Afghanistan crisis: पता चल गया किसके दम पर तालिबान ने पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया?
Afghanistan crisis: जिस लम्हे अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू की, उसी घड़ी से तालिबान ने अपने आगे बढ़ने की रफ़्तार तेज़ कर दी. और इस रविवार को राष्ट्रपति ग़नी के पतन के साथ ही तालिबान के लड़ाके राजधानी काबुल में दाखिल हो गए.
Afghanistan crisis: अफ़ग़ानिस्तान पर दबदबा बनाने को लेकर भारत और पाकिस्तान की प्रतिद्विंद्विता के अलावा पश्चिमी देशों और रूस के बीच भी होड़ रही है. शीत युद्ध के दिनों में सोवियत संघ ने साल 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर धावा बोला था और उसके सामने अफ़ग़ान मुजाहिदीन थे जिन्हें अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान का समर्थन हासिल था. लेकिन अब रूस का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में उसकी दिलचस्पी मध्य एशिया में अपने सहयोगी देशों की सीमाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने तक है. लेकिन पर्दे के पीछे मॉस्को के इरादे बहुत साफ़ नहीं हैं.
साल 2003 में तालिबान को ‘आंतकवादी संगठन’ करार देने के बावजूद हाल के सालों में रूस ने तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे सरकार विरोधी धड़ों के साथ कई दौर की बातचीत की है जिनमें अफ़ग़ान हुकूमत के नुमाइंदे शामिल नहीं थे. अफ़ग़ानिस्तान की ‘निर्वासित सरकार’ के नेताओं को केवल इस साल मार्च में मॉस्को में आयोजित एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए बुलाया गया था. इस कॉन्फ्रेंस में अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान ने भी हिस्सा लिया था.
“रूस तालिबान की मदद कर रहा है. उसकी मदद केवल कूटनीतिक नहीं है बल्कि पैसे और इंटेलीजेंस के द्वारा भी तालिबान की मदद की जा रही है.”
सीएसआईएस
#Afghanistan में रूस की दिलचस्पी की एक वजह तो इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव के सामने खुद को खड़ा करना चाहता है. रूस की नज़र में दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और पूर्वी यूरोप में उसके जो हित हैं, अफ़ग़ानिस्तान उसी कड़ी का हिस्सा है.
Afghanistan crisis में रूस का हाथ
अफ़ग़ानिस्तान इस जियोपॉलिटिकल गेम के बीच में खड़ा है. ये जिस जगह पर है, वो इसे एक साथ दिलचस्प और ख़तरनाक बना देती है क्योंकि इसकी सीमाएं रूस के सहयोगी देश ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से लगती हैं. रूस नहीं चाहता है कि इस्लामिक स्टेट उत्तर अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचे जिससे उसके सहयोगियों और उसके अपने हितों पर ख़तरा आए.
चीन भी चल रहा है चतुर चाल
अफ़ग़ानिस्तान में आर्थिक हितों के लिहाज से देखें तो चीन की दिलचस्पी मेस अयनाक रीज़न में तांबे के खनन को लेकर है. हालांकि चीन की अपनी सीमा अफ़ग़ानिस्तान से कम ही लगती है कि लेकिन उसके लिए ये परेशानी की बात है कि तालिबान पूरे मुल्क को अपने नियंत्रण में लेने जा रहा है. उसे डर है कि इस्लामी गुट और मजबूत हो सकते हैं, सीमा पार कर सकते हैं और शिनजियांग में उसकी मुसीबत बढ़ा सकते हैं. सुरक्षा चिंताओं के अलावा चीन इस क्षेत्र में अमेरिका की मौजूदगी को लेकर भी संतुलन साधना चाहता है. अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका के जाने की ख़बरें चीन में सुर्खियां बटोर रही हैं और ऐसा लग रहा है कि उसकी एक चिंता कम हो गई है.
यह भी पढ़ें:
- सिलिकॉन वैली पहुँचा JOIST, वैश्विक संबंधों को विस्तार देने की कोशिश!
- क्या खत्म हो गई है पीएम मोदी और ट्रम्प की दोस्ती?
- मुश्किल में बीजेपी नेता विकास गर्ग, गाज़ियाबाद कोर्ट ने कहा- “दोबारा जाँच करके रिपोर्ट पेश करे पुलिस” जानिए क्या है पूरा मामला?
- क्या है लॉकबिट जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है?
- शिवपाल सिंह यादव को अखिलेश ने दी मुश्किल मोर्चे की जिम्मेदारी, जानिए बदायूं से क्यों लाड़वा रहे हैं लोकसभा चुनाव?
अमेरिका से हो गई बड़ी चूक
अमेरिकी सैनिकों का एक छोटा सा दस्ता भी तालिबान को आगे बढ़ने से रोकने के लिए काफी था. लेकिन जैसे ही अमेरिकियों ने पीछे हटना शुरू किया, तालिबान तेज़ी से आगे बढ़ने लगे. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी हितों के कई पहलू हैं. एक तरफ़ अमेरिका को इस बात का एहसास भी है कि तालिबान के हाथ में पूरे निज़ाम के जाने के क्या ख़तरे हो सकते हैं. इसका मतलब ये होगा कि अफ़ग़ानिस्तान चरमपंथी गुटों का अभयारण्य बन सकता है और पश्चिमी देशों को इससे निपटना होगा. तालिबान के अल-कायदा के साथ रणनीतिक रिश्ते बने हुए हैं. लेकिन दूसरी तरफ़ अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में रूस, चीन और ईरान की दखलंदाज़ी को भी सीमित करना चाहता है.
(Rajniti.Online के साथ पाएं लेटेस्ट ब्रेकिंग न्यूज, वायरल ट्रेंड और सोशल मीडिया की दुनिया से जुड़ी सभी खबरें. यहां आपको ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर वायरल होने वाले हर कंटेंट की सीधी जानकारी मिलेगी.)