चंद्रयान-2 की लांच टला, लोगों में निराशा
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चंद्रयान-1 के बाद अब चंद्रयान-2 के जरिए फिर से हिन्दुस्तान इतिहास रचने की ओर बढ़ रहा है. भारतीय अनुसंधान संगठन यानी इसरो की कामयाबी भारत को गौरांवित कर रही है और उम्मीद है कि चंद्रयान-2 के साथ इसरो इतिहास रच देता. लेकिन ये हो न सका और तकनीकी खामी के चलते लांच टालना पड़ा.
आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 15 जुलाई 2019 को पहले पहर में 2 बजकर 15 मिनट पर ‘मून मिशन’ की शुरुआत होनी थी. इसरो के इस मिशन की खासियत ये है कि ये चंद्रयान 2 उस जगह पर जाएगा जहां अब तक कोई देश नहीं गया है. इसरो की कोशिश चंद्रयान को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारेने की है. जहां पर चंद्रयान को उतारना है वहां पर जोखिम ज्यादा है इसलिए उस जगह पर किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी ने अपना यान नहीं उतारा.
अधिकांश मिशन भूमध्यरेखीय क्षेत्र में गए हैं जहां दक्षिण धुव्र की तुलना में सपाट जमीन है. चांद का दक्षिणी ध्रुव ज्वालमुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन से भरा हुआ है और यहां उतरना काफी खतरे वाला है.
क्या है इसरो का सबसे पहला उद्देश्य ?
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इसरो की कोशिश ये होगी चंद्रयान चांद की सतह पर सुरक्षित उतरे. लिहाजा चांद की सतह चंद्रयान की सॉफ्ट-लैंडिंग कराने की कोशिश है. जब लैंडिग हो जाए तो फिर सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना है. इसका मकसद चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और किसी न किसी रूप में पानी की उपस्थिति का पता लगाना होगा. अगर चंद्रयान की सफल लैंडिग हो जाती है तो भारत पूर्व सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमरीका और चीन के बाद यहां उतरने वाला और सतह पर रहकर चांद की कक्षा, सतह और वातावरण में विभिन्न प्रयोगों का संचालन करने वाला चौथा देश बन जाएगा. इस प्रयास का उद्देश्य चांद को लेकर हमारी समझ को और बेहतर करना और मानवता को लाभान्वित करने वाली खोज करना है.
चंद्रयान-1 की खोजों को आगे बढ़ाया चंद्रयान-2
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चंद्रयान 1 की खोजों को आगे बढ़ाने के लिए चंद्रयान-2 को भेजा जा रहा है. चंद्रयान-1 के खोजे गए पानी के अणुओं के साक्ष्यों के बाद आगे चांद की सतह पर, सतह के नीचे और बाहरी वातावरण में पानी के अणुओं के वितरण की सीमा का अध्ययन करने की जरूरत है. इस मिशन पर भेजे जा रहे स्पेसक्राफ्ट के तीन हिस्से हैं- एक ऑर्बिटर, एक लैंडर (नाम विक्रम, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहलाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर है) और एक छह पहियों वाला रोबोट रोवर (प्रज्ञान). ये सभी इसरो ने बनाए हैं. इस मिशन में ऑर्बिटर चांद के आसपास चक्कर लगाएगा, विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी धुव्र के पास सुरक्षित और नियंत्रित लैंडिंग करेगा और प्रज्ञान चांद की सतह पर जाकर प्रयोग करेगा.
चांद पर जाकर क्या करेगा चंद्रयान-2 ?
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रोवर इस इलाके में पृथ्वी के 14 दिनों तक जांच और प्रयोग करेगा. ऑर्बिटर का मिशन एक साल तक के लिए जारी रहेगा. इसरो ने इस मिशन के लिए भारत के सबसे ज्यादा शक्तिशाली 640 टन के रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 का इस्तेमाल किया है. ये रॉकेट 3890 किलो के चंद्रयान-2 को लेकर जाएगा. स्पेसक्राफ्ट 13 भारतीय और एक नासा के वैज्ञानिक उपकरण लेकर जाएगा. इनमें से तीन उपकरण आठ ऑर्बिटर में, तीन लैंडर में और दो रोवर में होंगे. इस दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग कराने का मकसद ये है कि जहां पर ये लैंडिग होगी वहां पर अभी तक किसी ने जांच नहीं की. यहां कुछ नया मिलने की संभावना हैं. इस इलाके का अधिकतर हिस्सा छाया में रहता है और सूरज की किरणें न पड़ने से यहां बहुत ज़्यादा ठंड रहती है. इसरो को लग रहा है कि हमेशा छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी और खनिज होने की संभावना हो सकती है. हाल में किए गए कुछ ऑर्बिट मिशन में भी इसकी पुष्टि हुई है.