RBI ने खतरा भांपकर उठाया कदम, मोदी सरकार को एक और झटका
RBI यानी भारतीय रिजर्व बैंक इन दिनों चर्चाओं में है. पहले गवर्नर और सरकार के बीच तल्खी को लेकर, फिर मोदी सरकार को 1.76 लाख करोड़ देने को लेकर और अब उस खतरे को लेकर जो विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी कर्ज के बीच बढ़ती खाई को लेकर खड़ा हुआ है.
2008 में जब पूरी दुनिया मंदी से जूझ रही थी उस वक्त भारत का विदेशी मुद्रा भंडार हमारे बाहरी कर्जों के मुकाबले ज्यादा था. 2019 में जब दुनिया में कहीं कोई मंदी नहीं है जब हालात पूरी तरह से उलट हैं. हालत ये है कि हमारा जितना विदेशी मुद्रा भंडार है विदेशी देनदारियां उससे ज्यादा हो गई हैं. यही कारण है कि इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क लागू करने के बाद अब RBI देश के विदेशी मुद्रा भंडार को जरुरी स्तर तक ले जाने की कोशिशों पर विचार कर रहा है.
जब अर्थव्यवस्था दम तोड़ रही है तब ये जरूरी था कि हमारा विदेश मुद्रा भंडार मजबूत हो. लेकिन हो उलट गया गया है. इस समय देश की देनदारियां हमारे विदेशी मुद्रा भंडार से काफी ज्यादा हैं. आरबीआई की एक अंतरिम कमेटी फिलहाल एक ऐसी प्रक्रिया बनाने पर विचार कर रही है, जिसकी मदद से आकलन किया जा सकेगा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Reserves) पर्याप्त है या नहीं.
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RBI 2008 वाली स्थिति लाने की कोशिश में
आरबीआई का पैनल अर्थव्यवस्था के विभिन्न खतरों का अध्ययन करके विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने की कोशिश करेगा. इकनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क पर पूर्व आरबीआई गवर्नर बिमल जालान द्वारा बीते महीने एक रिपोर्ट पेश की गई थी. रिपोरट में बताया गया है कि मौजूदा वक्त में, विदेशी मुद्रा भंडार (जो कि 400 बिलियन डॉलर से ज्यादा है), देश पर बाहरी देनदारियों (करीब 1 ट्रिलियन डॉलर), यहां तक कि बाहरी कर्ज (500 बिलियन डॉलर), से भी कम है. RBI को अपनी बैलेंस शीट, रिस्क और वांछित आर्थिक पूंजी के बदलावों से निपटने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोत्तरी करने की जरुरत होगी.
विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत क्यों होना चाहिए?
आर्थिक मंदी के दौर में बाहरी स्थायित्व को बरकरार रखने के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार की पर्याप्तता जरुरी है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश के सामने एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी. रिपोर्ट में बताया गया है कि रिजर्व बैंक अपने फॉरेन रिजर्व की पर्याप्तता के मुद्दे पर सरकार के साथ मिलकर समीक्षा कर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, रिजर्व बैंक मैनेजमेंट के दो उद्देश्य हैं और वो हैं सुरक्षा और तरलता. 31 मार्च, 2019 के आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 412 बिलियन डॉलर था. हालांकि अगस्त तक विदेशी मुद्रा भंडार में 17.6 बिलियन डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन ये विदेश कर्जों से कम है.