गोरखपुर की ग्राउंड रिपोर्ट : योगी के इलाके में अखिलेश को क्या मिलेगा?

गोरखपुर की ग्राउंड रिपोर्ट : योगी गोरखपुर शहर सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. और इस बार उनके सामने वो उम्मीदवार खड़े हैं जो कभी उनके साथ खड़े रहे. इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने सुभावती शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो गोरखपुर में बीजेपी के कद्दावर नेता रहे दिवंगत उपेंद्र दत्त शुक्ला की पत्नी हैं.
गोरखपुर की ग्राउंड रिपोर्ट क्या है और इस बात यहां सपा मुखिया अखिलेश यादव का दांव कितना कारगर होगा ये जानने से पहले आप ये जान लीजिए कि गोरखपुर की राजनीतिक नब्ज क्या कहती है. सुभावती शुक्ला का परिवार सालों साल तक योगी आदित्यनाथ के लिए वोट मांगता रहा और आज योगी के खिलाफ़ खड़ा है. वो कहती हैं,
“हमारे पति को गुज़रे दो साल होने को हैं लेकिन योगी जी और पार्टी के बड़े नेता हमारे दरवाज़े पर नहीं आए, ये चुनाव हम अपने पति के सम्मान के लिए लड़ रहे हैं.”
सुभावती के पति उपेंद्र शुक्ला योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2018 में उनकी लोकसभा सीट के उपचुनाव लड़े लेकिन सपा-निषाद पार्टी गठबंधन के प्रवीण निषाद से हार गए. 28 सालों में ये पहली बार था जब गोरखपुर से बीजेपी को लोकसभा चुनाव में हार का मुँह देखना पड़ा था. इस हार को लेकर राजनीतिक गलियारों में ये क़यास लगने लगे कि शुक्ला का बीजेपी के ही एक धड़े ने साथ नहीं दिया. अब इस चुनाव में उनकी पत्नी योगी को चुनौती दे रही हैं जिनका अतीत में राजनीति से कोई वास्ता नहीं रहा.
गोरखपुर में कांग्रेस ने भी गोरखपुर की सियासत में दांव उसी पर लगाया है जिसका अतीत कहीं ना कहीं बीजेपी और योगी से जुड़ा रहा है. चेतना पांडे इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. साल 2005 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी में छात्र की उपाध्यक्ष रहीं चेतना लंबे वक़्त तक आरएसएस से संबद्ध छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़ी रहीं. जब कांग्रेस ने उनके नाम पर मुहर लगाई तो सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर सूबे के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ सोशल मीडिया पर शेयर की जाने लगी.
गोरखपुर का सबसे अहम फैक्टर
योगी के खिलाफ़ दोनों ही उम्मीदवार ब्राह्मण हैं. गोरखपुर में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई दशकों पुरानी है जो यहां की राजनीति में सबसे बड़ा फैक्टर है. ये लड़ाई शुरू हुई मठ के महंत दिग्विजय नाथ के ज़माने से. बताया जाता है कि दिग्विजय नाथ और उस वक़्त ब्राह्मणों के नेता सुरतिनारायण त्रिपाठी के बीच अनबन थी और यहीं से इस लड़ाई की शुरुआत हुई. इसके बाद ब्राह्मणों के नेता और बाहुबली हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई में ब्राह्मणों की कमान संभाल ली. और ठाकुरों के सबसे बड़े नेता हुए वीरेंद्र प्रताप शाही.
जानकार बताते हैं कि साल 1998 में गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला ने वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या की जिसके बाद ठाकुरों के नेतृत्व में आए खालीपन को योगी आदित्यनाथ ने भरा, यहीं से योगी आदित्नाथ के हाथों में ठाकुरों की कमान आ गई. दबदबे की लड़ाई मठ और हाता (हरिशंकर तिवारी के आवास को गोरखपुर में हाता के नाम से जाना जाता है) के बीच तेज़ हो गई. लंबे वक्त तक ये लड़ाई चलती रही और आखिरकार 90 के दशक में योगी आदित्यनाथ ने मठ की ताकत को बढ़ा लिया और हाता का वर्चस्व कम होता चला गया.
योगी की सबसे सुरक्षित सीट
गोरखपुर सीट योगी आदित्यनाथ के लिए सुरक्षित सीट है. भले ही ये उनका पहला विधानसभा चुनाव हो लेकिन वो गोरखपुर से 1998 से 2014 तक पांच बार सांसद रह चुके हैं. साल 2002 में एक नारा उछला आज तक गोरखपुर के गली-नुक्कड़ों पर सुनाई पड़ता है – गोरखपुर में रहना है तो योगी-योगी कहना है.
गोरखपुर ज़िले में नौ विधानसभा सीटें हैं
- कैम्पियरगंज
- पिपराइच
- गोरखपुर शहरी
- गोरखपुर ग्रामीण
- सहजनवा
- खजनी
- चौरीचौरा
- बाँसगाँव
- चिल्लूपार.
गोरखपुर शहर सीट के जातीय समीकरण
- सबसे ज़्यादा कायस्थ हैं जिन्हें बीजेपी का वोटबैंक माना जाता है.
- इस सीट पर करीब 4.50 लाख वोटर हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ इसमें कायस्थ 95 हज़ार हैं.
- ब्राह्मण 55 हज़ार, मुसलमान 50 हज़ार, क्षत्रिय 25 हज़ार, वैश्य 45 हज़ार हैं.
- निषाद 25 हज़ार, यादव 25 हज़ार और दलित 20 हजार हैं.
सीटों के हिसाब से गोरखपुर की ग्राउंड रिपोर्ट
कैम्पियरगंज विधानसभा सीट
- जातिगत समीकरण के आधार पर 40% निषाद मतदाता है, यादव और कुर्मी मतदाता भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.
पिपराइच विधानसभा
- निषाद जाति के 90 हजार निषाद मतदाता हैं और ओबीसी जाति के मतदाता भी निर्णायक है.
गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट
- जातिगत समीकरण के आधार पर निषाद और दलित वोटों पर सबका ज़्यादा ध्यान रहता है.
खजनी सीट
- दलित वोट निर्णायक हैं. बांसगांव विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर ब्राह्मण बाहुल्य सीट मानी जाती है.
चिल्लूपार सीट
- जाति के वर्चस्व के इतर हरिशंकर तिवारी के नाम पर वोट किए जाते रहे हैं.
यानी अगर गोरखपुर शहर की सीट को छोड़ दें तो गोरखपुर की अन्य सीटों पर सवर्ण जातियां निर्णायक भूमिका में नहीं है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन नौ में से आठ सीटों पर बीजेपी चुनाव जीती थी. गोरखपुर की राजनीति को क़रीब से समझने वाले मानते हैं कि योगी का लिटमस टेस्ट सिर्फ़ गोरखपुर शहर की सीट नहीं बल्कि ज़िले की बाकी आठ सीटों पर होगा.
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