कैसे हैक हुआ देश का सबसे बड़ा अस्पताल AIIMS ?

जब हम फाइव जी में जा रहे हैं…डिजिटल हो रहे हैं तब एक डराने वाली खबर आई और इसमें सबको हैरान कर दिया…बहुत बड़ी चिंता की बात है ये…क्योंकि देश का सबसे बड़ा अस्पताल हैक हो गया और किसी को कानों कानों खबर नहीं हुई…आप हम और हम सब जानते हैं कि हिंदुस्तान का सबसे पुराना, बड़ा और भरोसेमंद अस्पताल दिल्ली का AIIMS है…
AIIMS यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान…आप भी अगर कभी एम्स में इलाज के लिए गए हैं तो आपके लिए भी ये पढ़ना जरूरी है….एम्स सबसे सुरक्षित हॉस्पीटल भी माना जाता था 23 नवंबर 2022 तक….क्योंकि क्योंकि इस दिन एम्स अस्पताल के कम्प्यूटर सर्वर पर एक ज़बर्दस्त साइबर अटैक हुआ था… इसके बाद लगभग सभी सर्वर ठप पड़ गए….अब लीपापोती हो रही है…आरोप मढ़े जा रहे हैं…जांच हो रही है….
1956 में एम्स को मरीजों के खोला गया था…लेकिन कम्प्यूटर पर डेटा सुरक्षित रखने की तकनीक आने के बाद से एक अनुमान है कि कम से कम पांच करोड़ मरीज़ों के सभी रिकॉर्ड इस अस्तपाल में महफ़ूज़ रहे हैं लेकिन 23 नवंबर, 2022 तक. अब ऐसा है या नहीं ये कहा नहीं जा सकता…23 नवंबर हैक होने वाली चीजो में अस्पताल का ई-हॉस्पिटल नेटवर्क भी शामिल था जिसे नेशनल इंफ़ॉरमेटिक्स सेंटर (एनआईसी) संचालित करता है. अफ़रातफ़री के बीच इमरजेंसी, आउट-पेशेंट, इन-पेशेंट और सभी जांच लैबों का काम कम्प्यूटरों से हटाकर हाथ से करना शुरू करना पड़ा था…
ये सब कितना खतरनाक है…क्यों इसनें चिंता बढ़ा दी है…मामला कितना गम्भीर है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि करोड़ों मरीज़ों के निजी मेडिकल इतिहास वाले एम्स डाटा बैंक में भारत के अब तक के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों, कई वैज्ञानिकों और हज़ारों वीआईपी लोगों का भी मेडिकल रिकॉर्ड है जो ख़तरे में पड़ गया हो सकता है…सुरक्षा कारणों के चलते, बिना उस बिल्डिंग और फ़्लोर का नाम लिखते हुए, ये बताया जा सकता है कि एम्स अस्पताल के एक बड़े मेडिकल सेंटर के एक ख़ास फ़्लोर पर प्रधानमंत्री को लेकर किसी मेडिकल ज़रूरत के लिए एक वॉर्ड 24 घंटे तैयार रहता है….इसमें हर मौजूदा प्रधानमंत्री की मेडिकल हिस्ट्री लगातार अपडेट की जाती है….
इसके अलावा वहां कई प्राइवेट वीवीआईपी वॉर्ड हैं जहां पूर्व-प्रधानमंत्रियों और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का न सिर्फ़ इलाज चलता है बल्कि उनका पूरा मेडिकल इतिहास कम्प्यूटर पर हमेशा मौजूद रहता है…ये सब हुआ कैसे…और किसने किया….ये सवाल अभी अनुत्तरित है…खतरे बात सिर्फ हैकिंग नहीं है….खतरा इसलिए भी गहरा है कि हमारे सिस्टम के पास इस कोई पुख्ता इलाज नहीं है….इंटरनेट पर होने वाले क्राइम और साइबर वॉरफ़ेयर पर काम करने वाला थिंकटैंक ‘साइबरपीस फ़ाउंडेशन’ इस बारे में एक अहम आकंडा देता है….जिसके मुताबिक
“दुनिया भर में साल 2021 के दौरान हुए साइबर हमलों में से 7.7% का निशाना हेल्थ सेक्टर था जिसमें अमेरिका के बाद दूसरे सबसे ज़्यादा हमले भारत में हुए.”
