‘पानी की गगरी नहीं फूटनी नहीं चाहिए चाहे बलम मर जाए’
कोरोनावायरस पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले चुका है. भारत भी इससे अछूता नहीं है यहां भी इस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके में हालात कुछ अलग हैं. यहां कोरोना से कम पानी की कमी से ज्यादा लोगों को डर लगता है. और यहां एक कहावत है की ‘पानी की गगरी नहीं फूटनी चाहिए भले ही बलम यानी पति मर जाए.’
बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के 7 जिले आते हैं. झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा . हर साल मई जून के महीने में बुंदेलखंड पानी के लिए त्राहि-त्राहि करता है. वैसे तो यहां पानी का संकट हमेशा बना रहता है मगर अप्रैल-मई आते-आते यहां के तालाब, कुएं और हैंडपम्प सूखने लगते हैं. हर जगह लोग सुबह उठकर अपने काम-धंधे पर जाते हैं मगर बुंदेलखंड के लोग सुबह उठकर पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं. हालात इतने ख़राब हैं कि लोग ऐसे गांवों में अपनी बेटियां नहीं ब्याहते हैं जिनमें पानी का संकट हो.
बुंदेलखंड का इलाका लंबे समय से पानी की कमी खेल रहा है. लेकिन कोरोनावायरस ने यहां हालात और ज्यादा मुश्किल कर दिए हैं. एक तरफ सरकार कह रही है वायरस से बचने के लिए बार बार साबुन से हाथ धोएं. लेकिन यहां पर लोग कहते हैं कि साहब पीने का पानी नहीं है आप बार-बार हाथ धोने के लिए कहते हैं. 2011 की जनगणना कहती है, कि यहां पर महोबा के 71.3%, बांदा में 76.1%, जालौन में 76.6%, चित्रकूट में 72.1%, हमीरपुर में 75.2%, झांसी में 60% और ललितपुर में 74% परिवार पानी के लिए हैंडपम्प पर ही निर्भर हैं.
इंडिया स्पेंड मैं छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास बार-बार हाथ धोने के लिए पानी नहीं है. वहीं अगर दुनिया में ऐसे लोगों का आंकड़ा देखें तो करीब 200 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास साबुन और पानी की किल्लत है. इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मिले आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2019 की स्थिति यह थी कि देश के 17.87 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से सिर्फ 3.27 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक ही नल से पानी पहुंचता था. केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने यह जानकारी लोकसभा में 12 मार्च 2020 को दी थी. यानी कि देश के क़रीब 82% ग्रामीण परिवारों तक आज भी नल से पानी नहीं पहुंच रहा है.
जालौन के मिहोना के लोग कोरोनावायरस के चलते काफी परेशान है. इनका कहना है कि हमारे यहां पानी की भीषण किल्लत है. यहां आदमी शौच करने के बाद ही हाथ होता है यानी दिन में एक या दो बार, कहीं कहीं पर तो लोग 2 दिन में एक बार नहाते हैं. ऐसे में बार-बार हाथ धोना संभव ही नहीं है. भारत के ग्रामीण क्षेत्र में हाथ धोने की आदत को और बेहतर तरीके से समझने के लिए भारत सरकार की एक रिपोर्ट के आंकड़ों को भी देखना चाहिए. नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण भारत के 69.9% परिवार खाना खाने से पहले सिर्फ पानी से हाथ धोते हैं. ऐसे ही शौच के बाद भी 15.2% ग्रामीण परिवार सिर्फ पानी से हाथ धोते हैं और 17.9% ग्रामीण परिवार हाथ धोने के लिए राख और मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं.
बुंदेलखंड में कई गांव ऐसे हैं जहां एक हैंडपंप पर 22 परिवार निर्भर करते हैं. यहां पानी भरने के लिए महिलाओं की भीड़ जुटती है. कभी-कभी तो नौबत मारपीट की जाती है. ऐसे में यहां पर हाथ धोना तो दूर सोशल डिस्टेंसिंग भी संभव नहीं है.
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 31 मई 2020 तक प्रदेश में 24.71 लाख से ज़्यादा लोगों को अन्य राज्यों से वापस लाया गया है. इनमें से बुंदेलखंड इलाक़े में भी बड़ी संख्या में लोग वापस आए हैं. इन लोगों की वापसी से गांव में पानी की खपत पर भी असर पड़ा है. बुंदेलखंड में पानी की व्यवस्था महिलाएं ही करती हैं इसलिए कोरोनावायरस के समय में महिलाओं के सामने एक बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है. यहां कई महिलाओं से बात करके हमें पता चला की पानी की खपत बढ़ गई है.
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