‘चांद, चाय और चुनाव, मोदी जी ने दिए प्राण सुखाए’

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Prime Minister Narendra Modi is talking about the moon, the situation in the auto sector has deteriorated here.

मोदी जी सपने दिखाने में माहिर हैं. कभी स्टार्ट अप, कभी स्टैंड अप, कभी मेक इन तो कभी न्यू इंडिया. इंडिया वालों ने कभी इतने अलग-अलग रूपों में भारत को नहीं देखा था और जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिखाया है तो देखने वाले भोचक्के रह गए. अब पीएम मोदी भारत को चांद दिखा रहे हैं. हां ये बात और है कि वो चांद के साथ चुनाव भी देखते हैं.

ऐसा नहीं है कि भारत के लोगों ने चांद की ओर पहले नहीं देखा. चांद हमारे मामा भी हैं और जब मासूका की तारीफ करनी होती है तो भी लोग चांद से ही काम चलाते हैं. लेकिन मोदी जी ने एक अलग तरह का चांद दिखाया. ये भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि अब चांद को देखकर गर्व महसूस होता है और सीना फक्र से फूल जाता है कि हमारा ‘विक्रम’ चांद का चुंबन करने के लिए इतना बेताब था कि उसको इसरो के संकेत नहीं माने. अब चांद को देखकर माशूका या मामा नहीं देश याद आता है. ऐसा करिश्मा सिर्फ हमारे प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं. प्रधानमंत्री जी ने हरियाण में एक चुनावी रैली में भी चांद का जिक्र किया. उन्होंने 7 सितंबर को याद किया और एक ऐसा दुर्लभ संयोग बनाया जो आज से पहले कभी संभव नहीं था. उन्होंने चांद और चुनाव का गठबंधन करा दिया. भारतीय राजनीति में ऐसा दुर्लभ मिलन कभी देखने को नहीं मिला होगा. लेकिन अब सवाल ये है कि चांद, चुनाव के बाद उन चाय वालों का दोष है जो गुरुग्राम-मानेसर में अपनी दुकाने लगाते थे. क्यों उनके प्राण सूख रहे हैं. और क्यों जब उनसे चांद के बारे में पूछा तो कहते हैं कि साहब चांद तो ठीक है मोदी जी से कहिए ऑटो सेक्टर को बचाइए ताकि चायवाले बच सकें.

‘चंदा मामा नहीं हमारी बात करिए साहब’

माफ करिए, हम समझे नहीं. जब गुरुग्राम-मानेसर ऑटो हब में ट्रक ड्राइवरों ने ये कहा तो मुंह से यही बात निकली. यहां ट्रक ड्राइवरों से लेकर अस्थाई इंजीनियरों तक लाखों लोग बेरोज़गार हैं और सब यही कर रहे हैं कि साहब आपको चांद की पड़ी है यहां प्राण सूख रहे हैं. गुरुग्राम-मानेसर ऑटोमोबाइल हब के बारे में आपको बस इतना बता दें कि ये इलाका मारुति, हीरो और होंडा के संयंत्रों वाला है और यहां आजकल नए कर्मचारियों की छुट्टी की जा चुकी है, जिन कर्मचारियों की नौकरी बची है वो डरे हैं कि कहीं नौकरी से हाथ ना धो बैठें. यहां आपको कई ऐसे ट्रक ड्राइवर मिल जाएंगे जिन्हें पिछले दो महीनों से काम नहीं मिला है. सैकड़ों ट्रक ड्राइवर जो एक साल पहले तक महीने में तीन से चार ट्रिप लगा लेते थे वो एक एक ट्रिप को मोहताज हैं.

