नमो टीवी: जब मोदी सरकार में सब मुमकिन है तो चैनल के लिए लाइसेंस की क्या जरूरत ?

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आचार संहित लागू होने के बाद एक पार्टी के प्रचार के लिए शुरु किए गए नमो टीवी को लेकर विवाद गर्माता जा रहा. सवाल ये है कि क्या नमो टीवी का प्रचार गैरकानूनी है. क्या मोदी सरकार में चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था भी खतरे में है.

आपने नमो टीवी का नाम भी सुना होगा और शायद इसे देखा भी होगा. नमो टीवी 31 मार्च से तमाम डीटूएच पर दिखाई दे रहा है. नमो टीवी पर बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी हुई सामिग्री प्रसारित की जा रही है. मकसद ये है कि इस चैनल के जरिए मोदी सरकार के कामकाज को लोगों तक पहुंचाया जाए. विपक्षी दलों का कहना है कि नमो टीवी आचार संहिता का उल्लंघन कर रही है. नमो टीवी का मालिक कौन है और कहां से चैनल चलाया जा रहा है. ऐसे कई सवाल आपके जेहन में होंगे.

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विपक्षी दलों ने की चैन की शिकायत

चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों की शिकायत के बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय से आचार संहिता लागू होने के बाद नमो टीवी के लॉन्च होने के संबंध में जवाब मांगा. विपक्ष का कहना है कि चुनाव में आचार संहिता लागू होने के बाद किसी एक राजनीतिक पार्टी को 24 घंटे चैनल चलाने कैसे दिया जा सकता है. सवाल ये भी था कि इस चैनल पर प्रसारित होने वाले कंटेन्ट की निगरानी कौन करेगा? मामले ने जब तूल पकड़ा तो डीटीएच ऑपरेटर टाटा स्काई ने कहा कि नमो टीवी ‘हिंदी न्यूज़ चैनल’ नहीं है. यह एक विशेष सुविधा है जो इंटरनेट के माध्यम से मुहैया कराया जा रहा है. और इसके प्रसारण के लिए सरकारी लाइसेंस की ज़रूरत नहीं. हालांकि इससे पहले टाटा स्काई ने 29 मार्च को अपने एक ट्वीट में कहा था कि

“चैनल 512 पर आने वाला नमो टीवी हिंदी न्यूज़ चैनल है और राजनीति के बारे में ख़बरें देता है. लॉन्च ऑफर के तौर पर ये चैनल सभी उपभोक्ताओं को दिया जा रहा है. इसे हटाने का कोई विकल्प नहीं हैं.”

एक और दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी ने नमो टीवी के बारे में अभी तक कोई बात खुलकर नहीं कही है. आधिकारिक तौर पर बीजेपी की अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. अरूण जेटली से जब इससे जुड़ा सवाल किया गया तो उन्होंने कह दिया कि,

“उचित अधिकारी इसका उत्तर देंगे, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और चुनाव आयोग को इसके बारे में टिप्पणी करने दीजिए. आपको और हमें इसमें नहीं पड़ना चाहिए.”

मंत्रालय के पास चैनल का ब्योरा नहीं

अगर आप सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर नमो टीवी को के बारे में पढ़ना चाहेंगे तो आपको पता चलेगा कि 31 मार्च 2019 तक देश में कुल 901 टीवी चैनल काम कर रहे हैं. इस सूची में नमो टीवी का नाम नहीं है. इतना ही नहीं संचार सैटलाइट लिंगसैट के ज़रिए जुड़ने वाले डीटीएच सेवाओं की सूची में भी नमो टीवी का नाम नहीं है. सूचना प्रसारण की वेबसाइट पर एक सूची में उन 31 चैनलों के भी नाम हैं जिन्हें 31 जनवरी 2019 को चालू होने की इजाज़त मिली है. इसमें भी नमो टीवी का नाम नहीं है.

नमो टीवी पर क्यों हो रहा है विवाद ?

