कोरोना की नई लहर, क्यों मचा रही है कहर?

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भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना के लगभग दो लाख नये मामले सामने आये हैं. महाराष्ट्र, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और गुजरात में हो रहीं कोविड-19 से सबसे अधिक मौतें हुई हैं. इतना ही नहीं हरिद्वार कुंभ मेले में अब तक लगभग 1,300 लोग कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं. बुधवार को कुंभ मेले में शाही स्नान का आयोजन हुआ था. सवाल ये है की कोरोना की नई लहर इतनी खतरनाक क्यों है?

कोरोना की नई लहर ने पूरे देश को एक अंधी खाई में धकेल दिया है. दूर दूर तक उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही. हालत यहां तक खराब हो चुकी है की यूपी में कोरोना संक्रमण का हॉट स्पॉट बने लखनऊ में गुरुवार को भैंसाकुंड स्थित बैकुंठ धाम श्मशान घाट के बाहरी हिस्से को नीले रंग की टिन की दीवारों से ढकने की तस्वीरें वायरल हुईं तो हंगामा मच गया. बताया जा रहा है कि लखनऊ नगर निगम प्रशासन ने बाहर टीन शेड की दीवार इसीलिए बनवा दी है ताकि लोग अंदर की भयावह स्थिति न देख सकें. श्मशान घाट के सड़के किनारे वाले इलाक़े को पूरा ढक दिया गया है.

कोरोना की नई लहर क्यों है खतरनाक?

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, दिल्ली ने कोरोना संक्रमण के दैनिक आंकड़ों के मामले में मुंबई को पीछे छोड़ दिया है और दिल्ली इस समय भारत का सबसे बुरी तरह प्रभावित शहर बन गया है. कोरोना की नई लहर इसलिए ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इससे ज्यादा लोगों की मौत हो रही है और सरकार के पास इससे निपटने का कोई उपाय नहीं है. कोरोना के कुल मामलों के लिहाज़ से भारत ने ब्राज़ील को पीछे छोड़ दिया है.

भारत में अब तक कोरोना के कुल 1 करोड़ 40 लाख 74 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज किये जा चुके हैं. वहींब्राज़ीलमें फ़िलहाल यह संख्या 1 करोड़ 36 लाख 74 हज़ार के क़रीब है.

एक सप्ताह पहले तक भारत, कुल मामलों के लिहाज़ से अमेरिका और ब्राज़ील के बाद तीसरे स्थान पर था. लेकिन पिछले एक सप्ताह में भारत में बहुत तेज़ी से संक्रमण बढ़ा है. गुरुवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटे में भारत में कोरोना के दो लाख से अधिक नये मामले दर्ज किये गए हैं.

कोरोना की नई लहर यूपी बिहार में हालत बेहद खराब

कोरोना की नई लहर ने यूपी और बिहार के स्वास्थ्य सिस्टम की कलई खोल दी है. यूपी की राजधानी में अस्पताल, दवाई और ऑक्सीजन नहीं हैं और बिहार में सरकार पंगु नजर आ रही है.स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना के मामले में देश में सबसे निचले पायदान पर खड़े बिहार राज्य की सरकार के लिए कोरोना महामारी से लड़ना और उस पर काबू पाना मुश्किल साबित हो रहा है. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 12 अप्रैल को अपने एक ट्वीट में कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा था, ” बिहार में 69 फीसदी डॉक्टर, 92 फीसदी नर्स और 56 फीसदी शिक्षकों की कमी है.”

चिकित्सकों की कमी से इतर अगर आप सरकार का सिर्फ दवाईयों के मद पर ख़र्च देखें तो ये बहुत कम है. मई 2017 में राज्य के स्वास्थ्य संगठनों ने एक रिपोर्ट जारी करके बताया था कि सरकार दवाई के मद पर प्रति व्यक्ति प्रति साल महज़ 14 रूपए खर्च कर रही है. इसे 14 रूपए से 40 रूपए करने के लिए इन संगठनों ने अभियान भी चलाया था. वर्तमान में संगठनों का मानना है  कि ये खर्च महज़ 15 रूपए हुआ है जिसे बढ़ाकर 50 रूपए करने की मांग है.

सीएम नीतीश क्या कर रहे हैं?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने  टीके का दूसरा डोज़ लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा, ” शहरी इलाकों के अलावा अब ये ग्रामीण इलाकों में भी फैल रहा है. सरकार का जोर ज्यादा जांच और टीकाकरण है. बाहर से आए लोगों की जांच की जा रही है और राज्य में स्वास्थ्य / आपदा प्रबंधन विभाग के साथ सभी विभाग समन्वय बनाकर काम कर रहे है. 17 अप्रैल को सभी दलों की बैठक बुलाई गई है जिसमें विचार विमर्श होगा.”

कोरोना की नई लहर कितनी घातक है इसका अंदाजा आप इसे लगा सकते हैं की कई शहरों में मरघट कम पड़ गए हैं. ऐसे में लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है. सरकार को कोई उपाय नहीं सूझ रहा और लगता है उसकी प्राथमिकता में लोग हैं भी नहीं.

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