अब ऐसा क्या हुआ कि किसान मोदी सरकार पर आग बबूला हो गए हैं?
दिल्ली-गाज़ियाबाद बॉर्डर के पास विरोध कर रहे भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रविवार को कहा, “विरोध प्रदर्शन रामलीला मैदान में होते हैं तो हम बुराड़ी के निरंकारी भवन क्यों जाएं जो एक निजी जगह है.”
केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने सवाल किया है कि उन्हें प्रशासन बुराड़ी के निरंकारी मैदान में जाने के लिए क्यों कह रहा है. सरकार किसानों का आंदोलन खत्म कराने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन किसान पीछे हटने को तैयार नहीं है.
इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसान संगठनों से अपील की थी कि वो विरोध प्रदर्शन के लिए निरंकारी समागम मैदान में जाएं. उन्होंने कहा था कि सरकार तीन दिसंबर को किसानों से बात करने के लिए तैयार है. इस बीच किसानों की बढ़ती संख्या देखते हुए दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर बड़ी संख्या में सुरक्षाबल तैनात किए गए हैं.
किसान जिन तीन क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) क़ानून, 2020
- कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार क़ानून, 2020
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून 2020
किसान संगठनों का आरोप है कि नए क़ानून से कृषि क्षेत्र भी पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुक़सान किसानों को होगा. तीन नए विधेयकों में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के साथ-साथ ठेके पर खेती को बढ़ावा दिए जाने की बात है और साथ ही राज्यों की कृषि उपज और पशुधन बाज़ार समितियों के लिए गए अब तक चल रहे क़ानून में भी संशोधन किया गया है.
प्रदर्शनकारियों को यह डर है कि एफ़सीआई अब राज्य की मंडियों से ख़रीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा. साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की ख़रीद पर लगाता आया है. प्रदर्शनकारियों मानते हैं कि क़ानून जो किसानों को अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचने की अनुमति देता है, वो क़रीब 20 लाख किसानों- ख़ासकर जाटों के लिए तो एक झटका है ही.
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