बिलकिस बानो केस में पीएम मोदी को लग सकता है बड़ा झटका!

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बिलकिस बानो केस: द्रौपदी की चीख पुकार सुनकर तत्काल मौके पर पहुंचने वाले कृष्ण कन्हैया का जन्मोत्सव है….बात महाभारत के कृष्ण की हो और मशहूर कवि कैलाश गौतम न याद आए…. ऐसा भला कैसे हो सकता है…. जी हां, मैं उसी कैलाश गौतम को याद कर रहा हूं, जिन्होंने लिखा था –

कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी

बहरहाल आते हैं हम आज के मुद्दे पर
वाह प्रधानमंत्री जी वाह, ये हुई न बात…. बेशक, राजनीति धारणा और प्रतीकों का खेल है…. और आप इस खेल के विश्व चैम्पियन… इस लिहाज से आपका जोड़ पूरी दुनिया में कोई नहीं है…. आजादी के अमृत वर्ष में आपकी पार्टी ने देश को एक महिला राष्ट्रपति दिया… वह भी आदिवासी… मतलब एक तीर से कई निशाने… इसके बाद आपने लाल किले के प्राचीर से महिलाओं के सम्मान का शंखनाद कर दिया…. डंका बज गया…
चट से आपकी डबल इंजन सरकार ने…. आपके गृहराज्य गुजरात ने नजीर पेश कर दिया… गैंगरेप और नरसंहार के आरोपियों को न सिर्फ रिहा कर दिया…. बल्कि उन्हें तिलक लगा…. मुंह मीठा कर ऐसा भव्य और दिव्य स्वागत किया गया कि द्रौपदी के कृष्ण कन्हैया भी दांतों तले अंगुली दबा लें….

वीडियो देखें

https://youtu.be/QweQcdaIT8c

बकौल अज़ीमुद्दीन साहिल कलमनूरी
क़ातिल के छूट जाने की उम्मीद बढ़ गई
बरसों से चल रहा है समाअ’त का सिलसिला
मौसम बहुत क़रीब है ‘साहिल’ चुनाव का
यूँ ही नहीं है हम पे इनायत का सिलसिला

  • (समाअ’त अर्थात ध्यान देना या सुनना)

सुना है बिहार में नीतीश जी के पाला बदलते ही जंगलराज आ गया है… बड़ी हायतोबा मची है वहां… प्रधानमंत्री जी आपने जब अपनी दूसरी पारी शुरू की थी तो आपके मंत्रिमंडल में 42 फीसदी मंत्री दागी थे…. यह मैं नहीं कह रहा हूं एडीआर की रिपोर्ट बता रही है….. इसी तरह नीतीश जी जब आपकी पार्टी के साथ थे, तो उनके मंत्रिमंडल के 64% मंत्री दागी थे…. अब 72% है…. तो क्या यह मेरी साड़ी से उसकी साड़ी सफेद कैसे वाला मामला है….

चलिए हम आज के मुद्दे से भटकना नहीं चाहते…. निर्भया केस में फांसी… बिलकिस बानो केस में माफी… क्या यही है इंसाफ?…
प्रधानमंत्री जी!…. बेशक निर्भया प्रकरण मानवता पर काला धब्बा था…. मगर इंसाफ करने की कोशिश तो हुई…. मगर बिलकिस बानो प्रकरण में तो अब सीधे न्याय व्यवस्था का ही चीर हरण हो रहा है…. लोकतंत्र लोक लाज से चलता है…. यहां न्याय होने से भी ज्यादा जरूरी न्याय होते दिखना है…. क्या यही अटल बिहारी वाजपेयी जी वाला राजधर्म है?…..


मगर क्या कीजिएगा…. चुनाव धर्म के आगे राजधर्म पनाह मांगता फिर रहा है…. बलात्कारी, हत्यारे जब जेल से बाहर निकले तो उनका स्वागत फूल मालाओं से हुआ… मिठाई खिलाई गई… क्या 75 की उम्र में हमारी राष्ट्रनीति इतनी मेच्योर हो गई है कि यह सब झेल जा रही है?…. अरे वानप्रस्थ आश्रम की उम्र तो आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए प्रेरित करती है….

सोचिए आखिर कहां पहुंच गए हैं हम?

राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि, “5 महीने की गर्भवती महिला से बलात्कार और उनकी 3 साल की बच्ची की हत्या करने वालों को ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के दौरान रिहा किया गया…. नारी शक्ति की झूठी बातें करने वाले देश की महिलाओं को क्या संदेश दे रहे हैं? प्रधानमंत्री जी, पूरा देश आपकी कथनी और करनी में अंतर देख रहा है….

प्रियंका ने ट्वीट किया है, “एक गर्भवती महिला के साथ गैंगरेप और उसकी बच्ची की हत्या के अपराध में सभी अदालतों से सजा पा चुके अपराधियों की भाजपा सरकार द्वारा रिहाई, कैमरे के सामने स्वागत- क्या अन्याय व संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं है? @narendramodi जी स्त्री का सम्मान केवल भाषणों के लिए? महिलाएं पूछ रही हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा की माने तो गुजरात सरकार का दावा है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अभियुक्तों को रिहा किया…. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 3 महीने के भीतर रिहाई पर विचार करने को कहा था…. इसलिए बलात्कार एवं हत्या के अभियुक्तों को रिहा करने का फैसला पूर्ण रूप से कार्यपालिका का है.

सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर यह फैसला किस नीति के तहत लिया गया?…


जिस मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी ने किया हो…. उस पर बिना केंद्र सरकार की सहमति के राज्य सरकार कोई फैसला कर सकती है क्या? …
जाहिर है केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या राज्य सरकार ने CRPC की धारा-435 के तहत इस मामले में कोई अनुमति ली थी?….


याद कीजिए राजीव गांधी जी के हत्यारों को रिहा करने के तमिलनाडु की जयललिता सरकार के फैसले पर उच्चतम न्यायालय ने क्या आदेश दिया था…. गुजरात सरकार ने 1992 की नीति के तहत अगर यह फैसला लिया है तो उसे 8 मई 2013 को प्रदेश सरकार ने समाप्त कर दिया है…. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा का दावा है कि गुजरात सरकार की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी 1992 की नीति का कोई जिक्र नहीं है…
गुजरात के मुख्यमंत्री जी यह बताएंगे कि क्या उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में यह बात लाई गई है?….


आपको बता दें कि 2014 के केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा निर्देशों के अनुसार हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे मामलों में अभियुक्तों की क्षमा या रिहाई पर रोक लगाई गई है.

निर्भया प्रकरण में मीडिया, समाज और पूरा विपक्ष बलात्कारियों को कठोर से कठोर सजा देने की हिमायत कर रहा था…. आज मेनस्ट्रीम मीडिया और इस देश के भाग्य विधाता जनप्रतिनिधियों को काठ क्यों मार गया है?….


कहां है क्रांतिकारी आम आदमी अरविंद केजरीवाल और विपक्ष के अन्य दिग्गज?


यह देश और यहां की सरकारें संविधान के मुताबिक चलेंगी या जाति और मजहब के मुताबिक फैसले लेंगी?

आपको बता दें कि बिल्कीस बानो मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे 11 दोषी…. सोमवार को उन्हें गोधरा उप-कारागार से रिहा कर दिया गया…. गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन लोगों की रिहाई की मंजूरी दी थी…. मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को बिल्कीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में 21 जनवरी 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी…. बाद में बंबई हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था….

2002 के दंगों में सैकड़ों निरपराध लोग मारे गए…. लेकिन जो एक मुस्लिम महिला बिल्किस बानो के साथ हुआ, उसके कारण सारा भारत शर्मिंदा हुआ था…. न सिर्फ बिल्किस बानो के साथ लगभग दर्जन भर लोगों ने बलात्कार किया…… बल्कि उसकी तीन साल की बेटी की हत्या कर दी गई….. इस मुकदमे में सैकड़ों लोग गवाह थे…. जजों ने पूरी सावधानी बरती और फैसला सुनाया था…. लेकिन इन हत्यारों की ओर से बराबर दया की याचिकाएं लगाई जा रही थीं… किसी एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस याचिका पर विचार करने का अधिकार गुजरात सरकार को है….


ऐसे बलात्कारी हत्यारे किसी भी संप्रदाय, जाति या कुल के हों, कायदे से तो वह क्षमा के योग्य हैं ही नहीं…. उन्हें निर्दोष घोषित करना और उनका सार्वजनिक अभिनंदन करना आखिर कहां का न्याय है…. ?


सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में बिल्किस बानो को 50 लाख रुपये हर्जाने के तौर पर दिलवाया था…. अब गुजरात सरकार ने इस मामले में केंद्र सरकार की राय भी नहीं ली….


उसने क्या यह काम आसन्न चुनाव जीतने और थोक वोटों को दृष्टि में रखकर किया है?
यदि ऐसा है तो क्या यह उचित है?

प्रधानमंत्री जी, आपके गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले एनसीआरबी के आंकड़े क्या बता रहे हैं…. साल 2020 में महिलाओं से दुष्कर्म के रोजाना 77 मामले दर्ज किए गए… पूरे देश में 3,72,503 मामले दर्ज किए गए…. जबकि 2019 में इसकी संख्या 4,05,326 और 2018 में 3,78,236 मामले सामने आए थे…. महिलाओं के खिलाफ हिंसा में बड़ी संख्या में दुष्कर्म के मामले सामने आए…. 2020 में दुष्कर्म के कुल 28,046 मामले दर्ज हुए और 28,153 पीड़ित अपराधियों का शिकार बने… इन पीड़ितों में 25,498 वयस्क, जबकि 2,655 पीड़ित 18 साल से कम उम्र की थीं…. 2019 में दुष्कर्म के कुल 32,033 मामले, 2018 में 33,356 मामले और 2017 में 32,559 मामले दर्ज हुए थे…. यानि 2020 में लॉकडाउन और कोरोना महामारी के बावजूद दुष्कर्म के मामलों में थोड़ी-बहुत ही कमी आई थी…

प्रधानमंत्री जी, आपसे ही शब्द उधार लेकर जानना चाहता हूं कि

‘ऐसी स्थिति में क्या हम स्वभाव से, संस्कार से रोजमर्रा की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं?


आधी आबादी को सम्मान देने की बात कही तो अक्सर अक्सर जाती है, लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
जिस संसद से कानून बनते हैं, वहां लोकसभा और राज्यसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का बिल अब तक क्यों नहीं पास हो सका?


फिलहाल लोकसभा के 543 सांसदों में से 81 और राज्यसभा के 237 सांसदों में से 33 ही महिलाएं हैं. यानी, लोकसभा और राज्यसभा में 15% से भी कम है आधी आबादी का प्रतिनिधित्व.

बाकी आप जनता जनार्दन खुद ही समझदार हैं

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