“बीरबल की खिचड़ी” बन गयी यूपी में MSME, लेटलतीफी और अव्यवस्था से सीएम के सपने हो रहे चकनाचूर

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उत्तर प्रदेश में जिन 80 से 85 लाख MSME इकाइयों के स्थापना का जिक्र किया जा रहा है उसकी मौजूदा स्थिति पर भी गौर करने की जरूरत है |

भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ एमएसएमई है | कोरोना काल में सबसे ज्यादा चोट इसी पर हुई और अब सरकार इसकी मरम्मत करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है | हमें हकीकत और फसाने के फर्क को समझना जरूरी है | उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पिछले 11 नवंबर 2021 को  कानक्लेव-कम-एक्सपो का शुभारंभ किया था | इस मौके पर उन्होंने  कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन है कि भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन का बड़ा हिस्सा बनाया जाए। इस उद्देश्य को पूरा करने में उत्तर प्रदेश की अहम भूमिका रहेगी | 

एक हद तक उनकी बात सही है | सरकार के ही आंकड़े कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में पहले से लगभग 90 लाख के आस-पास सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाइयां स्थापित है। वर्तमान सरकार के प्रयासों से मात्र साढ़े चार वर्षों में 80 से 85 लाख नई एमएसएमई की स्थापना हुई है | 

इसी कार्यक्रम में अपर मुख्य सचिव, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम डा0 नवनीत सहगल ने कहा कि उत्तर प्रदेश लैण्ड-लॉक स्टेट की श्रेणी में आता है, फिर भी यूपी में निर्यात का बड़ा स्कोप है। अगले तीन वर्षों में तीन लाख करोड़ निर्यात के लक्ष्य को प्राप्त करने में फण्ड की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। सरकार प्रदेश के हर जिले का एक्सपोर्ट प्लान तैयार करा रही है | 

कोरोना महामारी के दौरान जब अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही थी, छोटे और मझोले उद्योग तबाह हो रहे थे तब एमएसएमई ने आशा की किरण जगाई | पीएमईजीपी और एमवाईएसवाई जैसी सरकारी योजनाओं ने कई युवाओं को उनके सपने साकार करने का मौका दिया | उत्तर प्रदेश में जिन 80 से 85 लाख एमएसएमई इकाइयों के स्थापना का जिक्र किया जा रहा है उसकी मौजूदा स्थिति पर भी गौर करने की जरूरत है | सरकार की मंशा प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करने की है इसमें किसी को कोई शक नहीं और इसके लिए सरकार ने कई बेहतरीन योजनाएं भी जमीन पर उतारी हैं | 

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन योजनाओं का लाभ क्या उन लोगों को मिल पा रहा है जिनके लिए इन्हें बनाया गया है. सवाल यह भी है कि जिन्हें इन योजना का लाभ मिला है क्या वह लाभान्वित हो पा रहे हैं या फिर वह कर्ज के चक्कर में फस कर मानसिक यातनाएं झेल रहे हैं | उत्तर प्रदेश में पिछले 4 वर्षों में एमवाईएसवाई और पीएमईजीपी योजना का लाभ लेकर कई औद्योगिक इकाइयां लगाई गई हैं | लेकिन अभी भी इनका संचालन सुचारू रूप से नहीं हो पाया है | सरकारी पोर्टल और आंकड़ों में इनका जिक्र जरूर मिलता है लेकिन जमीन पर जवाब जाएं तो हकीकत बहुत अलग है |

मैंने एक दर्जन से ज्यादा एमएसएमई की नवनिर्मित इकाइयों में जाकर देखा है. और महसूस किया है कि सरकार की अच्छी योजनाओं को कैसे व्यवस्था की लेटलतीफी ने पलीता लगाया है. लेटलतीफी क्यों होती है इसे समझने के लिए आपको पूरे चक्र को समझना पड़ेगा | एमएसएमई इकाई स्थापित करने के लिए सबसे पहले आपको जिला उद्योग केंद्र में जाकर जिला उद्योग अधिकारी को एक प्रस्ताव देना पड़ता है | जिसे आप प्रोजेक्ट प्रपोजल कह सकते हैं | इस प्रपोजल में लाभार्थी बताता है कि उसे कौन सा उद्योग लगाना है और उसके लिए उसे कितनी रकम की जरूरत होगी |

उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में जिला उद्योग केंद्र हैं और यहीं से उस प्रोजेक्ट प्रपोजल को जांचने परखने के बाद लाभार्थी से औपचारिक साक्षात्कार करने के पश्चात जिला उद्योग केंद्र कुछ दस्तावेजों की मांग करता है और सम्बंधित फाइल को बैंक में ट्रांसफर कर देता है | अमूमन इस प्रक्रिया में 1 से 2 दिन का समय लगता है लेकिन व्यवस्था की लेटलतीफी कभी-कभी इसमें 2 से 3 हफ्ते या महीने भर का समय लग जाता है | 