उपभोक्ता मांग में गिरावट और छंटनी

ऑटोमोबाइल सेक्टर में हालात ये है कि उपभोक्ता मांग जमीन पर आ गई है. हालात ये है कि इस सेक्टर से जुड़े हुए लोगों को दिन में चांद तारे दिखाई दे रहे हैं. ये भी मोदी जी ही कर सकते हैं कि रात तो छोड़िए दिन में भी चांद-तारे दिखाई दें. ग्रामीण क्षेत्रों में तो उपभोक्ता ना के बराबर पहुंच गई है. ऑटोमोबाइल सेक्टर में जुलाई महीने के भीतर जो गिरावट 19 प्रतिशत थी वो अगस्त में 31 के करीब पहुंच गई. मारुति सुजुकी ने अगस्त में बिक्री 33 प्रतिशत कम रहने की घोषणा की, टाटा मोटर्स ने कहा उसकी 49 प्रतिशत कम बिक्री हुई है. हीरो मोटोकॉर्प की बिक्री में 21 प्रतिशत की गिरावट आई, महिंद्रा एंड महिंद्रा और टोयोटा किर्लोस्कर की बिक्री क्रमश 25 प्रतिशत और 21 प्रतिशत कम रही. चुंकि कारें नहीं बिक रहीं तो असर कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों पर भी पड़ा है. कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों के शीर्ष संगठन ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) का अनुमान है कि निर्माता कंपनियों ने उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की कटौती की है जिसका सीधा असर कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों पर पड़ रहा है, और इसके कारण 10 लाख लोगों का रोज़गार छिन सकता है.

15000 नौकरियां गई, 3 लाख नौकरियां खतरे में

सिआम ऑटो सेक्टर की शीर्ष संस्था है. सिआम के आंकड़े देखें तो वो बताते हैं कि 15 हजार लोगों तो नौकरियां से हाथ धो बैठे हैं और अगर ऐसी ही मंदी रही तो 3 लाख लोगों की नौकरियां चली जाएंगी. इसका असर डीलरशिप और ट्रांसपोर्ट सेक्टर से जुड़े हुए लोगों पर भी पड़ेगा. सब मिलाकर करीब 14 लाख नौकरियों के ऊपर खतरे की घंटी बज रही है. जाहिर है ये हालात सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं. लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी इन हालातों से निपटना जानते हैं. वो जानते हैं कि चांहे कितनी भी विषम परिस्थितियां क्यों ना हों हमें बात चांद की करनी चाहिए. ऐसे वक्त जब अर्थव्यवस्था की विकास दर महज 5 प्रतिशत रह गई हो, युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती हो तब हम चांद के सौंदर्य में खोए हुए हैं. अगर आपको चांद से इतर बात करनी है तो गुरुग्राम-मानेसर जाना होगा जहां पर 7 और 9 सितंबर को संयंत्रों में उत्पाद बंद रखा गया जिसके बाद लोग कहने लगे कि साहब प्राण सूख रहे हैं ये सोच सोच कर कि कहीं नौकरी ना चली जाए.

क्यों हैं ऐसे हालात और क्या है उपाय ?

दो तीन बातें हैं, एक तो बाज़ार में मंदी तो पिछले साल भर से है लेकिन पिछली तिमाही बहुत बुरी रही. बीमा की लागत बढ़ी है और रजिस्ट्रेशन संबंधी टैक्स में बढ़ोत्तरी हुई है. राज्यों ने रोड टैक्स बढ़ा दिए हैं. बीएस-IV और बीएस-VI मानकों को लेकर अस्पष्टता है. श्रम कानूनों में भी बदलाव किया गया है. इसके अलावा भी बहुत से कारण हो सकते हैं लेकिन कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अगर त्योहारी सीजन आने से पहले भी बिक्री में बढ़ोत्तरी नहीं हुई तो लाखों को सड़क पर आ जाएंगे.

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यहां आपको एक बात और समझ लेनी चाहिए कि अगर ऑटो सेक्टर की हालत खराब होगी तो उसके साथ चाय और पान बेचने वालों की बिक्री में भी कमी आएगी. और ऐसा हुआ भी है क्योंकि गुरुग्राम-मानेसर के चाय-पान बेचने वाले दुकानदार कहते हैं कि साहब 50 फीसदी बिक्री घट गई है. चायवालों को बस अब मोदी जी से उम्मीद है कि वो चांद, चुनाव और चाय में चायवालों का भी ख्याल रखेंगे.

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