राफेल और राम, हे भगवान !

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राफेल और राम मंदिर मामले में इन दिनों बीजेप-कांग्रेस में जमकर खींचतान हो रही है. राफेल मामले में कांग्रेस सीधे सीधे पीएम मोदी को घेर रही और आरोप लगा रही है कि मोदी ने पुराने कांट्रेक्ट को बदलकर अनिल अंबानी की कंपनी को 30 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाया. राम मंदिर के मामले में बीजेपी कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि कांग्रेक वकील राम मंदिर बनने नहीं दे  रहे.  इन दोनों ही मामलों का व्यापक असर लोकसभा चुनाव में हो सकता है.

शीतकालीन सत्र में उम्मीद थी कि राफेल मामले में कोई सकारात्मक चीजें निकल सामने आएंगी. लोग सोच रहे थे कि मोदी सरकार राम मंदिर पर अध्यादेश ला सकती है और राफेल पर चर्चा के बाद कोई अहम बात सामने आ सकती है. लेकिन शीतकालीन सत्र में ऐसा कुछ नहीं हुआ. वही पुरानी बातें सामने आईं. बीजेपी और कांग्रेस के बीच सवाल जवाब तो हुए नहीं ये पहले भी होते रहे हैं. राहुल गांधी ने पूरा की विमान की कीमत 560 करोड़ रुपये के बजाय 1600 करोड़ रुपये क्यों दी गई? 126 के बजाय 36 विमान क्यों खरीदे जा रहे हैं? HAL का ठेका रद्द करके ‘एए’ (अनिल अम्बानी) को क्यों दिया गया? राहुल गांधी लगातार ये सवाल मोदी सरकार से पूछ रहे हैं. उनका कहना है कि मोदी ने अंबानी की कंपनी को 30,000 करोड़ रुपये का ठेका दिया है ? कहा ये जा रहा है कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दासो ने ऑफसेट पार्टनर चुनते वक्त कुछ ऐसी कंपनियों को वरीयता दी, जिनसे सरकार के रिश्ते अच्छे हैं.

ऐसा नहीं है कि सरकार ने इन सवालों के जवाब नहीं दिए. सरकार कहती है कि फ्लाई-अवे और पूरी तरह लैस विमान की कीमत UPA के सौदे से कम है.और कीमतें इसलिए नहीं बताई जा सकती क्योंकि इसमें गोपनीयता बरतने का करार हुआ है. इतना ही नहीं विमान की कीमत, उनकी संख्या और खरीद की प्रक्रिया समझौते में किए गए बदलावों की जाँच करने की संस्थागत व्यवस्था देश में है. सौदा कितना भी गोपनीय की सरकार के किसी न किसी अंग के पास जानकारी होती ही है. खरीद का लेखा-जोखा कैग रखती है. अगर सूचनाएं संवेदनशील हों तो उन्हें मास्क करके विवरण देश के सामने रखे जाते हैं. लेकिन अभी तक कैग रिपोर्ट पेश नहीं हुई है और ऐसी उम्मीद है कि चुनाव तक ये रिपोर्ट आएगी नहीं. वहीं अगर संस्थागत जांच की बात करें तो इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट में होगी. 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने खरीद की निर्णय-प्रक्रिया, मूल्य-निर्धारण और भारतीय ऑफसेट-पार्टनर तीनों मसलों पर फैसला सुनाया.चुंकि फैसले की शब्दावली में कुछ ऐसा था कि कांग्रेस को फिर मौका मिल गया अब इसलिए शब्दावली से पैदा हुआ विवाद सर्दियों की छुट्टी के बाद खत्म होगा.

चुंकि भारत में रक्षा-उद्योग का विकास नहीं हो पाया है लिहाजा भारी कीमत देकर विदेशी हथियार खरीदे जाते हैं. भारी कीमत की वजह से विवाद होता है और खरीद रुक जाती है. वायुसेना ने 18 साल पहले 2001 में 126 विमानों की जरूरत बताई थी. एक लंबी परीक्षण-प्रक्रिया में दुनिया के छह नामी विमानों के परीक्षण हुए. 31 जनवरी 2012 को भारत सरकार ने घोषणा की कि राफेल विमान सबसे बढ़िया है.इस सौदे के तहत 18 तैयारशुदा विमान फ्रांस से आने थे और 108 लाइसेंस के तहत HAL में बनाए जाने थे. इसका एलान किया भी हुआ लेकिन समझौता नहीं हुआ. कीमत के अलावा भारतीय पार्टनर (यानी एचएएल) का मसला भी था. इस करार में दसां HAL में बने विमान की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. और भारत में जो विमान बनता उसमें दसां की अपेक्षा ढाई गुना ज्यादा समय लगता. जो विमान फ्रांस में 100 दिन में बनता उसे भारत में बनाने में 257 दिन लगते. राफेल सौदे में 5 फरवरी 2014 को तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा था कि इस वित्त वर्ष में सरकार के पास इतना पैसा नहीं बचा कि समझौता कर सके और इसके बाद इसे टाल दिया गया. उस वक्त उन्होंने इसकी कीमतों को लेकर कोई बात नहीं की. इतना जरूर कहा की दोबारा से मुल्य निर्धारण करेंगे. मूल्य निर्धारण का मतलब ये है कि बुनियादी कीमत विमान की होती है. उसपर लगने वाले एवियॉनिक्स, रेडार, सेंसर, मिसाइल और दूसरे उपकरणों की कीमत अलग से होगी. उसके 40 साल तक रख-रखाव की भी कीमत होगी.

सरकार ने 2015 में 126 विमानों के टेंडर को वापस ले लिया. क्या टेंडर रद्द करने की प्रक्रिया सही थी या नहीं. देश में 60 फीसदी से ज्यादा रक्षा-तकनीक विदेशी है. यूपीए और एनडीए दोनों पर रक्षा-सामग्री के स्वदेशीकरण का दबाव है. इसके लिए निजी क्षेत्र को बढ़ाने की जरूरत है. केवल सार्वजनिक क्षेत्र के सहारे काम पूरा नहीं होगा.राफेल की कंपनी दासो को सौदे की 50 फीसदी राशि भारत में ऑफसेट के तहत खर्च करनी है. इसके लिए दासो ने भारतीय कंपनियों से ऑफसेट समझौते किए हैं. कितनी कंपनियों से समझौते हुए हैं, इसे लेकर तमाम बातें हैं. कुल मिलाकर ना सरकार सबकुछ बता रही है और न विपक्ष ये इस मुद्दे को छोड़ने को तैयार है.

राफेल की तरह राम मंदिर का मामला भी सरकार के गले की फांस बना हुआ है. राम मंदिर पर सरकार के ऊपर दवाब था अध्यादेश लाने का लेकिन मोदी ने कहा कि सरकार अध्यादेश नहीं लाएगी. ऐसे में 2019 लोकसभा चुनाव से पहले राफेल और राम अहम होने वाले हैं.

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