जिला उद्योग केंद्र में लाभार्थी को व्यवस्था से कैसे टकराना है इसकी बानगी भर मिलती है | असल लड़ाई बैंक में शुरु होती है | वैसे तो जिला उद्योग केंद्र से फाइल बैंक में आने के बाद आगे की प्रक्रिया में 15 से 20 दिनों का समय लगना चाहिए लेकिन कभी-कभी यह प्रक्रिया 6 महीने से एक साल भी हो जाती है | इस दौरान बैंक लाभार्थी के प्रोजेक्ट पर पुनः विचार करता है | जहां आप प्रोजेक्ट लगाना चाहते हैं उस जगह की पड़ताल करता है | दूसरे तमाम पहलुओं पर मंथन चिंतन करने के पश्चात लाभार्थी के प्रपोजल को  स्वीकार या अस्वीकार करता है |

दोनों ही सूरत में लाभार्थी को भारी मानसिक प्रताड़ना झेलना पड़ता है | यहां लाभार्थी का धैर्य और उसकी एप्रोच काम आती है | प्रपोजल अस्वीकार होने की स्थिति में आपको पुनः जिला उद्योग केंद्र के चक्कर काटने पड़ते हैं | अगर आप की किस्मत से प्रपोजल स्वीकार हो जाता है तो उसके बाद बैंक से पैसा लेने के लिए आपको एक और लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है | कभी-कभी यह लड़ाई इतनी लंबी हो जाती है की लाभार्थी अपना धैर्य खो देता है या वह इतना आर्थिक नुकसान उठाता है कि एमएसएमई शुरू होने से पहले ही बंद हो जाती है या उस दिशा में अग्रसर हो जाती है |

लेटलतीफी के कारण प्रोजेक्ट की लागत अपनी तयशुदा सीमा लांघ जाती है | इस दौरान लाभार्थी आर्थिक रूप से भारी चोट तो खता ही है बल्कि मानसिक वेदना का शिकार हो जाता है | जिसका अभी तक सरकार के पास कोई उपाय नहीं है | हालांकि एमएसएमई को मदद पहुंचाने के लिए हर जिले में उद्योग बंधु की बैठक माह के आखिरी सप्ताह में आयोजित की जाती है लेकिन इसका भी प्रायोजन बहुत ज्यादा लाभदायक नहीं रहता है | मौजूदा दौर में जब अर्थव्यवस्था कोरोना की मार से उबरने की कोशिश कर रही है और तमाम छोटे-बड़े नए उद्योग अपने आप को दोबारा से खड़ा करने की जद्दोजहद में जूझ रहे हैं तब सरकार को ऐसी एमएसएमई ईकाईयों के लिए विशेष प्रबंध करने की आवश्यकता है | विशेष रूप से जो अभी अभी शुरू हुई है या शुरू होने की प्रक्रिया में हैं |

सरकारी पोर्टल पर एमएसएमई इकाइयों की संख्या दर्ज करके हम वह परिणाम हासिल नहीं कर पाएंगे जिसकी आकांक्षा सरकार रखती है | इसके लिए हमें एमएसएमई इकाइयों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा होना होगा और नए उद्यमियों को हर तरह के झटकों से उबरने की व्यवस्था करनी होगी | वास्तव में हो यह रहा है की व्यवस्था सिर्फ खुद को बचाने के जतन करती हुई दिखाई देती है| चाहे वह जिला उद्योग केंद्र हो, चाहे वह बैंक हो सभी अपने आंकड़े पूरे करने और सरकार को एक चमकदार दस्तावेज प्रस्तुत करके अपनी कुर्सी सुरक्षित रखने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं |

लेकिन अगर एमएसएमई इकाइयों की हकीकत पर गौर करें तो हम पाएंगे कि उन्हें इससे ज्यादा की दरकार है | किसी भी एमएसएमई इकाई के लिए शुरुआती 1 साल बेहद महत्वपूर्ण होता है | अगर इस दौरान यह नई इकाई व्यवस्था की लेटलतीफी का शिकार होती है तो उसका अपाहिज होना लगभग तय है | मैंने कई ऐसी इकाइयां देखी हैं जो अच्छी नीयत के साथ शुरू हुई लेकिन उनका सफ़र बेहद दर्दनाक था | इसलिए सरकार को एक समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए जिसमें एक एमएसएमई इकाई की स्थापना और संचालन की विशेष निगरानी की जाए और हर जिले में जिला उद्योग केंद्र के भीतर एक ऐसा काउंटर बनाया जाए जो जिले की सभी नई एमएसएमई  ईकाईयों की डे टु डे मॉनिटरिंग करें |

आखिर में मैं एक और जरूरी बात की ओर सरकार का ध्यान ले जाना चाहूंगा कि उत्तर प्रदेश के कई जिला उद्योग केंद्र ऐसे हैं जो जरूरी स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं | इस कमी के कारण बहुत सी एमएसएमई इकाइयों को जरूरी मदद सही समय पर नहीं मिल पाती है | बैंक के साथ लाभार्थी को ज्यादा परेशानी ना हो इसके लिए जिला उद्योग केंद्र में एक व्यक्ति की नियुक्ति होती है लेकिन बहुत सारे केंद्र ऐसे हैं जहां यह व्यक्ति दूसरे कामों में व्यस्त रहता है | इसकी वजह से लाभार्थी को सही समय पर कर्ज नहीं मिल पाता | इसका परिणाम यह होता है की एमएसएमई  ईकाई धीरे-धीरे करके रोगग्रस्त हो जाती है | इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो सपना देखा है उसे पूरा करने के लिए आंकड़ों से ज्यादा इन इकाइयों की वित्तीय जरूरतों और सुगम संचालन पर ध्यान देने की जरूरत है |

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