अखिलेश यादव से कैसे मिले पूर्वांचली… क्या है 22 का ‘मास्टरप्लान’?

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अखिलेश यादव से कैसे मिले पूर्वांचल के वोटर और क्या है समाजवादी पार्टी के मिशन 2022 का मास्टरप्लान? यह तो सवाल इसलिए हम हो जाते हैं क्योंकि 1 मार्च को मिर्जापुर में सपा मुखिया ने मां विंध्यवासिनी के दर पर माथा टेका और 2022 में जीत के लिए कामना की…

पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की राजनीति का बेहद ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. सुबह के इस हिस्से को नकार कर कोई भी सियासी दल अपनी राजनीति को धार नहीं दे सकता. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पूर्वांचल को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं. न सिर्फ अखिलेश यादव बल्कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी पूर्वांचल के दौरे पर जन-जन से मुलाकात कर रही हैं. तो क्या है पूर्वांचल का गणित और अखिलेश यादव से कैसे मिले पूर्वांचल के लोग? यह हम समझने की कोशिश करते हैं.

अखिलेश यादव का पूर्वांचल दौरा क्यों है खास?

1 मार्च को अखिलेश यादव पूर्वांचल में लोगों से मुलाकात कर रहे थे और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश कर रहे थे. लेकिन मेल मुलाकात का दौर शुरू होने से पहले उन्होंने मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी के दर पर मत्था टेका और आशीर्वाद लिया. अखिलेश यादव ने यह दिखाने की कोशिश की कि कि न सिर्फ मिर्जापुर के और पूर्वांचल के वोटर उनके साथ हैं बल्कि उनके सिर पर मां विंध्यवासिनी का हाथ है. अखिलेश यादव से कैसे मिले मिर्जापुर के लोग यह बताया राकेश ने, राकेश मां विंध्यवासिनी के प्रांगण में है फूलों की दुकान लगाते हैं. राजनीति ऑनलाइन से बात करते हुए उन्होंने बताया, अखिलेश यादव के आने की सूचना से यहां सुबह से ही भीड़ जुटना शुरू हो गई थी. बड़ी तादाद में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता यहां पहुंचे हुए थे. कई लोग अखिलेश यादव से सिर्फ एक बार मिलना चाह रहे थे लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हो पाई क्योंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी.

राकेश ने बताया, अखिलेश ने उनके बेटे को भी लैपटॉप दिया था. बेटे की नौकरी नहीं लग पाई लेकिन उसी लैपटॉप से उसने मोबाइल की दुकान खोल ली. आज उसकी रोजी-रोटी चल रही है. राकेश के मुताबिक, अखिलेश यादव को पूर्वांचल में बढ़त मिल सकती है लेकिन उसके लिए उन्हें मां विंध्यवासिनी के आशीर्वाद के अलावा जमीन पर जी तोड़ मेहनत करनी होगी. पूर्वांचल का दिल जीतना उत्तर प्रदेश की राजनीति में चमकने के लिए जरूरी है. इसीलिए अखिलेश यादव तीन दिन पूर्वांचल में रहकर अपना राजनीतिक समीकरण साधते नजर आए तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी रविदास जयंती पर वाराणसी पहुंची थीं. वहीं, अखिलेश-प्रियंका की वापसी के दूसरे दिन रविवार को दो दिवसीय दौरे पर वाराणसी पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पूर्वांचल को सियासी तौर पर मजबूत बनाने की कवायद करते नजर आए. 

अखिलेश से कैसे सधेंगी पूर्वांचल की 33% सीटें

दरअसल, पूर्वांचल की जंग फतह करने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो सकती है, क्योंकि सूबे की 33 फीसदी सीटें इसी इलाके की हैं. हालांकि, पिछले तीन दशक में पूर्वांचल का मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा. वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है. सपा 2012 और बसपा 2007 में पूर्वांचल में बढ़िया प्रदर्शन करने के बाद भी इस इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए नहीं रख सकी थी. 2017 में बीजेपी ने इस इलाके में क्लीन स्वीप किया था, लेकिन 2019 में चार लोकसभा सीटें गवां दी है और 2022 के लिए जिस तरह से विपक्ष पूर्वांचल में सक्रिय है, उसे लेकर बीजेपी भी अपने गढ़ को मजबूत करने में जुट गई है. 

पूर्वांचल के 28 जिले की 164 सीटें आती हैं.

पूर्वांचल में 28 जिले आते हैं, जो सूबे की राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं. इनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर जिले शामिल हैं. इन 28 जिलों में कुल 162 विधानसभा सीट शामिल हैं. 

पूर्वांचल का मिजाज और अखिलेश यादव का ‘मास्टरप्लान

बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की 164 में से 115 सीट पर कब्जा जमाया था जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थी. ऐसे ही 2012 के चुनाव में सपा ने 102 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 17, बसपा को 22, कांग्रेस को 15 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं. वहीं, 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी तो पूर्वांचल की अहम भूमिका रही थी. बसपा 85 सीटें जीतने में कामयाब रही थी जबकि सपा 48, बीजेपी 13, कांग्रेस 9 और अन्य को 4 सीटें मिली थी. 

अखिलेश यादव के लिए क्यों जरूरी है पूर्वांचल?

बीजेपी ने 2017 में पूर्वांचल की 28 जिलों की 164 विधानसभा सीट में से 115 सीट जीतकर भले ही रिकॉर्ड बनाया हो, लेकिन कई जिलों में पार्टी सपा से पीछे रह गई थी. बीजेपी आजमगढ़ की 10 में से सिर्फ एक सीट, जौनपुर की 9 में से 4, गाजीपुर की 7 में से 3, अंबेडकरनगर की पांच में से 2 और प्रतापगढ़ की 7 में से दो सीटें ही जीत सकी थी. इसीलिए बीजेपी पूर्वांचल पर खास फोकस कर रही है तो विपक्ष भी इसे अपनी सियासी प्रयोगशाला बनाने में जुट गया है. पूर्वांचल के सियासी ताकत और हर चुनाव में बदलते सियासी समीकरण को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव की नजर पूर्वांचल पर है और उन्होंने इसी मद्देनजर तीन दिन का दौरा किया था, इस दौरान वह जौनपुर, मिर्जापुर और वाराणसी गए थे. पार्टी का प्रशिक्षण शिविर मिर्जापुर में किया था, जहां उन्होंने पार्टी नेताओं को 2022 में जीतने का मंत्र दिया, वहीं, कांग्रेस नदी अधिकार यात्रा इसी पूर्वांचल इलाके से शुरू कर रही है, जो प्रयागराज से शुरु होकर बलिया तक जाएगी. इस यात्रा में प्रियंका गांधी भी जुड़ेगीं.

अखिलेश यादव से कैसे मिले पूर्वांचली? क्या योगी को पसंद नहीं आई यह बात

योगी आदित्यनाथ खुद पूर्वांचल से हैं और 2017 के चुनाव में पूर्वांचल ने उन्हें गद्दी तक पहुंचाया है. बीजेपी इस बात को अच्छे से जानती है कि 2022 का विधानसभा चुनाव जीतना है तो पूर्वांचल को साधे रखना होगा. अखिलेश यादव से कैसे मिले पूर्वांचल वाले जब यह बाद सीएम योगी आदित्यनाथ को पता चले तो उन्हें पसंद नहीं आया. मिर्जापुर और वाराणसी में हुआ सपा मुखिया का जोरदार स्वागत बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है और इसीलिए भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वांचल के लोगों का दिल जीतने का प्लान बनाना शुरू कर दिया है.

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