चाचा शिवपाल के पास नहीं बचा कोई रास्ता, सिर्फ अखिलेश ही बचा सकते हैं साख!

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Uttar Pradesh election shivpal and Akhilesh together before 2022

चाचा शिवपाल पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए जितने जरूरी हैं अखिलेश भी उतना ही जरूरी है चाचा के लिए. क्यों? चलिए आपको बताते हैं.

मुलायम परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए चाचा-भतीजे साथ आकर इटावा में बीजेपी को रोकने में कामयाब रहे और सपा जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध जीतने में सफल रही. एक सीट ने यह साबित कर दिया कि चाचा शिवपाल अगर अखिलेश यादव के साथ हाथ मिला लेते हैं तो 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देना बहुत मुश्किल नहीं होगा. दरअसल, पांच साल पहले ‘मुलायम परिवार’ में मची सियासी वर्चस्व के चलते शिवपाल यादव और उनके करीबी नेता सपा छोड़कर चले गए थे या फिर उन्हें सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

चाचा शिवपाल को साथ लेने और रूठों को मनाने में जुटे अखिलेश

2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को साथ लेने और सपा छोड़कर गए नेताओं की घर वापसी के लिए पार्टी के दरवाजे खोल दिए हैं. पिछले एक साल में तमाम नेताओं की पार्टी में वापसी हो चुकी है और कुछ नेता की एंट्री होनी है. अखिलेश यादव ने हाल ही में आजतक को दिए इंटरव्यू में कहा था कि शिवपाल यादव की पार्टी को भी साथ में लिया जाएगा और उनके साथ गए नेताओं को भी एडजस्ट करने का काम करेंगे. शिवपाल की जसवंतनगर सीट पर सपा अपना कैंडिडेट नहीं उतारेगी. वहीं, शिवपाल यादव भी 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से सपा के साथ गठबंधन करने का खुला ऑफर दे रहे थे. उन्होंने कहा था, ‘2022 में अगर सपा हमारे दल को सम्मानजनक सीटें देगी तो गठबंधन पर विचार होगा.’

शिवपाल यादव के लिए क्यों जरूरी है अखिलेश यादव का साथ?

शिवपाल यादव भले ही एक लाख वोट पाने में सफल रहे, लेकिन उनकी पार्टी के बाकी कैंडिडेट अपनी जमानत बचाना तो दूर की बात थी, 25 हजार वोट भी हासिल नहीं कर सके. इतना ही नहीं हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में इटावा छोड़कर बाकी जिलों में शिवपाल की पार्टी के जिला पंचायत सदस्य भी जीत नहीं सके. इतना ही नहीं यादव समाज के बीच अखिलेश यादव ही मुलायम के सिसासी वारिस बने. इसका सियासी असर यह रहा कि सपा छोड़कर जाने वाले नेताओं ने घर वापसी करना शुरू कर दी.

जनवरी 2021 से जून 2021 तक लगभग 100 से ज्यादा नेता सपा का दामन थाम चुके हैं. नारद राय, रामलाल अकेला सपा में वापसी कर चुके हैं. अंबिका चौधरी के बेटे को सपा ने बलिया से जिला पंचायत अध्यक्ष का प्रत्याशी बना रखा है. अंबिका चौधरी भी बसपा छोड़ चुके हैं और माना जा रहा है कि जल्द ही सपा में एंट्री कर सकते हैं. अंबिका एक दौर में मुलायम की किचन कैबिनेट के प्रमुख माने जाते थे.

हालांकि, मौजूदा सियासी माहौल में चाचा शिवपाल यादव के सामने कोई बड़ा सियासी ऑफर नजर नहीं आ रहा है. 2019 के चुनाव में हारने के बाद उनकी लोकप्रियता भी कम हुई है. इतना ही नहीं सूबे में जिस तरह से सपा मजबूत हुई है और दूसरी पार्टियों के नेताओं ने सपा का दामन थामा है और उनके करीबी नेताओं ने भी पार्टी में वापसी की है. ऐसे में अखिलेश यादव शिवपाल यादव की मजबूरी बन गए हैं.

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