इसके बाद अखिलेश यादव को समझ लेना चाहिए कि चाचा शिवपाल अभी ‘चुके’ नहीं हैं

अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर है. चाचा की नाराजगी का भतीजे को कितना नुकसान होगा इसका अंदाजा एमएलसी चुनाव में आसानी से लगाया जा सकता है. इस चुनाव में सपा प्रत्याशियों की बुरी हार के पीछे शिवपाल की नाराजगी भी बड़ा कारण है.
जरा उस तस्वीर को याद करिए जब एमएलसी चुनाव में वोट डालकर शिवपाल यादव बूथ के बाहर निकले. उस वक्त उनके साथ उनके बेटे आदित्य यादव भी थे. बाहर निकलते ही पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया और सवाल दाग दिए. पीएसपी प्रमुख ने हर सवाल का लगभग एक ही जवाब दिया लेकिन जब उनसे पूछा गया वोट किसे दिया है? दोनों ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ का ‘उसी को दिया है जो जीत रहा है’
शिवपाल सिंह यादव के इस बयान के कई मायने निकाले गए. सियासी पंडितों ने कहा कि चाचा ने बातों ही बातों में भतीजे को संकेत दे दिया है कि वह पहला झटका देने वाले हैं. और 13 अप्रैल को जब नतीजे आए तो अखिलेश यादव को शायद अंदाजा हो गया होगा कि चाचा अभी चुके नहीं है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सियासी जमीन तैयार करने में शिवपाल यादव की बड़ी भूमिका रही है उन्होंने अपने भाई मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर इस जमीन पर संगठन तैयार करने में काम किया है.
और इसका असर चुनाव दर चुनाव दिखाई भी दे रहा है जब अखिलेश यादव को लगातार शिकस्त का सामना करना पड़ रहा है. और राजनीति को करीब से समझने वाले साफ शब्दों में कहते हैं कि इसके पीछे कहीं ना कहीं पारिवारिक कलह एक बहुत बड़ा कारण है. अगर आप एमएलसी चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो आपको इस बात का एहसास हो जाएगा कि अखिलेश यादव 2 महीने में दूसरी बार अपनी गलतियों की वजह से हार का सामना कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में 36 सीटों पर हुए चुनाव में सपा एक भी सीट जीत नहीं पाई। हैरानी की बात तो यह है कि पार्टी अपने सबसे बड़े गढ़ और मुलायम परिवार के गृहजनपद इटावा में भी बुरी तरह हार गई। अखिलेश यादव को यह झटका ऐसे समय पर लगा है जब चाचा शिवपाल यादव बागवत का बिगुल फूंक चुके हैं। दूसरी तरफ रामपुर और आजमगढ़ जैसे मजबूत सीटों पर भी सपा को हार का सामना करना पड़ा है। रामपुर के सबसे प्रभावशाली नेता आजम खान का खेमा भी अखिलेश से नाराज है तो आजमगढ़ संसदीय सीट से सपा अध्यक्ष ने हाल ही में इस्तीफा दिया है।
यहां पर मैं खासतौर पर इटावा सीट की बात करना चाहूंगा क्योंकि इस सीट पर ही शिवपाल सिंह यादव ने वोट किया था. यहां पर भारतीय जनता पार्टी के प्रांशु दत्त द्विवेदी ने समाजवादी पार्टी के हरीश यादव को बुरी तरह से हरा दिया. इटावा में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की है। एमएलसी चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार प्रांशु दत्त द्विवेदी ने 4139 वोट लेकर जीत दर्ज की तो सपा उम्मीदवार हरीश यादव को महज 657 वोट ही मिले। पार्टी में कई तरफ से उठ रहे बागी सुरों के बीच यह नतीजा अखिलेश की चिंता बढ़ाने वाला है।
लाख टके की बात यह है कि अखिलेश यादव को एमएलसी चुनाव के नतीजों के बाद इस बात का अंदाजा हो जाना चाहिए कि शिवपाल यादव अगर बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तो आने वाले चुनावों में उनके लिए जीत पाना आसान नहीं होगा. उन्हें इस बात का भी इल्म होना चाहिए कि उनकी पारिवारिक लड़ाई भले ही शिवपाल जी से हो लेकिन राजनीति इस बात को कतई स्वीकार नहीं कर रही है कि शिवपाल और अखिलेश अलग होके मैदान में उतरें.
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