क्या अखिलेश को मिल गया 2022 जीतने का संकेत, अमित शाह भी हैरान

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उत्तर प्रदेश में 2022 का विधानसभा चुनाव धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ रहा है. मुकाबला सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच है. लेकिन क्या अखिलेश यादव योगी आदित्यनाथ से 20 साबित हो रहे हैं? चलिए इसकी पड़ताल करते हैं.

आम तौर पर चुनाव पूर्व सर्वे सत्ताधारी पार्टी को बढ़त दिखाते हैं लेकिन जनता का मिजाज अक्सर सर्वे के रिजल्ट से अलग होता है. जनता के उसी मिजाज की बानगी देखने को मिली अखिलेश यादव के पूर्वांचल दौरे में. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जिस पूर्वांचल से शत-प्रतिशत सफलता मिली थी आज की तारीख में वहां लोगों का मन बदल रहा है.

पूर्वांचल की राजनीति में गोरखपुर (Gorakhpur) और आजमगढ़ (Azamgarh) दो ध्रुव हैं. एक में बीजेपी (BJP) का तो दूसरे में उसके मुख्य विरोधी सपा (Samajwadi Party) का कब्जा है. इस बार दोनों पार्टियां एक दूसरे के किले को ध्वस्त करने में जुटी हुई हैं. शनिवार 13 नवम्बर का दिन यूपी विधानसभा के लिए बहुत खास रहा. दो बड़ी पार्टियों के बड़े नेताओं में इतिहास बदलने की तड़प दिखी. एक तरफ आजमगढ़ में योगी-शाह ने रैली की तो दूसरी तरफ गोरखपुर में अखिलेश यादव ने रथयात्रा की. दोनों एक दूसरे के गढ़ में एक ही दिन हुंकार भरते नजर आये.

लेकिन पूर्वांचल की राजनीति को करीब से समझने वाले लोग बताते हैं के इस दौरे में अखिलेश यादव अमित शाह पर हावी दिखे. अमित शाह ने जहां समाजवादी पार्टी पर जैम कह के निशाना साधा वही सपा मुखिया ने उन्हें अपने ही अंदाज में जैम का मतलब समझा दिया. अखिलेश यादव ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी झूठ, अहंकार और महंगाई वाली पार्टी है 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता इस पार्टी को नकार देगी.

2017 के चुनाव के आंकड़े ही देखना काफी होगा लेकिन, इससे पहले जानते हैं कि दोनों शहर खास कैसे हैं. सबसे पहली बात तो ये कि गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र रहा है. वे यहां से कई बार सांसद चुने गये हैं. सीएम बनने से पहले वे गोरखपुर से ही सांसद थे. आजमगढ़ से अखिलेश यादव मौजूदा सांसद हैं लेकिन, दोनों ही पार्टियों के नेता एक दूसरे का किला ध्वस्त करने की कोशिशों में लगे हुए हैं.

2017 के चुनाव में तमाम समीकरण टूट गये लेकिन, आजमगढ़ में बीजेपी की किस्मत नहीं खुली. ये जिला उसके लिए हमेशा से टफ रहा है. 2012 के विधानसभा चुनाव में तो सपा ने 10 में से 9 सीटें जीत ली थीं. बसपा को एक सीट मिली थी जबकि बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था. अब इन 10 सीटों पर बीजेपी की नजर है. पार्टी को लगता है कि आजमगढ़ में सपा का ग्राफ गिर रहा है. 2012 में सपा ने 9 सीटें जीती थीं लेकिन, 2017 में वो सिर्फ 5 सीटें ही जीत पायी. शायद इसीलिए बीजेपी यहां बड़ी सेंधमारी की जुगत में है. अमित शाह ने अपने भाषण की शुरुआत ही इसी बात से की कि आजमगढ़ से उठने वाली आवाज लखनऊ तक जानी चाहिए. इस बार आजमगढ़ की सभी की सभी सीटों पर कमल खिलने वाला है.

जो हाल बीजेपी का आजमगढ़ में है वही हाल सपा का गोरखपुर में है. इसीलिए अखिलेश यादव इस जिले में सफलता की ताक लगाये हुए हैं. आंकड़े देखिये. 2012 में प्रदेश में अखिलेश यादव की पूर्ण बहुमत की सपा सरकार बनी लेकिन, उनके मन में भी एक मलाल रह गया होगा कि गोरखपुर का किला नहीं टूट सका. 2012 में गोरखपुर की 9 सीटों में से सपा को महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था. चार सीटें बसपा ने जबिक तीन बीजेपी ने जीती थी. NCP को एक सीट मिली थी. 2017 के चुनाव में तो सपा खाली हाथ ही हो गयी. बीजेपी ने न सिर्फ 9 में 8 सीटें जीत ली बल्कि पिपराइच की सपा की सीट भी उससे छीन ली. 

पूर्वांचल में कौन किस पर भारी?

पूर्वांचल आमतौर पर आखिरी समय में अपने पत्ते खोलता है लेकिन इस बार यहां लोगों के मन में महंगाई और बेरोजगारी का असर घर कर गया है. गोरखपुर और कुशीनगर में जिस तरह से अखिलेश यादव का लोगों ने स्वागत किया उससे समाजवादी पार्टी का मनोबल बढ़ गया है. आमतौर पर गोरखपुर में सीएम योगी आदित्यनाथ का सिक्का चलता है लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां जनता किसे सपोर्ट करेगी इसका सही-सही आकलन करना काफी मुश्किल है. चोरी-छिपे लोग एक बार फिर से अखिलेश को सत्ता में लाने की बात करते हैं. वहीं दूसरी तरफ अगर गृह मंत्री अमित शाह का पूर्वांचल दौरा देखा जाए तो वह अपने चित परिचित अंदाज में प्रचार करते हुए दिखाई दिए लेकिन लोगों में उनके दौरे को लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं थी.

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