Jammu Kashmir: क्या है सिंधु जल संधि, जिसे तोड़ने की मांग उठ रही है
जम्मू कश्मीर में हालात तनावपूर्ण हैं. पुलवामा आतंकी हमले के बाद पूरा देश एक सुर में पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग रहा है. कहा जा रहा है कि भारत को पाकिस्तान के साथ सभी ताल्लुक खत्म कर देने चाहिए. सिंधु जल संधि भी खत्म कर देनी चाहिए. लेकिन भारत के लिए ये संधि तोड़ना आसान होगा. और अगर ये संधि टूटती है तो पाकिस्तान पर क्या फर्क पड़ेगा?
सिंधु जल संधि क्या है ?
- आजादी से पहले दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर का निर्माण कराया गया
- इस फायदा ये हुआ कि ये पूरा इलाका बाद में दक्षिण एशिया का प्रमुख कृषि क्षेत्र बना
- विभाजन के वक्त पंजाब का पूर्वी भाग भारत के पास और पश्चिमी भाग पाकिस्तान के पास गया
- बंटवारे के दौरान ही सिंधु नदी घाटी और इसके विशाल नहरों को भी विभाजित किया गया
- विभाजन के बाद इससे होकर मिलने वाले पानी के लिए पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था
- पानी के बहाव को बनाए रखने के उद्देश्य से पूर्व और पश्चिम पंजाब के बीच अहम समझौता हुआ
- दोनों क्षेत्रों के मुख्य इंजीनियरों के बीच 20 दिसंबर 1947 को एक समझौते सहमति बन गई
- बंटवारे से पहले तय हुआ कि पानी का एक तय हिस्सा 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देना है
- 1 अप्रैल 1948 को जब समझौता लागू नहीं रहा तो भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया
- भारत के इस कदम से पाकिस्तानी पंजाब की 17 लाख एकड़ ज़मीन पर हालात काफी बिगड़ गए
- भारत के इस कदम की वजह कश्मीर मुद्दा था, भारत ऐसा करके पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहता था
- इस कदम के बाद भारत और पाकिस्तान में पानी की आपूर्ति जारी रखने पर फिर समझौता हो गया
सिंधु जल संधि को लेकर दोनों देशों को बीच कई बात खींचतान हुई है. 1951 में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाकर इस मसले पर बात की थी और लिलियंथल अपनी इस यात्रा में पाकिस्तान भी गए थे. इसके बाद जब वो वापस अमेरिका लौटे तो उन्होंने सिंधु नदी घाटी के बंटवारे पर एक आर्टिकल लिया था. कहा जाता है कि इस आर्टिकल को पढ़कर तत्कालीन विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से संपर्क किया और दोनों पक्षों में बातचीत का सिलसिला दोबारा शुरु हो गया. करीब एक दशक लंबे बैठकों के दौर के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी घाटी समझौते पर हस्ताक्षर हुए.
भारत-पाक के बीच हुए समझौते में क्या है?
- सिंधु नदी घाटी की नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया
- झेलम और चेनाब को पश्चिमी नदियां माना गया इनका पानी पाकिस्तान जाता है
- रावी, ब्यास और सतलज को पूर्वी नदियां माना गया जो भारत के लिए पानी देती हैं
- भारत पूर्वी नदियों के पानी का बिना किसी रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है
- पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का भी एक सीमित हिस्सा भारत इस्तेमाल करता है
- दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बातचीत और साइट के मुआयना का प्रावधान था
- सिंधु आयोग स्थापित किया गया जिसके तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था
- दोनों कमिश्नर इस समझौते के किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत कर सकते हैं
- अगर एक देश किसी परियोजना से दूसरे देश को आपत्ति है तो दोनों पक्षों की बैठकें होंगी
- बैठकों में अगर कोई हल नहीं निकल पाया तो दोनों देशों की सरकारों को इसे सुलझाना होगा
- विवादित मुद्दे पर तटस्थ विशेषज्ञ की मदद या कोर्ट ऑफ़ ऑर्बिट्रेशन में जाने का प्रावधान
यहां एक बात और आपको जान लेनी चाहिए कि समझौते में ये भी तय किया गया कि इस संधि को को कोई एक देश अपने मन से न बदल सकता है और न तोड़ सकता है. भारत-पाकिस्तान को साथ मिलकर ही इस संधि में बदलाव करना होगा या एक नया समझौता बनाना होगा. लेकिन यहां भारत के पक्ष में एक बात ये जाती है कि भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ़ ट्रीटीज़ की धारा 62 के अंतर्गत इस संधि से ये कहते हुए पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की मदद कर रहा है.
तो अगर भारत ये संधि तोड़ता है तो पाकिस्तान सबसे पहले विश्व बैंक के पास जाएगा क्योंकि सिंधु घाटी से गुजरने वाली नदियों पर नियंत्रण को लेकर उपजे विवाद की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. भारत को फिर विश्व बैंक को जवाब देना होगा और कूटनीति के हिसाब से ये भारत के लिए अच्छा नहीं होगा. तो ये आसान तो नहीं है कि भारत इस संधि तो आसानी से तोड़ ले. क्योंकि इसमें भारत की जवाबदेही बढ़ जाएगी.