वो तीन घटनाएं जो मोदी सरकार के लिए सबक हो सकती हैं !
- एससी/एसटी एक्ट में संशोधन
- तीन तलाक पर अध्यादेश
- गरीब सवर्णों के लिए 10 % आरक्षण
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में ये तीन महत्वपूर्ण कदम उठाए. तीनों में विपक्ष को तुष्टिकरण की बू आती है. ये बाद दीगर है कि तीनों कदमों को इस तरह से पेश किया गया कि खास वर्गों के उत्थान के लिए हैं. मोदी जी ये अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव जीतने की मारक मिसाइल तुष्टीकरण है. और इसका फायदा उन्हें लंबे वक्त मिलता रहा है. लेकिन अगर हम वर्तमान की घटनाओं को ध्यान में रखकर इतिहास में देखें तो तीन महत्वपूर्ण घटनाएं जिनका जिक्र मौजूदा हालात के लिए मौजू हो जाता है.
पहली घटना
1984 के आखिर में लोकसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को रिकॉर्डतोड़ वोट मिले. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने 543 में से 401 सीटें जीती थीं. बड़ी जीत के बाद राजीव गांधी ने सत्ता संभाली और 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो केस में अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि
आईपीसी की धारा 125 जो तलाकशुदा महिला को गुजारा भत्ता लेने का हकदार बनाता है, वह मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होता है।
मुस्लिमों ने इसे शरियत के खिलाफ फैसला बताया तो तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलते हुए 1986 में संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. 1987 में उन्होंने बाबरी मस्जिद के ताले खुलवा दिए.राजीव गांधी को ये उम्मीद थी कि इससे उन्हें चुनाव में फायदा होगा.हिंदु वोटर उन्हें दिल खोलकर समर्थन देगा. लेकिन हुआ इसका उल्टा.1989 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी को गद्दी गंवानी पड़ी. इस चुनाव में कांग्रेस 207 सीटों का नुकसान हुआ. कांग्रेस को सिर्फ 197 सीटें मिलीं.
दूसरी घटना
1989 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त मिली और जनता दल जीता. जनता दल के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने नेशनल फ्रंट की सरकार बनाई. ये वो दौर था जब वीपी सिंह ने बोफोर्स के मामले में राजीव गांधी को जमकर घेरा था. 89 के चुनाव में जनता दल को 143 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बीजेपी ने वीपी सिंह को समर्थन दिया था. वीपी सिंह ने पीएम बनने के बाद 1990 में ओबीसी वर्ग को खुश करने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की कोशिश लेकिन बीजेपी का समर्थन न मिलने की वजह से वो नाकाम हो गए. एलके आडवाणी ने मंडल के खिलाफ रामरथ यात्रा की शुरु कर दी. 23 अक्टूबर, 1990 को जब ये रथ यात्रा बिहार के समस्तीपुर पहुंची तो बिहार के तत्कालीन सीएम लालू यादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. इसके बाद बीजेपी ने वीवी सिंह सरकार के सर्मथन वापस ले लिया. सरकार गिर गई. इसके बाद कांग्रेस ने चंद्रशेखर को समर्थन दिया और चंद्रशेखर पीएम बन गए. चंद्रशेखर ने ओबीसी को आरक्षण देने के खिलाफ देशभर में आंदोलन किया था. ओबीसी को आरक्षण का मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो आरक्षण को हरी झंडी मिल गई. लेकिन अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.
तीसरी घटना
आरक्षण ने चंद्रशेखर की कुर्सी छीन ली और इसके बाद 1991 में आम चुनाव हुए. कांग्रेस ने इस बार फिर अच्छा प्रदर्शन किया और मंडल-कमंडल की लड़ाई में कांग्रेस जीत गई. पीवी नरसिम्हा राव देश के पीएम बने. 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में कार सेवकों ने जब बाबरी ढांचा गिराया तो पूरे देश मे तनाव का माहौल बन गया. इस घटना के करीब एक महीने बाद नरसिम्हा सरकार एक अध्यादेश लाई जिसमें राम मंदिर को बनवाने की कोशिश थी. 7 जनवरी, 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उस अध्यादेश पर दस्तखत किए और सरकार इस पर बिल लाई. बिल और अध्यादेश में था ये कि सरकार 60.70 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करेगी. ऐसा किया भी गया और राम मंदिर, मस्जिद, एक म्यूजियम और एक लाइब्रेरी बनाने की योजना पर काम शुरू हुआ लेकिन बीजेपी ने इसका विरोध शुरू कर दिया. मुसलमान भी सरकार के विरोध में आ गए. नतीजा ये हुआ कि कोर्ट ने र स्टे लगा दिया. सरकार तो पहले से ही अल्पमत में थी और हिंदू मुसलमान दोनों सरकार से खफा हो गए. 1996 के हुए आम चुनावों में राव सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.
तीनों सरकार ने अपने फैसलों से तुष्टीकरण करने की कोशिश की थी. नतीजा ये हुआ कि जनता ने उन्हें नकार दिया. अब एक बार फिर से कुछ ऐसा ही हो रहा है. देखना होगा कि जनता इस बार आम चुनाव में क्या करती है?