एम्स पर हुए साइबर अटैक की गुत्थी अभी भी उलझी है…एम्स के सर्वर हैक करने वालों को कितना डेटा मिला होगा. ये इस पर निर्भर होगा की एम्स में मरीज़ों का इतिहास इंक्रिप्टेड प्रणाली यानी कई कोड वाली सुरक्षा में था या नहीं. लेकिन सिस्टम में कमियाँ तो थी हीं इससे इंकार नहीं किया जा सकता…
इस साइबर अटैक ने पूरी व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है….सवाल गहरे हैं और इसके जवाब आपको शायद जुलाई, 2022 में लोकसभा में केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के दिए इस जवाब से मिल जाएं जिसमें वो कहते हैं कि “साल 2019 से लेकर अब तक भारत में साइबर सुरक्षा से जुड़े 36.29 लाख मामले सामने आए और सरकार इनकी रोकथाम के लिए प्रयासरत है.” यानी सरकार अभी सिर्फ कोशिश ही कर रही है इस तरह के हमलों से निपटने के लिए….इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ज़ोर देकर कह चुके हैं कि,
“साइबर सुरक्षा सिर्फ़ डिजिटल वर्ल्ड के लिए नहीं अब राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है.”
लेकिन इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि अंतरराष्ट्रीय हैकरों ने भारत में बड़े निशानों को टार्गेट करना तेज़ कर दिया है…इसी साल अप्रैल और सितंबर महीनों में भारत की कई पावर ग्रिडों को निशाना बनाने की कोशिश हुई थी और वित्तीय क्षेत्र में बैंकों और बीमा कम्पनियों ने भी साइबर हमलों का सामना किया है…एम्स पर हुआ साइबर अटैक इसलिए भी बहुत खतरनाक माना जा सकता है क्योंकि भारत एक लाख करोड़ रुपये की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है…भारत जैसे देश में 70 करोड़ से ज़्यादा लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं और वहां अगर सबसे सुरक्षित संस्थान ही असुरक्षित है तो सवाल तो खड़े होंगे ही… नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक़, भारत में साल 2020 में साइबर क्राइम के महज़ 500,035 मामले दर्ज हुए….एनसीआरबी के ही मुताबिक़, इस बीच बैंकिंग फ़्रॉड के महज़ 4047 मामले और ओटीपी फ़्रॉड के सिर्फ़ 1090 मामले दर्ज हुए. जानकार कहते हैं कि भारत में अभी भी साइबर हाइजीन यानी सबसे बेहतर तौर-तरीक़ों पर कम ध्यान दिया जाता है. कई बार पाया गया कि कई सरकारी संस्थानों पर साइबर हमले इस वजह से हुए क्योंकि उनके कम्प्यूटर पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर चल रहे थे या फिर फ़ायरवॉल या वायरस रोकने वाले सॉफ़्टवेयर कमज़ोर थे….सिर्फ एम्स ही नहीं भारत की और भी संस्थाएं ठगों के निशाने पर हैं क्योंकि 2021 में सिंगापुर स्थित ‘सिफ़िरमा’ नाम की थ्रेट-इंटेलिजेंस कम्पनी ने सरकार को चेताया था कि
“सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बायोटेक, डॉ. रेड्डीज़ लैब, एबॉट इंडिया, पतंजलि और एम्स जैसी स्वास्थ्य सम्बंधी संस्थाओं को हैकर्स ने कथित तौर पर निशाना बना रखा है.”
अपनी जाँच में ‘सिफ़िरमा’ ने “पाया था कि ये हमले रूस, चीन या उत्तर कोरिया में मौजूद कुछ गुप्त हैकिंग नेटवर्क्स से हो सकते हैं.”
पिछले कुछ सालों में भारत में रिपोर्ट किए गए साइबर हमलों या वैसी कोशिशों की पड़ताल से पता चलता है कि एनर्जी, डिफ़ेंस, मेडिकल रिसर्च और टॉप सिक्योरिटी वाली सरकारी संस्थानों पर हैकर्स हमेशा नज़र गड़ाए रखते हैं. और जरा सी चूक से हैकर्स को नुक़सान पहुँचाने का रास्ता मिल जाता है. इसलिए ज़रूरी ये भी है कि सरकारी या प्राइवेट सेक्टर कर्मचारियों को लगातार ट्रेनिंग दी जाती रहे जिससे वे दफ़्तरों के नेटवर्क से किसी फ़र्ज़ी लिंक को क्लिक कर इंटरनेट फ़िशिंग के शिकार न हों….ये सवाल पहले भी उठा है, लेकिन फिर से उठाना ज़रूरी है कि भारत ऐसे साइबर हमलों से निपटने में कितना सक्षम है?
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