Taliban kya hai: काबुल पर कब्जा करने वाले तालिबान से जुड़ी वो बातें जो आप नहीं जानते

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Taliban kya hai: पश्तो भाषा में तालिबान छात्रों को कहा जाता है. नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान का उभार हुआ. लेकिन आज पूरी दुनिया इसकी चर्चा कर रही है.

Taliban kya hai: राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद तालिबान ने काबुल में अफगान राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक तालिबान कमांडरों का कहना है कि उन्होंने अफ़ग़ान राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा कर लिया है. तालिबान ने यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में सत्ता हस्तांतरण के लिए कोई भी अंतरिम सरकार नहीं बनाई जाएगी. उन्होंने कहा कि वे अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण करने जा रहे हैं. इससे पहले दिन में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए क्योंकि तालिबान ने काबुल में कब्जा कर लिया है. इसके साथ ही देशवासी और विदेशी भी देश से निकलने को प्रयासरत हैं, जो नए अफगानिस्तान के निर्माण के पश्चिमी देशों के 20 साल के प्रयोग की समाप्ति का एक संकेत है.

Taliban kya hai और 2001 में क्यों भागा था तालिबान?

अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को साल 2001 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था. लेकिन धीरे-धीरे ये समूह खुद को मज़बूत करता गया और अब एक बार फिर से  इसने लगभर पूरे अफ़गानिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया है. क़रीब दो दशक बाद, अमेरिका 11 सितंबर, 2021 तक अफ़ग़ानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को हटाने की तैयारी कर रहा है. फरवरी, 2020 में दोहा में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ जहां अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने की प्रतिबद्धता जताई और तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर हमले बंद करने को तैयार हुआ. समझौते में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले इलाक़े में अल क़ायदा और दूसरे चरमपंथी संगठनों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने की बात भी कही और राष्ट्रीय स्तर की शांति बातचीत में शामिल होने का भरोसा दिया था. लेकिन समझौते के अगले साल से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के आम नागिरकों और सुरक्षा बल को निशाना बनाना जारी रखा. अब जब अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से विदा होने की तैयारी कर रहे हैं तब तालिबान अफ़गानिस्तान में हावी हो गया है.

गनी अफगानिस्तान छोड़कर भागे, तालिबान ने किया बड़ा ऐलान

अफगान राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक ऑनलाइन वीडियो में इसकी पुष्टि की कि गनी देश से बाहर चले गए हैं. अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘उन्होंने (गनी) कठिन समय में अफगानिस्तान छोड़ दिया, ईश्वर उन्हें जवाबदेह ठहराए.’’ समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने आंतरिक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश से ताजिकिस्तान के लिए रवाना हो गए हैं. नागरिक इस भय को लेकर देश छोड़कर जाना चाहते हैं कि तालिबान उस क्रूर शासन को फिर से लागू कर सकता है जिसमें महिलाओं के अधिकार खत्म हो जाएंगे. नागरिक अपने जीवन भर की बचत को निकालने के लिए नकद मशीनों के बाहर खड़े हो गए. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद का कहना है कि लूटपाट और अराजकता को रोकने के लिए उनकी सेना ने काबुल के कुछ हिस्सों में प्रवेश किया है और उन चौकियों पर कब्जा किया जिन्हें सुरक्षा बलों ने खाली करा लिया है. जबीहुल्ला ने काबुल के लोगों से कहा कि वे शहर में तालिबान के लड़ाकों के प्रवेश से घबराएं नहीं.

तालिबान की शुरुआत कैसे हुई?

माना जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की. इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था. जल्दी ही तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाक़े में शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ-साथ शरिया क़ानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे थे. इसी दौरान दक्षिण पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा. सितंबर, 1995 में उहोंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा किया. इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी क़ाबुल पर कब्ज़ा जमाया. उन्होंने उस वक्त अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति रहे बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाया था. रब्बानी सोवियत सैनिकों के अतिक्रमण का विरोध करने वाले अफ़ग़ान मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्यों में थे.

