काम संभालते ही मोदी 2.0 को झटका, GDP के आंकड़ों ने किया निराश

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मोदी सरकार पार्टी-2 में जीडीपी की चिंता

साभार-गूगल

मोदीमय चुनाव नतीजों के बात मोदी मंत्रिमंडल ने काम संभाल लिया है. काम संभालते ही मोदी कैबिनेट की पहली बैठक भी हो गई. लेकिन टीम मोदी को जीडीपी के आंकड़ों ने झटका दिया है. शुक्रवार को जारी सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़ों ने निराश किया है.

2018-19 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी-मार्च के जीडीपी आंकड़े अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. आंकड़ों बताते हैं कि इस तिमाही में जीडीपी विकास दर मात्र 5.8 फीसदी रही जो पिछले पांच साल में सबसे कम है. सरकारी आंकड़ों की अगर माने तो 2018-19 की आखिरी तिमाही के जीडीपी आंकड़ों के साथ पूरे वित्त वर्ष के जीडीपी का आंकड़ा साफ हो गया.

2018-19 में जीडीपी विकास दर 6.8 रही जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में जीडीपी विकास दर 7.2 फीसदी थी. यही दर 2013-14 में 6.4 फीसदी रही थी. अंतिम तिमाही में जीडीपी की विकास दर चीन की 6.4 फीसदी विकास दर से कम है. मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि मोदी की नई टीम के लिए ये अच्छे संकेत नहीं हैं. मोदी सरकार के लिए आने वाले सालों में कई चुनौतियों का सामना करना है और गिरती अर्थव्यवस्था उसमें एक है.

कृषि, उद्योग और मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ने किया निराश

जनवरी से मार्च तक पहली तिमाही के दौरान विकास पिछले नौ महीनों में मुख्य रूप से कृषि, उद्योग और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में मंदी के कारण 5.8 प्रतिशत तक लुढ़का है. मार्च तिमाही के लिए ये संख्या 6.5 प्रतिशत के पूर्वानुमान से कम थी. पिछली सात तिमाहियों में देश की जीडीपी वृद्धि दर पहली बार चीन की जीडीपी वृद्धि दर से नीचे आयी है. अप्रैल में आठ प्रमुख बुनियादी ढांचा उद्योगों में वृद्धि दर पिछले महीने के 4.9 प्रतिशत के मुकाबले 2.6 प्रतिशत पर आ गई है.

यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि 2018-19 में देश का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.4 प्रतिशत पर रहा, जो मोटे तौर पर अंतरिम बजट अनुमान के अनुरूप था. वित्तीय वर्ष के दौरान खर्च 24.1 लाख करोड़ रुपये के संशोधित लक्ष्य के मुकाबले 23.1 लाख करोड़ रुपये था. ये आंकड़ों आप ऐसे समझ सकते हैं कि कि जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत का आंकलन करने का तरीका होती है. जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है.

जीडीपी के आंकड़े आपको कैसे प्रभावित करते हैं

यहां आपको एक बात समझ लेनी चाहिए कि जीडीपी के आंकड़े ही ये संकेत देते हैं कि देश की आर्थिक सेहत कैसी है. पिछले तिमाही के मुकाबले कम है. ये आंकड़े बताते हैं कि माली हालत गिर रही है. जीडीपी से सरकार की नीतियां तय होती हैं. जीडीपी ज्यादा है तो सरकार के पास टैक्स कलेक्शन भी ज्यादा आएगा. यानी सरकार खर्च भी ज्यादा कर सकेगी. अब अगर जीडीपी के आंकड़े नीचे हैं तो सरकार को खर्चा कम करना पड़ेगा. तो मोदी सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाली है.  

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