सपा-बसपा गठबंधन: ‘फॉर्मूला फिफ्टी’, बीजेपी निपटी!

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सपा-बसपा का साथ, बीजेपी को भा नहीं रहा है. इसके अपने कारण हैं. सबसे बड़ा कारण ये है कि बीजेपी का समीकरण बिगड़ रहा है. दूसरा अगर ये दल साथ लड़ेंगे तो पिछड़ी जातियां भी एक साथ आ सकती हैं. बीजेपी की दिल्ली की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस गठबंधन का असर साफ दिखाई दिया. अमित शाह ने अपने भाषण में इस गठबंधन का कई बार जिक्र किया और इसको नकारते रहे.

1991 में बसपा ने 386 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटों पर जीती थी. तब बसपा को 35.32 लाख वोट मिले थे. लेकिन इसके दो साल बाद 1993 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 164 सीटों पर ही पार्टी ने 55 लाख वोट हासिल किए. सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा था और और 89 लाख वोट हासिल किए थे.आंकड़ें कहते हैं कि अगर ये दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ती है तो बीजेपी को सीधे सीधे 50 सीटें का नुकसान होता हुए दिखाई दे रहा है.

दोनों दल 2017 के विधानसभा चुनाव में मिले वोट को भी अगर हासिल करने में कामयाब रहे तो भी बीजेपी को पचास सीटों का नुकसान होगा. यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं और जानकार मानते हैं कि ये गठबंधन मिलकर करीब 57 सीटें जीतने का दम रखता है. इस बात की संभावना इसलिए भी है क्योंकि दोनों पार्टियां दो बार अपने वोट ट्रांसफर कर चुकी हैं. 1993 में और बीते साल हुए उपचुनाव में दोनों पार्टियां ने वोट ट्रांसफर कराया.

1993 में सपा-बसपा के समर्थन से जो सरकार बनी थी उसके मुखिया से मुलायम सिंह. हालांकि 18 महीने में ही बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई. अब एक बाद फिर सपा-बसपा साथ हैं. अखिलेश माया ने हाथ मिलाया है. दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता कह रहे हैं कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को निपटा कर मानेंगे. उनका ये भी कहा है कि हर आंकड़ा गठबंधन के पक्ष में है.

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