ऑक्सीजन संकट #OxygenCrisis काफी गंभीर कैसे हो गया है. सरकार के दावे कुछ और जमीन पर हकीकत कुछ और है. अस्पतालों का कहना है कि उनके पास आक्सीजन नहीं है.
ऑक्सीजन संकट पर स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान
15 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा था, ‘देश में रोज 7127 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता है. 12 अप्रैल 2021 को देश में मेडिकल सुविधाओं के लिए इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन का आंकड़ा 3842 मीट्रिक टन था. यानी रोज की कुल उत्पादन क्षमता का 54 फीसदी.’ इतना ही नहीं, मंत्रालय ने यह दावा भी किया था कि 50 हजार मीट्रिक टन से भी ज्यादा ऑक्सीजन का भंडार अलग से रखा हुआ है.
जब दावे ऐसे तो ऑक्सीजन संकट आखिर क्यों?
#देश_ऑक्सीजन_मांगता_है इस मामले को मांग और आपूर्ति के बीच के फर्क जैसे सरल तरीके से नहीं समझा जा सकता है. ऑक्सीजन की वास्तविक उपलब्धता का मामला थोड़ा जटिल है. भारत के पास रोज 7127 मीट्रिक टन ऑक्सीजन के उत्पादन की क्षमता है. इसका एक बड़ा हिस्सा उन ‘क्रायोजेनिक एयर सेपेरेटर यूनिट्स’ में बनता है जो ऊंची शुद्धता वाली ऑक्सीजन का उत्पादन करती हैं. इन प्लांट्स के पीछे का विज्ञान सीधा सा है. इसमें साधारण हवा को इस तरह ठंडा किया जाता है कि इसके दो मुख्य घटक, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन अलग-अलग हो जाते हैं. हालांकि सारी ऑक्सीजन सिर्फ चिकित्सा क्षेत्र के लिए नहीं होती. इसका एक बड़ा हिस्सा औद्योगिक इकाइयों में इस्तेमाल के लिए अलग कर लिया जाता है.
मरीज़ ज्यादा, ऑक्सीजन संकट, आंकड़े डराते हैं
इस समय चिकित्सा क्षेत्र के लिए ऑक्सीजन का जितना कोटा रखा गया है, वह जरूरत का लगभग आधा ही है. मांग और आपूर्ति के इस असंतुलन को दूर करने के लिए अगर 50 हजार मीट्रिक टन के सुरक्षित यानी रिजर्व भंडार को भी काम में ले लिया जाए तो भी माना जा रहा है कि स्थिति करीब दो हफ्ते तक ही संभली रहेगी. वह भी तब जब संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़े नहीं. 12 अप्रैल को जब केंद्र सरकार यह कह रही थी कि चिकित्सा क्षेत्र में भारत की ऑक्सीजन की जरूरत रोजाना 3842 मीट्रिक टन की है तब देश में कोरोना वायरस के करीब 12 लाख 64 हजार सक्रिय मामले थे. अब यह संख्या 25 लाख से ऊपर पहुंच गई है. 21 अप्रैल को केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि अब देश में इतने मरीज हैं कि रोज आठ हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन चाहिए होगी.
ऑक्सीजन संकट पर दिल्ली हाई कोर्ट की चिंता, तो जागी सरकार
बीते बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह औद्योगिक इस्तेमाल के लिए ऑक्सीजन का इस्तेमाल पूरी तरह से रोक दे और इसका सारा कोटा चिकित्सा क्षेत्र के लिए तय कर दे. हालांकि अदालत ने इस सिलसिले में कोई आदेश जारी नहीं किया. इसके एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा, ‘निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात संयंत्रों, उद्योगों और ऑक्सीजन उत्पादकों के सहयोग और कुछ गैर-जरूरी उद्योगों के लिए आपूर्ति पर प्रतिबंध के जरिये बीते कुछ दिनों में देश में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की उपलब्धता में 3300 मीट्रिक टन प्रति दिन की बढ़ोतरी की गई है.’
ये भी कहा , ‘इस समय 20 राज्यों से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की 6785 मीट्रिक टन प्रति दिन की मांग को देखते हुए भारत सरकार ने 21 अप्रैल से इन राज्यों को 6822 मीट्रिक टन प्रति दिन के हिसाब से आवंटन किया है.’ इस बयान में सभी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आ रही कुल मांग से संबंधित कोई आंकड़ा नहीं था.
ऑक्सीजन के स्टोर करने की समस्या
अगर सरकार देश में बन रही सारी ऑक्सीजन चिकित्सा क्षेत्र को दे दे और कोरोना वायरस के मामले आने वाले हफ्तों में न भी बढ़ें, तो भी देश के सामने ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने और उसे स्टोर करने की बड़ी समस्या है.ऐसा इसलिए कि ऑक्सीजन उत्पादन के जो संयंत्र हैं उनका वितरण काफी असमान है. सरकार के रिकॉर्ड बताते हैं कि दिल्ली, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे उत्तर और मध्य भारत के जिन राज्यों में कोविड-19 के मामले बहुत ज्यादा हैं वे ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता के मामले में बहुत पीछे हैं. अप्रैल 2020 तक के आधिकारिक आंकड़ों का अध्ययन किया जाए तो ऑक्सीजन उत्पादन में जिन आठ राज्यों की करीब 80 फीसदी हिस्सेदारी है वे हैं महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पश्चिम बंगाल.
ऑक्सीजन को लेकर ये भी है बड़ी चुनौती
चुनौती लाने-ले जाने की ही नहीं है. ऑक्सीजन के किसी जगह पहुंचने के बाद उसका भंडारण यानी स्टोरेज भी करना होता है. यह काम क्रायोजेनिक वेसेल्स या सिलिंडर के जरिये किया जाता है. मौजूदा हालात में इन दोनों चीजों की भी कमी पड़ती जा रही है क्योंकि उत्पादकों को कहना है कि इतनी ज्यादा मांग के लिए वे तैयार ही नहीं थे.
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