केशव प्रसाद मौर्य क्या CM योगी को कर देंगे अनुपयोगी ? ये है वजह

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केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh assembly election 2022) से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए अचानक काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ (chief minister Yogi Adityanath) को भी पीछे छोड़ दिया है और आजकल उनकी पूछ पार्टी में बढ़ गई है. अंदर खाने इस बात का भी चर्चा है किसकी वजह से सीएम योगी खुश नहीं हैं.

केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) 2017 से पहले उत्तर प्रदेश बीजेपी (Uttar Pradesh BJP) के अध्यक्ष थे 2017 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो उन्हें सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया. अपने 5 साल के कार्यकाल में उनके और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रिश्ते कभी सहज नहीं हो पाए. दोनों के बीच मनमुटाव की खबरें सामने आती रहीं. लेकिन 2022 के चुनाव से ठीक पहले मौर्य एक बार फिर से बीजेपी के लिए काफी अहम हो गए हैं. बीते कुछ समय की खबरों पर अगर गौर करें तो आप पाएंगे की आज की तारीख में वह सीएम योगी से ज्यादा उपयोगी हो गए हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने आज उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य की बीजेपी में अहमियत को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. आज की प्रेस रिव्यू की लीड में द हिन्दू की यह रिपोर्ट पढ़िए. इस रिपोर्ट में काफी गहराई से यह समझने की कोशिश की गई है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी की राजनीति करने वाला है यह नेता बीजेपी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है. केशव प्रसाद मौर्य सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मौदान में हैं. यह विधानसभा क्षेत्र कौशांबी में है. कौशांबी इलाहाबाद के पास में ही है और इसे एक पिछड़ा ज़िला माना जाता है.

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने जिन 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, उनमें से सिराथू भी एक है. 2017 में इस सीट से बीजेपी के शीतला प्रसाद उर्फ़ पप्पू पटेल चुनाव जीते थे. स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के बीजेपी छोड़ने के बाद केशव प्रसाद मौर्य की पार्टी में ओबीसी पहचान की प्रासंगिकता को प्राथमिकता के साथ रेखांकित किया जा रहा है. बीजेपी सामाजिक समीकरण को किसी भी हाल में अपने हितों से अलग नहीं होने देना चाहती है. 16 जनवरी को पप्पू पटेल ने सिराथू से अपनी जीत के लिए केशव प्रसाद मौर्य को श्रेय दिया था.

केशव प्रसाद मौर्य योगी से ज्यादा उपयोगी

केशव प्रसाद मौर्य आरएसएस-बीजेपी का मौर्य चेहरा हैं और वो हिन्दुत्व की राजनीति में बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा हैं जिसमें ग़ैर-यादव ओबीसी समुदाय को साधने की कोशिश होती है. स्वामी प्रसाद मौर्य की पहचान केशव मौर्य से बिल्कुल अलग रही है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा हिस्सा बीएसपी को दिया और वो ख़ुद को अंबेडकरवादी कहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ब्राह्मणवादी विचारों को लेकर हमलावर रहे हैं. 

1969 में जन्मे केशव प्रसाद मौर्य ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से हिन्दी साहित्य की पढ़ाई की है.

केशव प्रसाद मौर्य कहते हैं कि वो बचपन में चाय और अख़बार बेचते थे. बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह केशव प्रसाद मौर्य की ओबीसी पहचान को प्रमुखता से बताती है. केशव प्रसाद मौर्य 2014 से 2017 तक लोकसभा के सांसद रहे. उनके लोकसभा प्रोफ़ाइल में लिखा है- बचपन में चाय बेचने के दौरान समाज सेवा और शिक्षा की प्रेरणा मिली. शुरुआत के दिनों में केशव प्रसाद मौर्य आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े थे. केशव प्रसाद मौर्य ने आरएसएस में बाल स्वयंसेवक से शुरुआत की और नगर कार्यवाह तक पहुँचे. इसके अलावा वीएचपी में संगठन मंत्री रहे.

