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जिला पंचायत चुनाव का विश्लेषण, क्या 2022 हार जाएंगे अखिलेश यादव?

जिला पंचायत चुनाव में योगी आदित्यनाथ में खुद को बाजीगर साबित कर दिया है. उत्तर प्रदेश में ज़िला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव में 75 में से 67 सीटें जीतकर बीजेपी ने अखिलेश यादव को खुली चुनौती दी है.

कहते हैं हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं और उत्तर प्रदेश के नए बाजीगर हैं योगी आदित्यनाथ. पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के हाथों करारी शिकस्त झेलने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने सत्ता की ताकत से समाजवादी पार्टी के हाथ से जीत छीन ली. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुए इन चुनावों में मिली प्रचंड जीत को बीजेपी विधानसभा चुनाव का सेमीफ़ाइनल बता रही है, लेकिन क्या ये चुनाव वास्तव में सेमीफ़ाइनल कहे जा सकते हैं? क्योंकि इस चुनाव के बाद जहां बीजेपी खेमे में खुशी की लहर है वही विपक्षी दल यह सोच कर हैरान है कि अपनों ने उसके साथ दगा क्यों किया?

उत्तर प्रदेश में खेल तो 29 अप्रैल के बाद से ही शुरू हो गया था. 3 मई को पंचायत चुनाव के नतीजे आने के बाद यह बात तय मानी जा रही थी कि भारतीय जनता पार्टी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में मसल पावर जरूर दिखाएगी और ऐसा हुआ भी. यूपी के 75 ज़िलों में 22 ज़िलों के पंचायत अध्यक्ष पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो चुके थे जिनमें 21 बीजेपी के और इटावा में समाजवादी पार्टी का एक उम्मीदवार ज़िला पंचायत अध्यक्ष बिना विरोध ही चुन लिया गया. जिन 53 ज़िलों में चुनाव हुए, उनमें बीजेपी ने 46 सीटें जीती हैं. समाजवादी पार्टी को कुल पांच सीटें मिली हैं जबकि रालोद और राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल को एक-एक सीटों पर जीत हासिल हुई है.

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3 मई को आए पंचायत चुनाव के नतीजों के हिसाब से देखें तो सबसे ज्यादा जिलों में समाजवादी पार्टी का जिला पंचायत अध्यक्ष होना चाहिए था. लेकिन 3 जुलाई को आए नतीजों ने अखिलेश यादव की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. आज की तारीख में अखिलेश यादव जहां आलोचनाओं के शिकार हो गए हैं वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ वाहवाही बटोर रहे हैं. जीत से गदगद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “बीजेपी साल 2022 का विधानसभा चुनाव भी बड़े अंतर से जीतेगी, हम 300 से ज़्यादा सीटें जीतेंगे.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी योगी आदित्यनाथ को पंचायत चुनाव में मिली जीत की बधाई दी है.

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तो क्या यह माना जाना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ 2022 का सेमीफाइनल जीत गए हैं और फाइनल में उनका जीतना लगभग तय है. यह सवाल इसलिए है क्योंकि दिलचस्प बात यह है कि अभी दो महीने पहले हुए ज़िला पंचायत सदस्यों के चुनाव में ज़िलों के कुल 3052 सदस्यों में से बीजेपी के महज़ 603 सदस्य ही जीते थे जबकि समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या 842 थी. तो अगर इस आंकड़े से देखें तो भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ आम जनता में आक्रोश था लिहाजा पंचायत चुनाव में मतदाताओं ने उसे नकार दिया. वहीं अखिलेश यादव को जनता का समर्थन प्राप्त हुआ. लेकिन आंकड़े 3 जुलाई को आए नतीजों से मेल नहीं खाते. क्योंकि कम जिला पंचायत सदस्य होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी 67 जिलों में अपने जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रही.

अब सवाल यह है कि इन चुनावों को सेमीफाइनल कहना कितना सही है क्योंकि जब जनता के चुने की बारी थी तब उसने समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को चुना. लेकिन जिनको जनता ने चुना उन्होंने योगी आदित्यनाथ और भारतीय जनता पार्टी को चुना. और अब समाजवादी पार्टी के मुखिया कह रहे हैं कि ‘जिला पंचायत सदस्यों को डरा धमका कर और खरीद कर चुनाव का अपहरण किया गया है.’ इसलिए जानकारी मानते हैं कि पंचायत चुनावों को 2022 का सेमीफाइनल कतई नहीं कहा जा सकता. सीधे जनता द्वारा निर्वाचन होता नहीं है तो विधानसभा का सेमीफ़ाइनल कैसे हो जाएगा? हां, ज़िला पंचायत सदस्यों के निर्वाचन को ज़रूर सेमीफ़ाइनल कहा जा सकता है क्योंकि ये सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं. सीधे तौर पर ये चुनाव सरकार के समर्थन से जीते जाते हैं.

अगर इतिहास पर गौर करें तो हम देखेंगे कि पंचायत चुनाव में जीत का विधानसभा चुनाव में जीत से कोई सीधा संबंध नहीं है. साल 2010 बसपा ने पंचायत अध्यक्षों के ज़्यादातर पद जीते थे लेकिन 2012 में विधानसभा चुनाव में उसे हार का मुंह देखना पड़ा. 2016 में समाजवादी पार्टी के 63 ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में उसकी बुरी हार हुई. ऐसे में अगर 67 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी यह सोच रही है कि 2022 में जनता अखिलेश यादव को नकार कर योगी आदित्यनाथ को दोबारा सीएम सुनेगी तो यह उसका अति आत्मविश्वास भी हो सकता है. परोक्ष निर्वाचन के ज़रिए चुने जाने वाले ज़िला पंचायत अध्यक्षों का निर्वाचन पहले भी विवादित रहा है और आमतौर पर यह कहा जाता है कि ‘अध्यक्ष पद पर अक़्सर उसी पार्टी के उम्मीदवार जीत जाते हैं जिस पार्टी की राज्य में सरकार होती है.

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