‘हर्ड इम्यूनिटी’ क्या है जिससे कोरोना को हराने की बात की जा रही है, 5 बिंदुओं में समझिए
बोरिस जॉनसन के बयान ने दुनिया भर में हर्ड इम्यूनिटी शब्द को वैज्ञानिक चर्चाओं से निकालकर आम लोगों की जुबान पर ला दिया था. इस बात को अब दो महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. इतने दिनों में बदली हुई परिस्थितियों में एक बार फिर यह शब्द ज्यादा चर्चा में आ गया है.
हर्ड इम्यूनिटी से जुड़ी हुई 5 बातें
- बीते मार्च में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का एक बयान सुर्खियों में रहा था. एक पत्रकार वार्ता के दौरान हर्ड इम्यूनिटी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था कि यह नए कोरोना वायरस से होने वाली महामारी कोविड-19 को रोकने या नियंत्रित करने का एक उपाय हो सकता है.
- हर्ड इम्यूनिटी, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है यह किसी हर्ड यानी झुंड के सदस्यों में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता है. किसी जनसमूह में हर्ड इम्यूनिटी होने से मतलब इसके एक बड़े हिस्से -आमतौर पर 70 से 90 फीसदी लोगों – में किसी संक्रामक बीमारी से लड़ने की ताकत विकसित हो जाना है. ये लोग बीमारी के लिए इम्यून हो जाते हैं. जैसे-जैसे इम्यून लोगों की संख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे संक्रमण फैलने का खतरा कम होता जाता है.
- हर्ड इम्युनिटी संक्रमण को रोकने में दो-तरफा कारगर होती है. मसलन 80 फीसदी लोगों के इम्यून होने पर 20 फीसदी लोगों तक संक्रमण नहीं पहुंचता है. उसी तरह अगर किन्हीं विपरीत परिस्थितियों में इन 20 फीसदी लोगों को कोरोना संक्रमण हो जाता है तो वह बाकी 80 फीसदी तक नहीं पहुंचेगा क्योंकि वे पहले से इम्यून हैं. ऐसे में वायरल संक्रमण के फैलाव की प्रक्रिया रुक जाती है और महामारी से निजात मिलने की संभावना बढ़ जाती है.
- प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने के दो तरीके हैं. पहला तरीका टीकाकरण (वैक्सीनेशन) है. यानी बीमारी का इलाज खोजा जाए और इससे अधिक से अधिक लोगों के शरीर में ऐसी जैविक व्यवस्था (एंटीबॉडीज) तैयार की जाए कि उन्हें संक्रमण न हो. दूसरा तरीका है, नैचुरल इम्यूनिटी यानी अधिक से अधिक संख्या में लोग बीमारी के शिकार हों ताकि उनके भीतर अपने आप संक्रमण का सामना करने वाली एंटीबॉडीज विकसित हो सकें. इस तरह संक्रमण के शिकार लोग हर्ड इम्यूनिटी का वह बहुसंख्यक हिस्सा बन जाएंगे जो संक्रमण से सुरक्षित रहेंगे और बाकी लोग संक्रमण से बचे रहेंगे.
- हर्ड इम्यूनिटी से जुड़ा, एक अलग लेकिन ध्यान दिया जाने वाला तथ्य यह भी है कि हर्ड इम्युनिटी किसी भी देश में महामारी को फैलने से तो रोक सकती है लेकिन कई बीमारियों के मामले में यह काम नहीं आती.
कोरोना वायरस के केस में हर्ड इम्यूनिटी कितनी कारगर साबित होगी यह देखने वाली बात है क्योंकि वैक्सीन न होने की सूरत में प्राकृतिक तरीके से हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने की राह में कई तरह के खतरे हैं. ये खतरे कोरोना वायरस को लेकर अब भी मौजूद अनिश्चितताओं से जुड़े हैं. मसलन, कई शोधों के बावजूद अब भी पक्के तौर पर कहना मुश्किल है कि एक बार ठीक हो जाने के बाद किसी मरीज को कोरोना वायरस का संक्रमण दोबारा होगा या नहीं. कई बार पहली बार में ही मरीजों को गंभीर साइड इफेक्ट्स और कई बार मौत तक का सामना करना पड़ता है.
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