जैसा की आप जानते हैं 11 अप्रैल से 19 मई तक भारत में लोकसभा के चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव चलते पूरे देश में 10 मार्च से आचार संहिता लागू है. आप ये भी जानते होंगे कि आचार संहिता के कुछ नियम होते हैं. लेकिन विपक्षी दलों को कहना है कि नमो टीवी का जो कन्टेंन्ट आचार संहिता का उल्लंघन करता है. यहां एक बात और हैरान करने वाली है कि मार्च 31 को पीएम मोदी ने खुद नमो टीवी के बारे में ट्वीट करके लोगों को जानकारी दी थी. इस चैनल ने अपने लोगो में नरेंद्र मोदी की तस्वीर का इस्तेमाल किया है और ये टाटा स्काई, डिश टीवी और कई अन्य प्लेटफॉर्म पर देखा जा सकता है.

लाइसेंस के लिए आवेदन तक नहीं हुआ

आपको हैरत होगी कि नमो टीवी ने लाइसेंस नहीं लेने के अलावा नमो टीवी ने अनिवार्य सुरक्षा अनुमति भी नहीं प्राप्त की है और इस कारण मौजूदा प्रसारण कानूनों के तहत इसका संचालन अवैध है. देश के इतिहास में ये पहला मौका जब किसी चैनल ने बिना सरकारी अनुमति के या यहां तक कि अनुमति के लिए आवेदन किए बिना प्रसारण शुरू कर दिया हो. चूंकि नमो टीवी ने लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं किया है, इसलिए इसके स्वामित्व के बारे में या फिर इसकी अपलिंकिंग-डाउनलिंकिंग के लिए इस्तेमाल टेलीपोर्ट या सिस्टम के बारे में ज़्यादा बातें साफ नहीं हैं.

चैनल का लाइसेंस लेना एक दुरुह कार्य होता है

अगर आप कोई चैनल शुरु करना चाहते हैं तो इसके लिए एक लंबी औऱ मुश्किल प्रक्रिया का पालन करना होगा. चैनल के मालिक को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत करना होता है. आवेदन में चैनल के मालिक और चैनल के स्वामित्व वाली कंपनी के नाम देने होते हैं और चैनल के लोगो (प्रतीक चिन्ह) का भी विवरण प्रस्तुत करना होता है. गृह मंत्रालय से सुरक्षा क्लीयरेंस और अंतरिक्ष विभाग की हरी झंडी मिलने के बाद 10 साल की अवधि के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है. लेकिन नमो टीवी के लिए कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई.

‘सरेआम नियमों का उल्लंघन हुआ’

अब सवाल ये है कि क्या नमो टीवी की शुरुआत केबल टेलीविजन नेटवर्क्स रूल्स, 1994 का उल्लंघन करते हुए की गई है और इसमें जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के कई प्रावधानों का भी उल्लंघन हुआ है, साथ ही यह राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के पक्ष में सरकारी विज्ञापनों या सरोगेट विज्ञापनों संबंधी चुनाव आयोग के निर्देशों के भी खिलाफ जाता है. ये प्रश्न इसलिए क्योंकि एक वो भी दौर था जब चुनाव आयोग आचार संहिता का पालन कराने के लिए एक मानक स्थापित कर दिया था.

जब एड और फिल्में रोकी गईं

1984 में जब अमिताभ बच्चन चुनाव लड़े तो आयोग ने दूरदर्शन पर उनकी किसी भी फिल्म के प्रसारण पर रोक लगा दी थी, उस वक्त चुनाव कांग्रेस की सरकार ही करा रही थी. 1991 में जनता दल का चुनाव चिन्ह चक्र था तो टीवी पर व्हील डिटर्जेंट पाउडर का विज्ञापन रुकवा दिया गया था क्योंकि व्हील के विज्ञापन में चक्र आता था. उस वक्त भी चुनाव जनता दल की सरकार कर रही थी और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे.

2014 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो चंडीगढ़ के एक पार्क में एक बड़ा पंजा लगा हुआ था उस पंजे को चुनाव आयोग ने कपड़े से ढकवा दिया था. यूपी के पार्कों में लगे हाथियों को ढक दिया था उस वक्त कांग्रेस की सरकार ही चुनाव करा रही थी. अब मोदी सरकार चुनाव करा रही है. जिसमें टीवी चैनल लांच हो रहे हैं. मोदी की बायोपिक रिलीज हो रही है. योगी जी मोदी की सेना कह रहे हैं. क्या ये आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है. अगर है तो फिर मोदी जी को इसकी परवाह क्या इसलिए नहीं है कि उन्हें किसी भी हाल में सत्ता चाहिए.

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