कोरोना संकट: मोदी जी! घर में नहीं हैं दाने, भेड़ें कैसे जाएं चराने?

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‘साहब कोई नहीं हमारा दर्द सुनने-समझने वाला. बस बातें कर रही है और कुछ नहीं कर रही सरकार. कोरोना के चक्कर में काम धंधा ठप्प हो गया है. भेड़-बकरी पालकर गुजारा करते थे लेकिन अब दो वक्त के खाने का जुगाड़ करना मुश्किल हो गया है. गड़रिया समाज मुश्किल में है साहब, अगर मोदी जी और योगी जी ने नहीं सुनी तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.’  

उत्तरप्रदेश के लखनऊ जिले में पड़ने वाले हसनपुर खेवली के दिनेश कुमार पाल के पास लॉकडाउन की की कहानियां हैं. वो दुखी हैं कि सरकार ने ढिढोंरा तो खूब पीटा लेकिन हकीकत ‘ढाक के तीन पात’ वाली है. दिनेश कुमार पाल कहते हैं कि लॉकडाउन में भेड़-बकरी पालकर अपने परिवार को पेट भरने वाला गड़रिया समाज बहुत मुश्किलों से गुजरा है. उनका कहना है कि सरकार ने अचानक से लॉकडाउन कर दिया और हमें इतना भी समय नहीं दिया कि हम अपने घरों को पहुंच पाते हैं. हम हफ्तों तक जंगल में फंसे रहे. हालात ये हो गई थी कि हमारे खाने का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था तो हम अपनी भेड़ों का चारा कहां से लाते. वो कहते हैं कि सरकार ने अभी तक गड़रिया समाज की सुध नहीं ली है. दिनेश कुमार पाल कहते हैं कि गांव में हमारे समाज की जमीन है. सरकार को चाहिए कि उस जमीन पर कोई अस्थाई रोजगार का इंतजाम करे. जिससे कुछ राहत मिले.

पंचायत ऑनलाइन

मदद के नाम पर झुनझुना दे रही सरकार

दिनेश इकलौते नहीं हैं जिन्होंने अचानक हुए लॉकडाउन की वजह से मुसीबत झेली है. गड़रिया के समाज के लोगों को सरकार से बहुत सी शिकायतें हैं. गड़रिया-धनगर भेड़पालक समुदाय भूखों मरने की कगार पर खड़ा है. मोहनलालगंज के रहने वाले अजय पास बताते हैं कि, ‘किसान सम्मान निधि,सरकारी राशन या फिर सरकार की अन्य योजनाएं उन जैसे लोगों तक नहीं पहुंची हैं. हम जानवर और दूध बेचकर अपना गुजारा करते थे लॉकडाउन में वो भी नहीं बेच पाए’. उन्होंने कहा कि सरकार से हमारी मांग है कि घुमंतू शेफर्ड समुदाय को सरकार बुनियादी सुविधाएं दे. गड़रिया समाज के लोगों को परिवार के भरण-पोषण के लिए पशुपालक सम्मान राहत पैकेज दिया जाए और भूमि आंवटन की जाए. डेयरी,पशुपालन योजनाओं में सब्सिडी के साथ भेड़ पालक समुदाय को प्राथमिकता दी जाए. तभी हम इस आपदा में हुए नुकसान से उबर पाएंगे.

भेड़ के बाल बेचकर होता है गुजारा

गड़रिया समाज  का मुख्य  व्यवसाय भेड़ पालन है. भेड़ के बाल बेचकर ये अपने परिवार का गुजारा करते हैं. आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने 1984 में भेड़ पालकों से जुड़ी एक घोषणा की थी. इसके तहत लखनऊ में भेड़ की ऊन बेचने के लिए  मंडी बनाने का एलान किया गया था. इस योजना का मकसद ये था कि लखनऊ में भेड़ पालकों को अच्छा रेट मिल सके और लखनऊ नाका हिंडोला में जो भेड़ मंडी है उसको विस्तार रूप से बनाया जाए. इतना ही नहीं भेड़-बकरियों के लिए सस्से रेट पर दवाई उपलब्ध कराने का वादा भी किया गया था. लेकिन गड़रिया समाज के लिए हुआ ये एलान जमीन पर नहीं उतरा. मोदी सरकार में तो हालात और खराब हो गए.  प्रयागराज के देवीपाल बताते हैं कि मोदी सरकार में भेड़ के बाल के रेट सिर्फ पांच रुपये किलो हैं. लॉकडाउन में तो वो भी नहीं मिल पा रहे.

लखनऊ के खेड़ा गांव में रहने वाले जियालाल बताते हैं कि सरकार गरीबों को आवास का वादा करती है. लेकिन हमारा घर आज भी कच्चा है. पहले भेड़ पालकर गुजारा कर लेते थे अब तो वो भी नहीं हो पा रहा. लॉकडाउन की वजह से पेट काटकर जो पैसा जमा किया था वो भी खत्म हो गया. वो कहते हैं कि भेड़ें बहुत संवेदनशील होती है. अगर एक भेड़ बीमारी से मर जाए तो फिर कई भेड़ें मरती हैं. ऐसे में सरकार को इनके इलाज  लिए फ्री में सुविधा देनी चाहिए. लेकिन ऐसा है नहीं. लखनऊ के तेलीबाग इलाके में रहने वाली लक्ष्मी पाल बताती हैं. हमें इस बात का गर्व है कि हम गड़रिया  समाज में जन्मे विश्व में दो ऐसे नाम है जिनका हिन्दी और इंग्लिश  में उच्चारण अलग -अलग है. गड़रिया को इंग्लिश में शेफर्ड कहते है.  सरकार से एक अपील  हम गड़रिया समाज की बेटियों को मुफ्त में शिक्षा दी जाए

कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन का शिकार शेफर्ड समाज शिकायती लहजे में मोदी से मदद की आशा रखता है. दरअसल 2 महीने से इनका काम पूरी तरह से ठप्प है. हालात ये है कि ये लोग अपने परिवार का पेट नहीं भर पाते तो फिर भेड़-बकरियों का पेट कैसे भरेंगे. इसलिए ये लोग पीएम मोदी से मदद की मांग कर रहे हैं.

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रिपोर्ट: अंकित तिवारी, स्वतंत्र पत्रकार

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