

इधर कांग्रेस के हौंसले बुलंद है. राहुल, प्रियंका और खड़गे की जयजयकार हो रही है.

ज़ाहिर है कि अब कांग्रेस हाईकमान वास्तव में अपनी ताक़त को पहचानेगा.

गहलोत और सचिन की हिमाक़तों पर तत्काल ब्रेक लगाएगा. इन दोनों नेताओं की हठधर्मिता! बड़बोलेपन!और अनचाहे ठसके पर लगाम लगाएगा! 👍

इन दोनों नेताओं की आपसी कलह ने जीते हुए चुनाव को भाजपा के सामने पत्तल सजा कर परोसने का बंदोबस्त कर रखा है. अब और उनका खेल नहीं चलने वाला! 🤨

सचिन और गहलोत दोनों को पार्टी का “एसेट्स बताने वाले राहुल गांधी को अब अहसास हो गया होगा कि ये दोनों ही नेता पार्टी के “एसेट्स” नहीं “अपसैट्स” हैं. दोनों ही आत्ममोह में पागल हो रखे हैं..पार्टी से अपने आपको ज़ियादा ही बड़ा समझ रहे हैं. 😣

राहुल गांधी अब तक कर्नाटक की लड़ाई जीतने में व्यस्त थे और ये दोनों चल संपत्तियां (एसेट्स) ये समझ रही थीं कि पार्टी उनकी जेब में रखा ख़ाली पर्स हैं. 🤪

मुझे पता है कि अब क्या होगा❓️अंतिम बार दोनों एसेट्स को ख़ाल में रहने की हिदायत दी जाएगी. ख़ास तौर से सचिन को.

मुझे यह भी मालूम है कि सचिन की मुख्यमंत्री बनने की तलब इतनी आसानी से समाप्त नहीं होगी. यह कीड़ा अपनी कुलबुलाहट नहीं छोड़ पाएगा.

इस कीड़े की प्रजाति ही कुछ टिपिकल टाइप की है. 😟

इधर अशोक गहलोत किसी भी क़ीमत में टिकिटों के बंटवारे का दायित्व किसी और को नहीं देना चाहेंगे. हाईमान यह अधिकार अपने हाथ में रखना चाहेगा. टिकिट खड़गे और राहुल बांटेंगे.

सचिन के लोगों को पर्याप्त टिकट देने के लिए आश्वस्त किया जाएगा ताकि वह पार्टी में ही रहने को तैयार हो जाएं.🙋‍♂️

यदि उन्होंने राहुल को आंखे दिखाईं तो वह सियासत की चरागाह में धक्का देकर छोड़ दिए जाएंगे.💯

अब भाजपा में वह होगा जो प्रदेश के नेता चाहेंगे और कांग्रेस में वह होगा जो राहुल चाहेंगे. 👍

इति श्री राजनीतिक रामायनम द्वितीय अध्य्याय: समाप्त:

लेखक: सुरेंद्र चतुर्वेदी

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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