किसान आंदोलन कितने दिन और चलेगा?
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन जारी है. कृषि कानून के खिलाफ एक ओर आंदोलन को लंबे समय तक चलाने की योजना बनाई जा रही है तो दूसरी ओर धरना पर बैठे किसानों के लिए लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं भी हैं.
मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन अब व्यापक रूप लेता जा रहा है. 26 नवंबर से शुरू हुए इस आंदोलन में कई उतार आए लेकिन अब इस आंदोलन को नतीजे तक पहुंचाने के लिए किसान नेताओं ने कमर कस ली है. गाजीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंदोलन और तेज करने के लिए किसानों को एक नया फार्मूला दिया है. उनका कहना है कि हर गांव से एक ट्रैक्टर पर 15 आदमी 10 दिन का समय लेकर आएं तो इस तरह हर किसान इस आंदोलन में शामिल हो सकेगा और गांव लौटकर खेती भी कर सकेगा.
11 दौर की बातचीत बेनतीजा
सरकार और किसान संगठनों के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है, जिसमें कोई नतीजा नहीं निकल सका है. इसलिए आंदोलन को लंबे वक्त तक चलाने के लिए किसान नेताओं ने एक फॉर्मूला बनाया है ताकि हर किसान आंदोलन में भागीदारी कर सके और आंदोलन और ज्यादा लंबे वक्त तक चल सके. टिकैत ने कहा कि इस फॉर्मूले के मुताबिक यदि गांव के लोग आंदोलन के लिए कमर कस लें, तो हर गांव के 15 आदमी 10 दिन तक आंदोलन स्थल पर रहेंगे और उसके बाद 15 लोगों का दूसरा जत्था आ जाएगा. उनसे पहले जो धरना स्थल पर रहे, वे गांव जाकर अपने खेत में काम कर सकेंगे.
ऐसे प्रोत्साहित हो रहे हैं किसान
किसानों का आंदोलन कितने व्यवस्थित तरीके से चल रहा है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए आंदोलन स्थल पर लाइब्रेरी की व्यवस्था की गई है. सिंघु बॉर्डर पर 4 छोटे पुस्तकालय भी बनाए गए हैं, जिनमें कई भाषाओं में किताबें उपलब्ध हैं. ये लाइब्रेरी टेंट के अंदर बनाई गईं हैं. इनमें किसानों के विरोध, कृषि, देशभक्ति से संबंधित किताबें हैं. ये किताबें हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी में हैं. लाइब्रेरी की किताबों में ‘द फॉल ऑफ किंगडम ऑफ पंजाब’, शहीद भगत सिंह और सिख गुरुओं की आत्मकथाएं शामिल हैं. इन लाइब्रेरी में 100 से 150 किताबें डिस्प्ले में हैं. इतना ही नहीं किसानों को सिंघु बॉर्डर पर जहां कई गैर-सरकारी संगठनों ने नि:शुल्क चिकित्सा शिविर लगाए हैं वहीं रोजमर्रा की जरूरत की कई चीजें बांट रहे हैं.
चक्का जाम सफल लेकिन…
शनिवार को किसानों का चक्का जाम सफल रहा लेकिन किसान नेताओं में विवाद भी हुआ. किसानों ने शनिवार को देशव्यापी चक्का जाम किया लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को इससे दूर रखा गया था. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने इन दोनों राज्यों में चक्का जाम नहीं करने की घोषणा की थी. अब टिकैत के उस फ़ैसले को लेकर किसान नेताओं के बीच मतभेद हो गया है. वरिष्ठ किसान नेता दर्शनपाल सिंह ने इसे जल्दबाज़ी में बिना सलाह-मशविरा लिया गया फ़ैसला बताया है. शुक्रवार को जब राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चक्का जाम नहीं करने का फ़ैसला किया था तब उनसे वजह पूछी गई थी तो उन्होंने कहा था कि, उनको कभी भी दिल्ली बुलाया जा सकता है और इन दोनों राज्यों के लोगों को भविष्य के लिए स्टैंडबाई पर रखा गया है.
किसान आंदोलन को लेकर इससे जुड़े नेताओं की रणनीति बेहद स्पष्ट है और वह 26 जनवरी की घटना की तरह कोई चूक करना नहीं चाहते. दिल्ली की सीमाओं पर अलग अलग मोर्चा संभाल रहे नेताओं ने मन बना लिया है की आंदोलन लंबा चलेगा.
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