बजट 2019 : ये ‘ज़ीरो बजट’ खेती क्या है जिसका जिक्र वित्त मंत्री ने किया ?

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देश की पहली पूर्णकालि महिला वित्त मंत्री ने अपने पहला आम बजट पेश कर दिया है. इस बार बजट नहीं बल्कि सरकार बहीखाता पेश किया है. कुछ लोग बजट की आलोचना कर रहे हैं और कुछ लोग इसको अलग चश्में से देख रहे हैं. वित्त मंत्री ने बजट 2019 के भाषण में ‘जीरो बजट’ खेती की बात की. क्या है ये खेती ज़रा इसके समझ लीजिए.

सरकार कह रही है कि वो देश में ‘ज़ीरो बजट’ फार्मिंग को बढ़ावा देगी. बजट 2019 के अपने भाषण में उन्होंने इसे अपनी ‘जड़ों की ओर लौटना’ बताया है. वित्त मंत्री का कहना है कि इस तरह की खेती करने से 2022 तक किसानों की आय दोगुना हो जाएगी. वित्त मंत्री ने कहा जीरो बजट फार्मिक अभी कुछा राज्यों में होती है. ये नैचुरल फार्मिंग है और इससे मुनाफा अच्छा होता. अगर पूरे देश के किसान इस तरह की खेती करते हैं तो इसका फायदा किसानों को होगा. लेकिन क्या भारत में जीरो बजट फार्मिंग संभव है. और क्या वाकई में इस तरह की खेती करके किसान अपने आय को दोगुना कर सकता है.

क्या होती है जीरो बजट फार्मिंग ?

जीरो बजट फार्मिंग को आप ऐसे समझिए कि इसमें कोई केमिकल नहीं पड़ता और न ही कोई निवेश होता है. यानी नैचुरल फार्मिंग कुल मिलाकर इसका मतलह है कि पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहकर जो खेती की जाती है उसे जीरो बजट फार्मिंग कहते हैं. जीरो बजट खेती को एक समाजिक आंदोलन के तहत भारत में सुभाष पालेकर ने शुरू किया था. और अब दक्षिण भारत के कुछ राज्य जैसे आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ये काफी पॉपुलर हो रही है. लेकिन क्या इसमें वाकई में बजट नहीं लगता. क्योंकि अभी किसानों को खेती करने के लिए अच्छी खासी लागत खर्चनी पड़ती है. जिन सुभाष पालेकर ने जीरो बजट फार्मिंग का आंदोलन शुरु किया उन्होंने ही फेसबुक पर 16 अक्टूबर 2018 को जारी एक बयान में कहा कि कृषि पद्धति का नाम बदलकर ‘सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती’ किया जाना चाहिए जीरो बजट फार्मिंग नहीं.

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जो लोग आधुनिक तरीके से खेती करते हैं या जो लोग कृषि पद्धति के समर्थक हैं वो कहते हैं कि जीरो-बजट खेती को ‘खेती की लागत कम करने, जोखिमों को कम करने, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से बचाने’ के लिए बढ़ावा दिया जाता है. यूएन ने भी इस पद्धति का समर्थन किया है. आंध्र प्रदेश में तो बिना लाभ के पर्यावरण सहयोग समूह द्वारा आयोजित ‘जीरो-बजट प्राकृतिक खेती’ के अक्टूबर 2018 के आकलन ने सुझाव दिया कि इसकी सफलता के बारे में सबूत अभी भी मिले-जुले थे. लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे किसानों की आय वाकई में दोगुनी हो जाएगी. और पूरे देश के किसान इसको अपनाकर मुनाफा कमा लेंगे ऐसा भी नहीं है.

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