जब अफगानिस्तान के लोगों ने किया था तालिबान का स्वागत

यहां पर सवाल यह भी है कि क्या अफगानिस्तान के लोग भी तालिबान को पसंद करते हैं. साल 1998 आते-आते, क़रीब 90 प्रतिशत अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया था. सोवियत सैनिकों के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के आम लोग मुजाहिदीन की ज्यादतियों और आपसी संघर्ष से ऊब गए थे इसलिए पहले पहल तालिबान का स्वागत किया गया. भ्रष्टाचार पर अंकुश, अराजकता की स्थिति में सुधार, सड़कों का निर्माण और नियंत्रण वाले इलाक़े में कारोबारी ढांचा और सुविधाएं मुहैया कराना- इन कामों के चलते शुरुआत में तालिबानी लोकप्रिय भी हुए. लेकिन इसी दौरान तालिबान ने सज़ा देने के इस्लामिक तौर तरीकों को लागू किया जिसमें हत्या और व्याभिचार के दोषियों को सार्वजनिक तौर पर फांसी देना और चोरी के मामले में दोषियों के अंग भंग करने  जैसी सजाएं शामिल थीं.

क्यों मानवता के लिए खतरनाक है Taliban?

Taliban kya hai क्यों इससे लोग खौफ क्यों खाते हैं और क्यों आज जब अफगानिस्तान में तालिबान का कहर बरपा है तब पूरी दुनिया में उसका जिक्र हो रहा है. दरअसल संगठन के शासन के दौरान पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाली बुर्क़े का इस्तेमाल ज़रूरी कर दिया गया. तालिबान ने टेलीविजन, संगीत और सिनेमा पर पाबंदी लगा दी और 10 साल और उससे अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी. तालिबान पर मानवाधिकार के उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार से जुड़े कई आरोप लगने शुरू हो गए थे. इसका एक बदनामी भरा उदाहरण साल 2001 में तब देखने को मिला जब तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के बाद भी मध्य अफ़ग़ानिस्तान के बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट कर दिया.

Taliban को बढ़ाने में है पाकिस्तान का योगदान

तालिबान को बनाने और मज़बूत करने के आरोपों से पाकिस्तान लगातार इनकार करता रहा है लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि शुरुआत में तालिबानी आंदोलन से जुड़ने वाले लोग पाकिस्तान के मदरसों से निकले थे. अफ़ग़ानिस्तान पर जब तालिबान का नियंत्रण था तब पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी. पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी तालिबान सरकार को स्वीकार किया था. 11 सितंबर, 2001 को न्यूयार्क वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद दुनिया भर का ध्यान तालिबान पर गया. हमले के मुख्य संदिग्ध ओसामा बिन लादेन और अल क़ायदा के लड़ाकों को शरण देने का आरोप तालिबान पर लगा. सात अक्टूबर, 2001 को अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया और दिसंबर के पहले सप्ताह में तालिबान का शासन ख़त्म हो गया.

Taliban kya hai किसके हाथ में है इसकी कमान

तालिबान ने साल 2001 की हार के बाद पहली बार किसी प्रांत की राजधानी पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था, रणनीतिक तौर पर बेहद अहम शहर कुंडूज़ पर उन्होंने नियंत्रण स्थापित किया. मुल्ला मंसूर की हत्या अमेरिकी ड्रोन हमले में मई, 2016 में हुई और उसके बाद संगठन की कमान उनके डिप्टी रहे मौलवी हिब्तुल्लाह अख़ुंज़ादा को सौंपी गई, अभी इन्हें के हाथों में तालिबान का नेतृत्व है. फरवरी, 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता हुआ. कई दौर की बातचीत के बाद ये समझौता हुआ था. इसके बाद तालिबान ने शहरों और सैन्य ठिकानों पर हमले के बाद कुछ ख़ास तरह के लोगों को निशाना बनाने की शुरुआत की और ऐसे हमलों से उसने अफ़ग़ानिस्तान की जनता को आतंकित कर दिया. माना जा रहा है कि साल 2001 के बाद पहली बार तालिबान इतना मज़बूत दिख रहा है. नेटो के आकलन के मुताबिक अभी समूह के पूर्णकालिक लड़ाकों की संख्या 85 हज़ार के आस-पास है.

अभी तालिबान का कितने इलाक़े पर कब्ज़ा है, ये स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, लेकिन अनुमान यह है कि देश के पांचवें हिस्से से लेकर एक तिहाई हिस्से के बीच के क्षेत्र पर तालिबान का नियंत्रण है.

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