कोरोना संकट से उबारेंगे ‘आत्मनिर्भर गांव’, बनानी होगी मजबूत कामगार नीति
तीसरी सरकार अभियान के तहत 30 मई 2020 को कोरोना संकट से बचाव, राहत और गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वेबीनार का आयोजन किया. इस चर्चा में देश के विभिन्न क्षेत्रों से 35 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन प्रतिनिधियों में जहां एक और ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय सामाजिक संगठनों, पंचायती राज संस्थाओं के प्रमुख शामिल हुए वहीं, दूसरी ओर बतौर संदर्भ व्यक्ति प्रमुख शिक्षाविद, प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार तथा उद्यमी भी शामिल रहे।
वेबीनार की शुरुआत तीसरी सरकार अभियान के संस्थापक सदस्य डॉ चंद्रशेखर प्राण द्वारा इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान समय में कोरोना संकट से जूझ रहे गांव की वर्तमान वस्तु स्थिति तथा उसके तात्कालिक एवं दूरगामी समाधानों पर चर्चा को केंद्रित करने का अनुरोध किया गया। साथ ही चर्चा में शामिल सभी संदर्भ व्यक्तियों एवं प्रतिनिधियों का स्वागत एवं परिचय दिया गया।
रोजगार की तलाश में गांव से शहर गए कामगारों का बड़े पैमाने पर गाँव वापसी से जो तात्कालिक संकट पैदा हुआ है तथा भविष्य में उससे गाँव के पुनर्निर्माण का जो अवसर मिलने जा रहा है, उन दोनों पक्षों पर प्रतिनिधियों के बीच खुलकर विचार विमर्श हुआ।
चर्चा की शुरुआत उत्तरी दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन की अतिरिक्त कमिश्नर डॉ. रश्मि सिंह ने गांव लौट रहे लोगों के प्रति समुदाय की संवेदनशीलता को विशेष रूप से संदर्भित किया। उन्होंने अपने गांव लौट रहे कामगारों के प्रति प्यार और सहयोग की भावना के साथ उनकी पीड़ा और परेशानी के समाधान के लिए पंचायत सदस्यों तथा गांव वालों से संवेदनशील व्यवहार का अनुरोध किया। उन्होंने गाँव लोटे कामगारों की मानसिक व शारीरिक अस्वस्थता को ध्यान में रखते हुये एक दुरगामी रणनीति पर जोर दिया । गाँव में किए जाने वाले सभी तरह के प्रयासों का लाभ सभी वर्गों को मिले तथा इसमे कमजोर तबके को वरीयता दी जाय। उन्होंने यह भी आग्रह किया कि कोरोना के संबंध में फैल रही अफवाहों तथा गलत जानकारीयों के प्रति जागरूक किया जाए तथा लोगों में पैदा हो रही दहशत तथा छुआ छूत की भावना को तत्काल समाप्त किया जाए।
गाँव लौट रहे कामगारों के हुनर का इस्तेमाल हो
देश की सुविख्यात सॉफ्टवेयर कंपनी इंटेलेक्ट डिजाइन के चेयरमैन तथा मिशन समृद्धि के संस्थापक श्री अरुण जैन ने इस संकट से उत्पन्न परिस्थिति के प्रति एक सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करते हुये कहा कि दर्शन के अनुरूप ही ज्ञान पैदा होता है तथा उसी के सापेक्ष व्यवहार व चरित्र का विकास होता है । इसी संदर्भ में गाँव वापस लौट रहे कामगारों के हुनर तथा उनकी व्यापारिक दक्षता को सही तरीके से पहचान कर उसके समुचित उपयोग के माध्यम से गांव की समृद्धि और खुशहाली की संभावना पर जोर दिया। किसानी को भी उद्यमिता की श्रेणी में रखते हुये इसमे स्टार्टअप को शुरू करने की बात की। उनके अनुसार आज से 30 दिन, 60 दिन तथा 90 दिन की आवश्यकता के आधार पर कार्ययोजना तय की जानी चाहिए । उन्होंने कोरंटाईन सेन्टर में सकारात्मक माहौल बनाने तथा वहां रह रहे कामगारों में आशा का संचार करने के लिए नुक्कड़ नाटक तथा अन्य तरह के लोक माध्यमों के उपयोग पर जोर दिया।
जनप्रतिनिधियों को निभानी होगी अपनी भूमिका
केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जनक पाण्डेय ने शहर से गाँव वापसी के दौरान कामगारों की दुर्दशा को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुये कहा कि इसके लिए हम सब अपराधी हैं। उनके राहत तथा रोजगार की जिम्मेवारी पूरे समाज की है। उनके अनुसार तीसरी सरकार अर्थात पंचायत के साथ-साथ विधान सभा तथा लोक सभा के चुने हुये सदस्यों को भी आगे बढ़ कर आना चाहिए, जो अभी दिखाई नहीं पड़ रहा है। कामगारों के हित में एक व्यापक अभियान चलाने का आवाहन करते हुये उन्होंने वर्तमान की जरूरत तथा भविष्य की योजना के अनुसार गांव में रणनीति और कार्यक्रम बनाने पर बल दिया।
आत्महीनता से निकलकर पुनर्विचार करना होगा
बिहार विधान परिषद के सदस्य तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ संजय पासवान ने कहा कि इस महामारी ने हम सब को जीने का एक नया तरीका सिखाया है । उनके अनुसार दुनिया में एक नया नारा – क्षेत्रीय भोजन करो, मोसमी भोजन करो, का गूंजने लगा है। जब कि हमारी परंपरा में यह सामान्य व्यवहार की बात थी। यह धारणा कि हमारा सब खराब है, दूसरे का सब अच्छा हैं, इस आत्महीनता से बाहर निकल कर आज के संसाधनों तथा जीवन शैली पर पुनर्विचार करना होगा। उदाहरण के लिए स्टील व प्लास्टिक के बर्तन की जगह फिर से तांबे के बर्तनों की महत्ता को समझना होगा। उन्होंने कहा कि बाड़ी तथा एंटीबाडी का शास्त्र यही बताता है कि रोगों का इलाज स्थानीय स्तर पर ही है।
NUEPA की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मनीषा ने कहा की आज जब मजदूरों को सहयोग की जरूरत थी तब उनके मालिकों ने उनसे अपनी दूरी बना ली और बैर पाल लिया जिससे उनकी यह दुर्दशा हुई है। अब देश की सरकार को खास की नहीं खलिहान की बात करनी चाहिए। बिहार में बाढ़ की आपदा पर चर्चा तो होती ही रही है लेकिन अब राजनीति को भी आपदा और गरीबी प्रबंधन को एक साथ लेकर चलना होगा।
ग्रामीण इलाकों में स्थाई रोजगार की दरकार
बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन की सलाहकार सुश्रीसीमा सिंह ने अवगत कराया की अब तक 27 लाख मजदूर अपने गाँव वापस लौट चुके हैं। उनके अनुसार इसे एक अवसर के रूप में लेना चाहिए तथा इस स्थिति पर भी एक ऐसा ग्रुप ऑफ पीपुल्स हो जो इसके लिए रोड मैप तैयार करे और नीतिगत स्तर पर बदलाव हो। उन्होंने यह भी अवगत कराया की आये हुए कामगारों में 80 प्रतिशत अनस्किल्ड है, इनके लिए छोटे छोटे रोजगार गाँव में पैदा करना होगा। मनरेगा से कोई दूरगामी हल नहीं निकाल सकता। अतः ग्राम पंचायतों के लिए यह सही मौका है कि वो लोगों के स्थाई रोजगार तथा आत्मनिर्भरता के लिए अपने को आगे लाएं।
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के कार्यक्रम प्रबंधक श्री नीरज कुमार ने अपनी चर्चा में बताया कि बिहार में आजीविका मिशन के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह के माध्यम से अनेकों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा है लेकिन इस संकट के समय नान फार्मल सेक्टर में तकनीकी का प्रयोग करके रोजगार के नए अवसर खड़े करने होंगे। इसे मार्केट लिंकेज की ओर ले जाना होगा।
प्रमाणिक कम्युनिकेशन चैनल बनाने की जरूरत
मिशन समृद्धि के सह संस्थापक श्री योगेश अंडले के अनुसार समस्या की सही समझ सबसे पहले अपने अंदर पैदा होनी चाहिए तभी हम किसी निष्कर्ष तक पहुँच सकते है। उनके अनुसार कामगारों का अपने घर वापस जाने से समस्या का हल नहीं होगा क्योंकि इतने लोगों को गाँव में स्थाई रूप से रोजगार दे पाना बहुत कठिन होगा। शहरों में जब रोजगार के साधन फिर से शुरू होंगे तब क्या ये वापस नहीं जाएंगे? ऐसी स्थिति में हम सबको एक प्रामाणिक कम्यूनिकेशन चैनल बनाना होगा जिससे कई स्तरों पर काम किया जा सकता है। उनके अनुसार इस समय तात्कालिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुष के डॉक्टरों से सलाह लेनी चाहिए तथा पटना एम्स के टेली मेडिसिन सेंटर के संपर्क में भी बराबर रहना होगा।