बीजेपी का एजेंडा ग़ैर-यादव ओबीसी वोटरों को आकर्षित करना है

मौर्य गोरक्षा अभियान में भी काफ़ी सक्रिय रहे. मौर्य राम जन्मभूमि आंदोलन में भी शामिल थे. बीजेपी के भीतर केशव मौर्य क्षेत्रीय सम्न्वयक, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ और किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे. 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उन्हें बीजेपी उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया. तब मौर्य फूलपुर से लोकसभा सांसद भी थे. मौर्य को बीजेपी की कमान सौंपने के पीछे बीजेपी का एजेंडा ग़ैर-यादव ओबीसी वोटरों को आकर्षित करना था. 

आंकड़ों ने बनाया इस पिछड़ा वर्ग के नेता को मजबूत

मौर्य की जाति पूरे उत्तर प्रदेश में है. इस जाति की पहचान अलग-अलग नामों से है. जैसे- मौर्य, मोराओ, कुशवाहा, शाक्य, कोइरी, काछी और सैनी. ये सभी मिलाकर उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 8.5 फ़ीसदी हैं. पारंपरिक रूप से इनका पेशा खेती-किसानी रहा है. मौर्य के राजनीतिक करियर की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिम से लगातार दो हार से हुई थी. लेकिन 2012 में सिराथू में इन्हें जीत मिली थी. इसके बाद 2014 में मौर्य को बीजेपी ने फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार मौर्य को फूलपुर में 52 फ़ीसदी मत मिले थे. फूलपुर नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता था. यहां से नेहरू सांसद बने थे. यह पहली बार था, जब बीजेपी को यहाँ जीत मिली थी.

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2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी बिना कोई सीएम चेहरा के मैदान में उतरी थी. केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों को लगता था कि बीजेपी को जीत मिलेगी तो मौर्य मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया.

जातीय समीकरण को साधने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को दिनेश शर्मा के साथ उप-मुख्यमंत्री बनाया गया. दिनेश शर्मा ब्राह्मण चेहरा हैं और वो तब लखनऊ के मेयर थे. समाजवादी पार्टी ने बीजेपी पर सवाल उठाना शुरू कर दिया कि बीजेपी केवल पिछड़ी जातियों का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए करती है.

सीएम योगी से विवाद और सीएम की कुर्सी का इंतजार

विपक्ष लगातार यह कहता रहा है कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में किसी ओबीसी को शीर्ष की सीट नहीं देना चाहती है. हाल ही में अखिलेश ने केशव को ‘स्टूल वाले उप-मुख्यमंत्री’ कहा था. जानकार मानते हैं 2017 की शुरुआत में ही केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के रिश्ते में असहजता आ गई थी. मौर्य को राज्य सचिवालय की एनेक्स बिल्डिंग में पाँचवें फ्लोर से अलग शिफ़्ट होने के लिए कहा गया था. यह बिल्डिंग यूपी सरकार की सत्ता का केंद्र है. कई मौक़ों पर ख़ुद मौर्य ने भी योगी से मतभेद की अफ़वाह को ज़मीन दी है. मौर्य ने कहा था कि  2022 में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इसका फ़ैसला केंद्रीय नेतृत्व करेगा. केशव प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा बताने के मामले में अनिच्छुक रहे हैं.

बीजेपी के भीतर केशव प्रसाद मौर्य भड़काऊ बयानों के मामले में योगी आदित्यनाथ से कमतर नहीं हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि लुंगी और जालीदार टोपी पहनने वाले 2017 से पहले प्रदेश में व्यापारियों को डराते धमकाते थे. 

ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के बीजेपी छोड़ने पर इस विद्रोह को शांत करने की कोशिश स्वामी प्रसाद मौर्य ने की. केशव प्रसाद मौर्य ने इन नेताओं को अपने फ़ैसले पर फिर से विचार करने की अपील की. लेकिन योगी आदित्यनाथ की तरफ़ से ऐसी कोई अपील नहीं हुई. लेकिन जवाब में स्वामी प्रसाद मौर्य ने 14 जनवरी को समाजवादी पार्टी में शामिल होने के वक़्त कहा था कि केशव प्रसाद मौर्य को अपनी जगह पार्टी में देखनी चाहिए. स्वामी प्रसाद ने कहा था कि मौर्य बीजेपी में हाशिए पर हैं.

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