यूपी चुनाव : BJP वालों को सपा से जोड़कर बड़ी मुश्किल में फंसे अखिलेश
यूपी चुनाव : उत्तर प्रदेश में राजनीति रोज नया रंग लेती जा रही है. जानकारों के लिए इस बात का आकलन मुश्किल हो रहा है कि कौन किस पर हावी है. सपा मुखिया अखिलेश के आगे बीजेपी नेताओं को पार्टी में शामिल कराने के बाद एक बड़ी मुसीबत आ गई है.
यूपी चुनाव : अखिलेश आजकल बहुत खुश दिखाई दे रहे हैं उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं को तोड़कर सपा में शामिल कराया है और प्रदेश में यह माहौल बना है कि 2022 में अखिलेश की सरकार बन सकती है. स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धन सिंह सैनी जैसे मंत्रियों के अलावा कई बीजेपी विधायकों ने सपा का दामन थामा है.
सियासत में परसेप्शन यानी धारणा का बहुत महत्व है और अखिलेश ने परसेप्शन अपने पक्ष में बनाने का कामयाब जतन किया है. लेकिन अब उनके सामने मुसीबत यह है कि वह टिकट किसे दें और किस का पत्ता काटें. क्योंकि बीजेपी से नए लोग आने के बाद एक एक सीट पर दावेदारों की संख्या बढ़ गई है.
यूपी चुनाव से पहले अखिलेश की सबसे बड़ी मुश्किल
अखिलेश को 18 से अधिक विधानसभा सीटों पर टिकट वितरण में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा जहां भाजपा और बसपा के मौजूदा विधायक सपा में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा अखिलेश ने सात छोटी पार्टियों के साथ भी गठबंधन किया है, जो अपने-अपने कार्यकर्ताओं को टिकट दिलाने की होड़ में हैं।
उदाहरण के लिए सहारनपुर जिले का नकुड़ विधानसभा क्षेत्र लें। सपा में शामिल होने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार के मंत्री पद को छोड़ने वाले धर्म सिंह सैनी नकुड़ से दूसरी बार विधायक हैं और इस बार के विधानसभा चुनावों में भी इस सीट के एक प्रमुख दावेदार हैं।
हालांकि कांग्रेस के पूर्व नेता इमरान मसूद जिन्होंने हाल ही में सपा में जाने के लिए अपनी पार्टी छोड़ दी थी। वे 2017 और 2012 के विधानसभा चुनावों में नकुड़ सीट पर सैनी से चुनाव हार गए थे और दूसरे नंबर पर रहे। इस हफ्ते की शुरुआत में अखिलेश से मिलने वाले इमरान मसूद भी इस सीट से सपा के टिकट के मजबूत दावेदार हैं।
सैनी और मसूद के अलावा कई और स्थानीय सपा कार्यकर्ता भी हैं जो नकुड़ से पार्टी का टिकट चाहते हैं। सपा के कार्यकर्ताओं का दावा है कि वे हमेशा से पार्टी के साथ रहे हैं और उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया है, भले ही पार्टी 2017 से सत्ता से बाहर क्यों न हो।
अखिलेश को 18 से अधिक विधानसभा सीटों पर इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा जहां भाजपा और बसपा के मौजूदा विधायक सपा में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा अखिलेश ने सात छोटी पार्टियों के साथ भी गठबंधन किया है, जो अपने-अपने कार्यकर्ताओं को टिकट दिलाने की होड़ में हैं। यह अखिलेश के लिए काफी मुश्किल स्थिति पैदा कर सकता है।
अखिलेश यादव को यह डर भी सताने लगा है कि कहीं ऐसा ना हो कि जिस वजह से वह जीत का दम भर रहे हैं वही हार का कारण बन जाए. पिछले 5 सालों से पार्टी के लिए दिन-रात जूझ रहे कार्यकर्ता अगर टिकट ना मिलने की वजह से नाराज होते हैं तो उसका खामियाजा कहीं ना कहीं समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ेगा.
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