किसान आंदोलन: “मिशन 2022” का किसान कनेक्शन
किसान आंदोलन (6 month of farmers protest) को 6 महीने पूरे हो चुके हैं लेकिन आंदोलन खत्म होने का कोई रास्ता नहीं निकला है. इस आंदोलन का भविष्य क्या है? क्या आंदोलन के जरिए मिशन 2022 (Mission 2022)साधा जाएगा?
“केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर अगर किसान नेता चर्चा करना चाहते हैं तो मैं बस एक फोन कॉल दूर हूँ.” भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime minister Narendra Modi) के यह शब्द आज भी आंदोलन कर रहे किसान नेताओं और किसानों को याद हैं. पीएम मोदी ने यह बात 4 महीने पहले कही थी लेकिन आज भी पीएमओ PMO की तरफ से किसानों को कोई फोन नहीं आया.
क्या प्रधानमंत्री की ओर से फेंका गया यह महज एक जुमला था या फिर इस बात में कोई सच्चाई भी थी ? इस सवाल के जवाब में सिंघु बॉर्डर पर पिछले 6 महीनों से आंदोलन में शामिल किसान दशरथ आते हैं कि “पीएम मोदी की बात का कोई भरोसा नहीं है वह नंबर एक के फेकूं प्रधानमंत्री हैं”
किसान आंदोलन 2024 तक जारी रहेगा
किसान आंदोलन में शामिल तमाम लोग अभी भी आर-पार के मूड में हैं. अभी भी दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों का साफ कहना है कि उनकी मांगें जस की तस हैं और रास्ता सरकार को ही निकालना होगा. कोरोना महामारी में अब बॉर्डर पर डटे किसानों की संख्या ज़रूर कम हुई है लेकिन उनका दावा है कि आंदोलन जारी है और उनकी तैयारी 2024 तक की है. किसान संगठनों के दावों और केंद्र सरकार के कृषि सुधार के वादों के बीच अब ये देखना ज़रूरी है कि आख़िर उन तीन क़ानूनों का भविष्य क्या है?
किसान आंदोलन से पड़ेगा कृषि कानूनों के भविष्य पर फर्क
केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को पास कराने के बाद राष्ट्रपति से मंजूरी सितंबर में ही ले चुकी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अभी इन्हें अमल में नहीं लाया गया है. कोर्ट ने मामले में चार सदस्य कमेटी का गठन किया गया, जिसे दो महीने में कोर्ट को रिपोर्ट देनी थी. तब तक केंद्र सरकार को क़ानून अमल में न लाने के लिए कहा गया.
यानी कोर्ट के फैसले तक क़ानून पर रोक थी. संयुक्त किसान मोर्च ने कमेटी के सदस्यों के नाम पर आपत्ति जताई. कमेटी के सामने वो अपनी गुहार लेकर नहीं गए. एक सदस्य ने इस्तीफा दे दिया. बाकी के तीन सदस्यों ने दूसरे किसान संगठनों के साथ बातचीत के बाद सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. उस रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
22 जनवरी 2021 से बंद पड़ी बातचीत दोबारा कब शुरू होगी?
यह लाख टके का सवाल है जिसका जवाब मिलना अभी बाकी है क्योंकि सरकार की मंशा स्पष्ट नहीं हो रही है. मोदी सरकार के रुख को देखकर यह साफ नजर आता है कि वह कृषि कानूनों को वापस लेने के मूड में नहीं है. लेकिन दूसरी तरफ किसान आंदोलन में शामिल तमाम लोग अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. 26 मई को ‘काला दिवस’ मना कर किसान सरकार को यह संदेश देना चाहते हैं कि उनका आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा है.
‘काला दिवस’ मनाने के लिए पहले दिल्ली बॉर्डर पर दोबारा से किसानों को बुलाने की योजना थी लेकिन कोरोना महामारी की जगह इसे स्थगित करके जो जहाँ है, वहीं ‘काला दिवस’ मनाए, ऐसी घोषणा की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि उन कृषि क़ानूनों का क्या जिसे सरकार कृषि क्षेत्र के लिए लाभकारी बता रही थी. क्या वो ठंडे बस्ते में यूं ही पड़े रहेंगे? या फिर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ही अंतिम फैसला होगा? और अगर कोर्ट से भी हल न निकला तो इनका क्या होगा?
‘हमारे पास किसान आंदोलन जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं’
संयुक्त किसान मोर्चा ने दो टूक कहा है, जो परिस्थिति बनी है उसमें उनके पास आंदोलन जारी रखने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है. संयुक्त किसान मोर्चा ख़ुद को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश तक सीमित नहीं मानते. उनके मुताबिक़ फिलहाल क़ानून स्थगित है, लेकिन नए क़ानून पर से ये स्टे कभी भी हटाया जा सकता है, इसलिए उनके पास आंदोलन जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
आंदोलन का राजनीतिक असर क्या होगा?
पहले यह कहा जा रहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे शायद इस आंदोलन पर असर करेंगे. लेकिन पांचों राज्यों में चुनाव के बाद नतीजे आ चुके हैं और राजनीतिक दल हार जीत का विश्लेषण कर रहे हैं मगर आंदोलन अभी भी जारी है. तो क्या आप उत्तर प्रदेश चुनाव पर भी इस आंदोलन का असर होना तय है क्योंकि आप किसान नेता मिशन 2022 को टारगेट करने में लगे हुए हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा में कई किसान नेताओं को लगता है कि उन्होंने बंगाल में जाकर जो प्रचार किया, बीजेपी की पश्चिम बंगाल में हार के पीछे वो भी एक कारण है. उन्हें लगता है कि चुनाव में बीजेपी की हार ही उनकी कमज़ोर नब्ज़ है. बीजेपी को भले आंदोलन से फ़र्क पड़े ना पड़े, लेकिन चुनाव हारने से ज़रूर फ़र्क पड़ता है. इस वजह से इस बात की पूरी संभावना लगती है कि अगले चरण में संयुक्त किसान मोर्चा ‘मिशन यूपी’ में प्रचार के लिए जुटेगी.
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