शरिया क़ानून क्या है और क्यों इससे डरती हैं महिलाएं ?

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शरिया क़ानून इस्लाम की क़ानूनी व्यवस्था है. इसे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक क़ुरआन और इस्लामी विद्वानों के फ़ैसलों यानी फ़तवों, इन दोनों को मिलाकर तैयार किया गया है.

शरिया क़ानून के हिसाब से अफगानिस्तान में तालिबान शासन करेगा. देश पर अपना नियंत्रण क़ायम कर लेने के बाद बुलाई गई पहली प्रेस वार्ता में, तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि मीडिया और महिलाओं के अधिकारों जैसे मसलों से “इस्लामी क़ानून के ढांचे के तहत” निपटा जाएगा.

शरिया क़ानून इस्लाम की क़ानूनी व्यवस्था है

शरिया का शाब्दिक अर्थ- “पानी का एक स्पष्ट और व्यवस्थित रास्ता” होता है. शरिया क़ानून इस्लाम की क़ानूनी व्यवस्था है. इसे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक क़ुरआन और इस्लामी विद्वानों के फ़ैसलों यानी फ़तवों, इन दोनों को मिलाकर तैयार किया गया है. शरिया क़ानून जीवन जीने का रास्ता बताता है. सभी मुसलमानों से इसका पालर ग़रीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है.शरिया क़ानून जीवन जीने का रास्ता बताता है. सभी मुसलमानों से इसका पालन करने की उम्मीद की जाती है. इसमें प्रार्थना, उपवास और ग़रीबों को दान करने का निर्देश दिया गया है.

शरिया कानून को अमल में कैसे लाया जाता है?

शरिया किसी मुसलमान के दैनिक जीवन के हर पहलू के बारे में व्यवस्था देता है. उदाहरण के लिए, काम के बाद अपने सहयोगियों द्वारा पब में बुलाए जाने पर सोच में डूबा कोई मुसलमान सलाह के लिए शरिया विद्वान के पास जा सकता है ताकि यह तय हो सके कि वह अपने धर्म के क़ानूनी ढांचे के भीतर व्यवहार करे. दैनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों, मसलन पारिवारिक क़ानून, वित्त और व्यवसाय के लिए मार्गदर्शन के लिए भी कोई मुसलमान शरिया क़ानून का रुख़ कर सकता है.

किसी भी क़ानूनी प्रणाली की तरह शरिया भी काफ़ी जटिल है. इसका लागू होना पूरी तरह से जानकारों के गुण और उनकी शिक्षा पर निर्भर करता है. इस्लामी क़ानूनों के जज मार्गदर्शन और निर्णय जारी करते हैं. मार्गदर्शन को फ़तवा कहा जाता है. इसे औपचारिक क़ानूनी निर्णय माना जाता है. शरिया क़ानून के पांच अलग-अलग स्कूल हैं. चार सुन्नी सिद्धांत हैं- हनबली, मलिकी, शफ़ी और हनफ़ी और एक शिया सिद्धांत है जिसे शिया जाफ़री कहा जाता है.

सजा का क्या प्रावधान है?

शरिया क़ानून अपराधों को दो सामान्य श्रेणियों में विभाजित करता है. पहला, ‘हद’, जो गंभीर अपराध हैं और इसके लिए अपराध तय किए गए हैं और दूसरा, ‘तज़ीर’ अपराध होता है. इसकी सज़ा न्याय करने वाले के विवेक पर छोड़ दी गई है. हद वाले अपराधों में चोरी शामिल है. इसके लिए अपराधी के हाथ काटकर दंड दिया जा सकता है. वहीं व्यभिचार करने पर पत्थर मारकर मौत की सज़ा दी जा सकती है.

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