ADR के प्रदेश संयोजक श्री राजीव कुमार ने सरकार सामाजिक संस्था तथा जनप्रतिनिधियों के बीच बेहतर तथा प्रभावी समन्वयन पर जोर देते हुए इस समस्या के बेहतर समाधान पर जोर दिया तथा इस वेबिनार के निर्णयों के आधार पर राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजने का भी सुझाव दिया।
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त मुखिया श्री अजय सिंह यादव ने अपनी ग्राम पंचायत द्वारा इस संकट से बचाव और राहत के किए गए कार्यों का विस्तार से जानकारी दी। उनके अनुसार सरकार के स्तर से सहयोग तो मिल रहा है लेकिन उस दिशा में अभी बहुत कुछ और किए जाने की आवश्यकता है। ग्राम पंचायतों को इस कार्य के लिए जो महत्व मिलना चाहिए उसका अभाव है जिसके चलते राहत और बचाव के कार्य में दिक्कतें आ रही है।
युवा शोधकर्ता सुश्री कामिनी सिंह ने बताया कि बिहार की रुरल इकॉनमी का 30 प्रतिशत हिस्सा बाहर गए इन्हीं कामगारों की कमाई से आता रहा है। आज की तारीख में जब यह पूरी तरह से रुक जाएगा तो जहां एक ओर राज्य के लिए एक बड़ा झटका होगा वहीं दूसरी ओर एक अवसर यह भी होगा कि बिहार का मानव संसाधन अब वापस आ गया है। यदि हम इसका सदुपयोग कर सके तो शायद पहले से स्थिति बेहतर हो सकती है।
कामगारों का डाटा बैंक तैयार करे सरकार
पंचायत खबर नई दिल्ली के संपादक श्री संतोष कुमार सिंह ने गांव से रोजगार के लिए बाहर जा रहे कामगारों का डाटा बैंक तैयार करने पर जोर दिया। उन्होंने पंचायतों से यह अपील की कि वे अपनी अपनी पंचायत में यह व्यवस्था बनाएं तथा बाहर गए कामगारों को बराबर अपने सम्पर्क में रखें जिससे पलायन का जो संकट इस समय पूरे देश में देखने को मिल रहा है, वह भविष्य में न घटित हो।
युवा अधिवक्ता श्री चन्द्रशेखर द्विवेदी के अनुसार गाँव में इस संकट से निपटने के लिए सरकार द्वारा समुदाय तथा सामाजिक संस्थाओं का कोई सहयोग नहीं लिया जा रहा है। जबकि उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। गांधीवादी कार्यकर्ता श्री मनोज मीता का आग्रह था कि वापस आये कामगारों को कृषि कार्य से जोड़ा जाए। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे श्री शशांक शेखर ने तत्काल जागरूकता कैंप लगा कर कोरोना के बारे में सही जानकारी देने की सलाह दी। सर्वोदय कार्यकर्ता सुश्री उषा बहन ने खेती और गो पालन को बढ़ावा देने पर जोर दिया। श्री अरविन्द कुमार ने स्थानीय निकायों की सीमित भूमिका की चर्चा करते हुए उनको प्रथम कतार में लाने का सुझाव दिया। सुश्रीअर्चना के अनुसार लोगों में मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है जिससे वे मानसिक बीमारी की ओर बढ़ रहे हैं। इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
संगोष्ठी के अंतिम सत्र में सर्वसम्मति से यह तय हुआ कि गांव में कोरोना संकट के बचाव , राहत, गांव की आत्मनिर्भरता एवं ग्राम पंचायतों की प्रभावी भूमिका के संबंध में जो सुझाव आए हैं उनके बारे में केंद्र एवं राज्य सरकार को अवगत कराया जाय। इसी के साथ यह भी तय हुआ कि इस चर्चा को और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने के लिए क्षेत्र एवं राज्य स्तर पर भी अलग से वेबीनार आयोजित किए जाएं तथा इसके निष्कर्षों के आधार पर इस संकट से राहत तथा गांव की आत्मनिर्भरता के व्यवहारिक एवं जमीनी कार्यक्रम तय किए जाएं।
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रिपोर्ट: अंकित तिवारी, प्रयागराज
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