चंद्रयान 2 : क्या पूरा होगा चांद पर बस्ती बसाने का सपना?
चांद का इस्तेमाल धरती पर रहने वाले लोग अलग अलग तरीके से करते हैं. कोई अपने महबूब की तारीफ में चांद का जिक्र करता है. कोई चांदनी रात में चांद को देखकर आंहे भरता है. लेकिन चंद्रयान-2 के जरिए चांद के रहस्य को खोजने में लगा भारत क्या इंसानी बस्ती को चांद तक पहुंचा पाएगा ? चलिए ये समझने की कोशिश करते हैं.
इसरो चांद के गर्भ में छिपे रहस्यों की तलाश में वहां पहुंच चुका है. इसरो का मिशन चंद्रयान 2 चांद उसकी शोधों की दिशा में एक बड़ा कदम है. जैसे चंद्रयान 1 ने चांद पर पानी की पुष्टि की थी वैसे ही चंद्रयान 2 भी कुछ और राज बताएगा. भारत के अलावा चीन ने अपना रोवर पहले ही चांद पर उतार दिया है अब भारत ने भी चंद्रयान 2 के जरिए चांद पर अपना रोवर भेजा है. पिछले कुछ दशकों में चांद के पास जाने की कोशिशें बढ़ी हैं. कई देशों ने अपने शोध उपग्रहों के जरिए चांद को अपनी नजरों में कैद किया है. कुल मिलाकर हम ये कह सकते हैं कि चांद अंतरिक्ष में मौजूद ऐसा पिंड है जिसपर धरती के लोगों ने सबसे ज्यादा शोध किए हैं.
धारणा ये है कि चांद को जो दक्षिणी ध्रुव है वहां पर पानी हो सकता है. शोध बताता है कि वहां पर ज्वालामुखी के विस्फोट से ऐसे गड्ढे पैदा हुए हैं जहां अरबों सालों से धूप नहीं पहुंची है. इन गड्ढ़ों को कोल्ड ट्रैप कहते हैं. चांद का ये हिस्सा उसके दूसरे इलाकों से कहीं ज्यादा ठंडा है और यहां पर तापमान माइनस 240 डिग्री के करीब होता है. करीब 10 साल पहले 2009 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने यहां पर ज्वालामुखी का रहस्य खोलने में सफलता हासिल की थी. इस शोध से ये पुष्टि हुई थी कि चांद पर पानी है. लूनर टोही ऑरबिटर ने निचली कक्षा में चांद का चक्कर लगाया और नासा ने उसी समय ज्वालामुखी में एक रॉकेट स्टेज गिराया.
चांद पर पानी का पता कैसे लगा ?
नासा ने इसके पीछे एक अंतरिक्ष यान भेजा गया जिसने वहां पैदा हुए गुबार का अध्ययन किया था इसके बाद वो ज्वालामुखी में गिर गया था. लूनर खोजी ऑर्बिटर रॉकेट स्टेज और अंतरिक्ष यान के गिरने की जगहों का कई यंत्रों की मदद से मुआयना किया और गुबार में उसे वहां पानी मिला था. इसी तरह भारत ने 2008 में चंद्रयान 1 चांद पर भेजा था. उसे भी रडार के जरिए पता चला कि चांद के उत्तरी ध्रुव पर 40 से ज्यादा गड्डों में बर्फ की शक्ल में पानी है. रिसर्चर मानते हैं कि उस इलाके में 60 करोड़ टन बर्फ हो सकती है. ये अच्छे संकेत इसलिए हैं क्योंकि चांद पर बनाए जाने वाले अंतरिक्ष केंद्र के लिए ये जरूरी संसाधन होगा.
शोधकर्ताओं को लगता है कि धूमकेतुओं, सूरज और छुद्र ग्रहों के जरिए पानी चांद पर पहुंचा होगा. क्योंकि सूरज चांद पर हाइड्रोजन कणों की बमबारी करता है इसलिए भी यहां पानी पहुंचने के संकेत मिले हैं. शोधकर्ताओं को लगता है कि हाइड्रोजन की बमबारी से ये कण धरातल में घुस गए होंगे और वहां पत्थरों में मौजूद ऑक्सीजन से मिलकर पानी बना होगा. फिर उसका एक हिस्सा बाहर निकलकर ठंडे गड्ढों में जमा हो गया होगा. नासा ने ये भी खोज कर चुका है कि चांद के धरातल से बारबार पानी बाहर निकलता है. खासकर तब जब वहां छुद्र ग्रहों की बरसात होती है. पानी वाले पत्थर एक सेंटीमीटर मोटी धूल से ढंके होते हैं.
चांद पर कितना पानी है ?
इस सवाल का ठीक ठीक जवाब शोधकर्तों के पास नहीं है. इसका पता लगाने के लिए रोबोट करेंगे. जो सालों से चांद पर भेजे जा रहे हैं. जनवरी 2019 में चीन को पहली बार चांद के पिछले हिस्से में दक्षिण ध्रुवीय इलाके में यान उतारने में कामयाबी मिली थी अब भारत का चंद्रयान 2 भी उसी दिशा में काम करेगा. रोवर पता करेगा कि सूरज के हाइड्रोजन कणों का चांद की ऊपरी सतह के साथ कैसा तालमेल होता है. चीन और भारत तो अपने रोवर चांद पर भेज चुके हैं यूरोपीय स्पेस एजेंसी एक हाइटेक प्रयोगशाला बना रही है. जहां चांद की सतह से एक मीटर नीचे के सैंपल लिए जाएंगे और इस बात का पता किया जाएगा कि उसमें कितना पानी और कितना ऑक्सीजन है.
भारत और चीन की कोशिश किस हद तक कामयाब हो पाएंगी ये वक्त के गर्भ में है. चुंकि रोवर की चांद की सारी जांच नहीं कर सकते. इसलिए सैंपल चांद से वापस धरती पर भी लाने पड़ेंगे. चांद पर पत्थरों को जमा करने और उन्हें धरती पर भेजने के लिए जटिल टेक्नोलॉजी की जरूरत होगी और इसके लिए भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. ऐसा अनुमान है कि 2030 तक इंसान के चांद पर लौटने की कोई योजना नहीं है. क्योंकि चांद पर इंसानी बस्ती बसाने के लिए जो प्रयोग चल रहे हैं वो कामयाब तो हैं लेकिन इतने भी नहीं कि चांद मुट्ठी में आ जाए.