शिवराज की सियासत पर कितना फर्क डालेगी ये शिकस्त ?

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सियासत में सौम्यता क्यों जरूरी है ये शिवराज के सियासी सफर को देखकर आप समझ सकते हैं. शिवराज सिंह की विनम्र छवि उनकी राजनीतिक पूंजी है और ये उनके विरोधियों पर भारी पड़ती है. कहते हैं शिवराज की विन्रमता का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है और उनका यही हुनर उन्हें खास बनाता है.

जैत गांव जो नर्मदा नदी के तट पर बसा है उस गांव से शिवराज सिंह चौहान का ताल्लुक है. यहां आप जाएंगे तो यहां के लोग आपको शिवराज की विनम्रता से जुड़ी कई कहानियां सुनाएंगे. 15 साल सीएम रहने के बाद भी शिवराज जब गांव जाते हैं तो कपड़े उतारकर नर्मदा में छलांग लगा देते हैं और तैरने लगते हैं.

कैसे शुरू हुआ सियासी सफर ?

एबीवीपी से शिवराज सिंह चौहान ने अपने सियासी सफर की शुरूआत की. 1988 में पहली बार भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्यक्ष उनको बनाया गया और 1990 में 31 साल की उम्र में पहली बार बीजेपी ने उन्हें बुधनी से विधानसभा चुनाव लड़वाया. उस वक्त शिवराज सिंह चौहान ने पूरी बुधनी को पैरों से नाप दिया था और पहले ही चुनाव में जीत हासिल की थी.

जब लोकसभा पहुंचे शिवराज

1991 में 10वीं लोकसभा में शिवराज सिंह मैदान में उतरे. इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ और विदिशा से चुनाव लड़े थे औऱ दोनों ही सीटों पर उन्हें जीत मिली थी. वाजपेयी ने विदिशा की सीट को छोड़ दिया. सुंदरलाल पटवा ने विदिशा के उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान को पार्टी का प्रत्याशी बनाया और वो पहली बार में ही चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए.

पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ एक बार हारे

लगातार 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव जीतने वाले शिवराज को अपने सियासी सफर में एक बार हार का मुंह देखना पड़ा. बात 2003 की है जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने चौहान को मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ राघोगढ़ से खड़ा किया था. उमा भारती मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार थी. इस चुनाव में शिवराज हार गए थे. इसके बाद उमा भारती के कुल आठ महीने और बाबूलाल गौर के 15 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवंबर, 2005 को मध्य प्रदेश के 25वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.

मध्यप्रदेश में तीसरे ओबीसी मुख्यमंत्री

शिवराज सिंह चौहान ओबीसी तबके से आते हैं. उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद वो प्रदेश के तीसरे ओबीसी मुख्यमंत्री हैं. इससे पहले मध्य प्रदेश के सारे मुख्यमंत्री सवर्ण रहे थे. शिवराज सिंह चौहान को उस वक्त आडवाणी ने आगे बढ़ाया था.

लगातार 13 साल से मुख्यमंत्री हैं

चौहान बेहद शातिर नेता है. वो बड़ी शांति से अपना और पार्टी का काम करते हैं. अपने 13 सालों के कार्यकाल में मध्य प्रदेश का उन्होंने बहुत शांत तरीक़े से हिन्दूकरण किया. संघ के लिए शिवराज ने बहुत काम किया. गांधी जी की हत्या के बाद सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखा में जाने पर पाबंदी थी लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने इसे खत्म किया. बुज़ुर्गों को तीर्थ पर भेजा, शादियां कराईं, निकाह कराए, कुंभ में करोड़ों का बजट दिया.

शिवराज के राज में एमपी के आंकड़े

  • 2003 से 2013 के बीच किसानों की आय में 75 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई.
  • किसानों के परिवारों की प्रति व्यक्ति आय 2013 में 1,321 रुपए हो गई.
  • 2003 में भारत के औद्योगिक उत्पादन में एमपी का योगदान 3.6 % था.
  • 2014 में भारत के औद्योगिक उत्पादन में एमपी का योगदान 3.2% रह गया.
  • मानव विकास सूचकांक के मामले में भी मध्य प्रदेश की स्थिति ठीक नहीं.
  • एमपी में शिशु मृत्यु दर 1000 में 47 है पर राष्ट्रीय स्तर से (34) ज़्यादा है.
  • शिक्षा के मामले में भी मध्य प्रदेश की हालत ठीक नहीं है, पलायन भी है.
  • ग्रामीण इलाक़ों के सरकारी स्कूलों में 17 % बच्चे बुनियादी अक्षर नहीं जानते.
  • एमपी में 14 फ़ीसदी बच्चों को बुनियादी अंकगणित का ज्ञान नहीं है.
  • 2016 के अंत तक मध्य प्रदेश में 10.12 लाख रजिस्टर्ड शिक्षित बेरोज़गार थे.
  • एमपी में 10.12 लाख बेरोजगारों में से सिर्फ 422 को 2017 तक नौकरी मिली.

जातियों के गठजोड़ बनाने में कामयाब रहे

शिवराज सिंह ख़ुदी किरार जाति के हैं जो मध्य प्रदेश में ओबीसी श्रेणी में आती है. बीजेपी ने पहली बार किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. और इसका फायदा भी राज्य में बीजेपी को खूब मिला. अपने कार्यकाल में शिवराज कई लोकप्रिय योजनाओं के लिए भी जाने जाते हैं.

दागदार भी हुई छवि

शिवराज सिंह चौहान की छवि को मंदसौर हिंसा और व्यापंम घोटाले ने प्रभावित किया है. और इसका खामियासा भी उन्होंने भुगता है. लेकिन इस में किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी कि शिवराज मध्यप्रदेश की राजनीति के सबसे विनम्र नेता हैं.

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