रामविलास पासवान : राजनीति के ‘मौसम विज्ञानी’ चूक गए ?

0
ram-vilas-paswan

तीन दशक से बिहार में दलित राजनीति का चेहरा रहे लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान इस बार क्या कर रहे हैं. पासवान की पार्टी 2014 और 2019 में एनडीए का हिस्सा है. पिछली बार वो 7 सीटों पर लड़े थे लेकिन इस बार 6 सीटों पर लड़ रहे हैं. इस बार नया ये है कि पासवान खुद चुनावी मैदान में नहीं हैं.

बिहार में एनडीए के सर्वेसर्वा अमित शाह और नीतीश कुमार हैं और इन दोनों नेताओं ने पासवान को राज्यसभा भेजने का वादा किया है. यही कारण था लोजपा 6 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गई. पासवान को सियासत का मौसम वैज्ञानिक कहते हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वो हवा का रुख भांपकर फैसला करते हैं और इसका फायदा उन्हें उनकी राजनीति में मिलता रहा है.

ये भी पढ़ें:

शुरु में रामविलास पासवान बिहार में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए का हिस्सा थे. 2002 से 2014 तक पासवान यूपीए में रहे और 2014 में एनडीए में शामिल हो गए. रामविलास पासवान पाला बदलने में माहिर हैं और फायदे वाले पाले में वो रहते हैं. लालू यादव ने इसलिए पासवान को मौसम विज्ञानी नाम दिया था. तो क्या इस बार मौसम विज्ञानी चूक गया है?

नहीं मिला अपनी ही बिरादरी का वोट

ये सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि बिहार में अलग-अलग सीटों से आ रही रिपोर्ट कहती है कि पासवान वोट इस बार पासवान के कहने पर इधर उधर नहीं हो रहा है. रिपोर्ट के आधार पर ये कहा जा सकता है कि पासवान वोटर इस बार महागठबंधन को वोट कर रहे हैं. गया और औरंगाबाद जैसी सीटों पर पासवान ने आरजेडी और हम को वोट किया है.

बेगूसराय में पासवान बिरादरी का वोट आरजेडी के तनवीर हसन के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है. जमुई से खुद रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान उम्मीदवार हैं और यहां भी खबर ये है कि वो अपने पिता की तरह अपनी बिरादरी का पूरा वोट हासिल नहीं कर पाए हैं. बिहार के नए समीकरण ऐसे हैं कि पासवान वोट जेडीयू औ बीजेपी को भी ट्रांसफर नहीं हो रहा है.

खिसक रहा है पासवान का जनाधार

2014 में पासवान वोट पूरी तरह से एनडीए के खाते में गया था और इसका फायदा बीजेपी और लोजपा को हुआ था. लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. इसकी वजह से तीनों दलों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. तो क्या ये माना जा सकता है कि बिहार में दलितों के बड़े नेता रामविलास पासवान का जनाधार खिसक रहा है ?

पासवान पर परिवाद का आरोप लगा

दरअसल पासवान बिरादरी के मतदाताओं को लग रहा है कि पासवान ने सिर्फ अपने परिवार का विकास किया. लोगों की इस धारणों को तब और बल मिला जब बिहार की 6 में से 3 सीटों पर पासवान के परिवार के लोग मैदान में हैं. जमुई से बेटे चिराग पासवान, समस्तीपुर से उनके भाई रामचंद्र पासवान, और हाजीपुर से दूसरे भाई पशुपति कुमार पारस. पशुपति कुमार पारस नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार में पशुपालन विभाग के मंत्री भी हैं.

नाराज है दलित और पासवान समाज

बिहार में दलित समाज और पासवान तबका रामविलास पासवान से नाराज नजर आता है. इसका कारण ये है कि इस समाज को लगता है कि उनके नेता अपने परिवार को बढ़ाने का काम किया है. महागठबंधन के लोगों ने आम लोगों को यह बात समझाने में सफलता हासिल की है कि ये उनके समाज का नेता होने का दावा तो करते हैं, लेकिन सिर्फ अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं.

एक और बात जो सामने आ रही है रामविलास पासवान पहले तो अपने परिवार को तवज्जो देते हैं और जो सीटें बचती हैं उनपर अमीरों को टिकट दे देते हैं. जैसे नवादा सीट लोजपा के खाते में आई और यहां पासवान ने चंदन कुमार को टिकट दे दिया जो राजनीति में नए हैं और बिहार के बहुत बड़े ठेकेदार हैं, काफी अमीर भी हैं. बताया जा रहा है कि इसी कारण उनकी बिरादरी वोट महागठबंधन के खाते में चला गया है.

About Post Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *